सीमा की ननद 10 साल बाद आ रहीं थीं। उनके कानूनी स्वभाव के कारण वह उनसे दूर-दूर ही रहती थी। जब तक सासू माँ थीं तब तक तो चल गया दूर रहना। लेकिन उनके गुजरने के बाद तो वह ऐसा नहीं कर सकती थी। इसलिये भगवान से प्रार्थना कर रही थी। “हे प्रभो दीदी के स्वागत, सत्कार में कोई कमी न हो हमसे वे खुशी खुशी रह कर जायें।
ऐसी कृपा करना” शायद ईश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली तभी तो सीमा की ननद ने उसकी तारीफ के अलावा कोई बात नहीं की।दीदी में आये परिवर्तन से सीमा को आश्चर्य हो रहा था। और अच्छा भी लग रहा था। उनके साथ रहने में।एक दिन अपनी माँ को याद करते हुए वे भावुक हो गईं। और कहने लगीं माँ कितना समझातीं थीं हमें “बेटा सबके काम और चाल चलन में कमी ढूँढ़ने की आदत रिश्तों को बिगाड़ती है। तू अपनी आदत सुधार ले।” लेकिन मैंने उनकी बात पर कभी ध्यान नहीं दिया।
इसीलिए सबसे रिश्ते बिगाड़ लिए। जब से बहू आई है। मैंने अपनी आदत बदल ली है। घर में शांति और रिश्तों में मिठास बनी रहे इसलिए। आजकल सबको शिकायतें हैं। बच्चों से वे साथ नहीं रहते माँ बाप को अकेला छोड़ देते हैं। या वृद्धाश्रम में रख देते हैं। हमारी बहू जब हमसे कटी कटी रहने लगी तो हमें बुढ़ापे की चिंता ने सताया, तो हमनें उसके विचारों को महत्व देना शुरू कर दिया। जिसका परिणाम सुखद रहा। तुम्हारे पास भी इसी उद्देश्य से आई हूँ। सीमा ने उन्हें समझाया दीदी आप किसी बात की चिंता न करें। आपको किसी भी प्रकार की सहायता की जरूरत हो अवश्य बतायें। उनकी विदाई पर सीमा पहली बार दुखी हुई थी। यह एक सुखद अनुभूति थी। जो इंसान के व्यवहार से उत्पन्न होती है।
#कभी_धूप_कभी_छाँव
स्वरचित —- मधु शुक्ला.
सतना, मध्यप्रदेश