छबि आज बहुत गुमसुम थी. वह कोराेना का समयकाल था. जब बाहर बारिश हो रही थी और वह अपनी खिड़की पर बैठ कर छबि गीली मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू ले रही थी. और चाय की चुस्कियां लेते हुए छबि को अपने पुराने दिन याद आ गए. उतने में छबि के कमरे में गुलाबो आती है,
“क्या बात है मैडम आज तो बारिश देखते हुए चाय की चुस्कियां ली जा रही है?”
“हां तो और करे भी तो क्या! अगर यह मुआ लॉकडाउन ना होता तो अभी तो हम किसी बंध कमरे में किसी की सेविका बने होते… पर अब तो इसकी आदत जो हो गई है लेकिन आज लगा की सालों बाद कोई हमसे बिछड़ गया है…”
“कोई हमसे नही बिछड़ा है छबि, बिछड़ तो हम गए है खुद से… इस रंगीन शामों के रोशनियों में हम खुद को खो चुके है, दरवाजे के पीछे की किलकारियां अब डरावने सपने और दर्द में बदल गई है…”
“सही कह रही हो गुलाबो पर अब तो क्या करें अब यही हमारी जिंदगी है, बस मारे नहीं लेकिन जीना भी दुशवार है…”
“लेकिन आजकल तो हमारे बारे में बहुत सारी फिल्में बन रही है… लगता है इन मुओ के पास कोई अच्छी कहानी ही नहीं बची जो हम जैसे वैश्यों की बोल्ड स्टोरी बना कर बाजार में हम ही बेचते है…”
“अजीब लोग है ना गुलाबो… हम यहां भी बिकते है और दुनिया भर में भी बिकते है!! और ये लोग थोड़ी ना हमारी सचाई दिखाते है, यह तो सिर्फ लोगों को हम जेसी वैश्याओ का बोल्ड सीन दिखा कर बस पिक्चर देखने के लिए ललचा रहे है”
छबि के लिए एक वैश्या बन ना और उसकी जिंदगी का नर्क होने के पीछे कई कारण थे. जैसे उसकी आज की जिंदगी और विचार देख कर कोई नहीं कहेगा की वह कभी साधारण और बड़ी शर्मीली सहमी सी लड़की हुआ करती थी. छबि दूर के एक छोटे से गांव में रहती थी. जहा उसके परिवार में माता पिता समेत तीन भाई बहन थे. उनमें से सबसे बड़ी छबि थी. तो घर की जिम्मेदारी ज्यादातर मां और छबि पर ही आती. क्यों की छबि का बाप तो था भी और नहीं भी. क्यों की वह दिनभर मजदूरी करता आ और वही पैसे दारू में उड़ा देता. छबि और बाकी भाई बहनों ने स्कूल का दरवाजा भी नही देखा था. उस कसबे में रहते हुए छबि और उसकी मां घर घर जा कर लोगों के जंग लगे कबाड़ ले आते थे और उसे बेच कर पेट पाला करते थे. छबि जिस कसबे में रहती थी वहा एक बड़ी मोती सी भद्दी सी दिखने वाली और मुंह में हमेशा पान की गिल्ली चबाती हुई टिमटिम मौसी रहती थी.
टिमटीम का पेशा की कुछ ऐसा था की वह ज्यादातर मर्द के साथ ही बात करती थी. उसकी शकल सूरत देख कोई भी औरत उसके नजदीक जाने से भी डरती. लेकिन जब भी छबि उस गली से गुजरती टिमटिम उसकी तरफ खा जाने वाली नजरो से देखा करती. लेकिन पता नही क्यों वह धीरे धीरे छबि के बाप से उसकी पहचान बनती और छबि का बाप भी तो था ही लालची और शराबी. ऐसे में छबि और उसकी अम्मा भी उसे संभाल नही पाती. एक दिन जब छबि और उसकी मां कबाड़ लेने जाते है तो मौसी उसके घर आकर बैठ जाती है. और उसके बाप से खुब हस हस कर बात करती और दारू पीती. छबि का बाप भी गाली दे कर छबि और उसकी अम्मा को वहा बिठाया. और जबरदस्ती दारू पिलाने की कोशिश करने लगे. छबि ने मना किया तो उसे एक थप्पड़ मार दिया. और बेटी टिमटिम मौसी ने गिरी हुई छबि को संभाला और मोटे आवाज से बोली,
“ए शराबी… मालूम है ना टेरेको ये मेरा माल है अब इसे कुछ हुआ एक खरोच भी आई तो तुझे कच्चा चबा जाऊंगी इस पान की तरह… खबरदार जो अगर फिर से बच्ची को हाथ लगता तो…”
यह सुन छबि १६ साल की पहले तो समझ नहीं पाती लेकिन फिर उसकी अम्मा को पता चलता है की छबि उसकी बेटी को उसका बाप इस मौसी को बेच देता है.
“उसकी अम्मा ने रोकने की कोशिश की तो बाप उसे कबाड़ में पड़े चमड़े के पट्टे से पीटने लगा. और यह देख छबि बोली… मां मैं जाऊंगी मौसी के साथ जाऊंगी अप्पा मत मारो माई को मारो मत मैं जाऊंगी!!”
वहा खड़ी मौसी भी बोली,
“अरे बेटा कुछ नही ये तो बस तेरी बेटी को मैं विदेश में अच्छी नौकरी को भेज रही हूं… अच्छा कमाएगा तभी तो अच्छा जिंदगी होगा?”
और फिर मौसी दूसरे दिन ही छबि को अपने साथ ले जाती है. और फिर वह मुंबई लेकर उसे किसी के हाथो बेच देती है. वह एक घर में ले आती है जिसका नाम था, “रानी महल” उधर किसी के इंतजार में बैठी टिमटिम पान चबाती जाति है. और उतने में ही एक मोटा लंबा चौड़ा सा काला इंसान, जिसकी सिर्फ शकल काली सिर्फ दांत चमकते वह भी लाल पीले रंग हुए… हाथ में सोने का कड़ा और गले में सोने की मोटी चैन वाला वह आदमी, भैरव दादा लड़कियों का दलाल था. वह लड़की को तस्करी करता और उसे अलग अलग जगह बेच देता.
उसकी तीखी नजर तो जैसे छबि को खा ही जाती. और यह देख छबि डर कर सहम जाती है. वह भैरव दादा छबि के पास आता है और एकदम से उसके ऊपर के कपड़े उतार कर उसे नंगा कर देता है वह भी सबके सामने. और आगे, पीछे से उसकी फोटो निकालने लगता है. धीरे धीरे उसके सारे कपड़े उतार कर नंगा कर के खाने वाली नजरो से देखता है. और फिर वो उसकी फोटो किसी को भेजता है. जो सामने से फोन कर के बोलता है…
भैरव दादा कान का काम सुनता था और जिस वजह से वह फोन पर काम बात करता और मैसेज ज्यादा करता और उतने में जब फोन आता है तो वह स्पीकर पर रकाहता है तो छबि को सुनाई देता है,
“दादा इसे कल तैयार रखना अन्ना ने कहा है की, आपको कल कड़क माल आपके ऑफिस भिजवा देंगे…”
और फिर क्या था उस लम्बे चौड़े भैरव ने कह दिया,
“इस नई मुर्गी को कल एकदम दुल्हन की तरह सजना और अच्छे से नहला धुला कर खाना खिलाना ताकि कल कोई गड़बड़ ना होने पाए…”
और फिर क्या था छबि सब समझ चुकी थी की… वह bikr चुकी थी. उसके बाप ने उसे चंद पैसों के लिए ऐसे किसी के हाथो बेच दिया था. छबि कई दिनों तक अपने आप को उस भवर से निकालने की कोशिश करती रहती. पर वह कमियाब नही होती. वहा रानी महल में उसके जेसी कई और लड़कियां थी जो ऐसे ही मजबूरी में या तो अनजाने में बेची हुई रानी महल में आ गिरी. कई बार छबि को एक से ज्यादा ग्राहक के पास छोड़ा जाता और कई बार उसे रात को मारा पीटा जाता क्यों की वह काम के लिए माना करती. और दूसरे दिन उसकी मलहम पट्टी भी होती. और ठीक होने पर फिर से उसे काम पर लगाया जाता.
एक दिन छबि को एक ग्राहक मिला जो काफी पैसे वाला था और वह छबि के पास सिर्फ इस लिए आता था ताकि कोई उसे सुन ने वाला हो दो चार बाते करने वाला हो. वह रोज आता और दारू पीता और बस अपने दुखड़े सुना कर फिर से सुबह चला जाता. एक दिन वह आया और लाइट चली गई. उतने में उस आदमी ने कड़ी दारू पी रखी थी और फिर लाइट जाने का और अंधेरे होने का फायदा उठा कर छबि कमरे का दरवाजा खोल किसी तरह भाग निकली और फिर भागते भागते स्टेशन पर आ पहुंची वहा उसे एक पुलिस वाला मिला,
“ए छोरी… कटे जाना से तन्ने!!”
“मुझे घर जाना है मैं मुझे बहुत डर लग रहा है पुलिस दादा मुझे घर जाना है…”
“अच्छा वो तो मैं समझा पर कहा से आई है? नाम के है तेरा?”
“मुझे रानी महल… मैं रानी महल से भाग कर किसी तरह अपने आप को बचा कर आई हूं मुझे अपने घर जाना है मेरी अम्मा है…”
पुलिस वाला उसे पानी पिलाता है खिलाता है और फिर अपनी गाड़ी में बिठा देता है, आ जा छोरी तने थारे घर भेज देता हूं…” और ऐसा कह कर वह पुलिस वाला उसे फिर से रानी महल ही लेकर आता है.
“क्यों दादा… यो लो संभालो अपनी छोरी को वो तो अच्छा हुआ की मैने स्टेशन पर इसे पकड़ लिया नही तो यह तो निकल ही जाती भाया…”
“अच्छा कैसे निकलती, मैने तुम्हारे जैसे मुस्टंडे क्यू ही पाल रकाहे है.. बताओ क्या इनाम चाहिए!!”
“इस लकड़ी को एक बार हमारे पास भेज देते तो दिल रह जाता भाया…”
“चुप कुत्ता… इस लड़की की अभी कमर पतली है, मोटी हो जाए तब आकर मुंह मार जाना अपना…”
और फिर पुलिस वाला भी दादा से डरता है, और छबि को उसके हाथों सौंप कर चले जाता है. और फिर तो छबि को कई बार मारा पीटा गया उसकी गलती के लिए उसे करछी से भी जलाया गया. और फिर उसका पूरा बदन जलन और घाव से भर चुका था. कई महीनो तक दवा करने के बाद छबि फिर से उठ खड़ी हुई और फिर से उसे काम पर लगा दिया जाता. और अब इस बार छबि भी यह मान चुकी थी की अब उसका यहां से बाहर निकलना नामुमकिन है.
अब छबि अपने आसपास और लड़कियो को देखती और धीरे धीरे उसी जीवन में खुद को ढालने की तैयारी का लेती और वह जीना सुरु करती. अब जैसे जैसे दिन गुजर रहे थे छबि और ज्यादा मन से मक्कम होती गई, और अब तो वह खुद से ही ग्राहक के पास जाने लगी. अब यह देख भैरव दादा तो बहुत खुश हुआ और कुछ समय बाद छबि को उस रानी महल की सबसे खास वैश्या के रूप में मान सम्मान दिया. पर यह भी कोई मान सम्मान था भला? इस से अच्छा तो मरना था… पर छबि के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. इस लिए उसने खुद को मार दिया और वही समा लिया. और कुछ दिन बाद तो छबि ने अपनी तरह ही कई लड़कियों को झुलझते हुए देखती तो उसे बचाने की कोशिश करती, और कई लड़कियों को उसने बचाया भी क्यों की भैरव दादा तो अब छबि पर पूरा आंख बंध भरोसा करने लगा था.
अब छबि वह छोटी सी डरी हुई लड़की नही रही थी. वह अब झल्ली बन चुकी थी और एक दिन जब छबि के पास उसके ग्राहक के रूप में वह स्टेशन वाला पुलिस वाला आता है तो छबि उसे अपना बिस्तर देने के बजाए कमरे का दरवाजा बंद कर के खूब पिटाई करती है. और गली गलोच कर उसे कमरे से बाहर निकल देती है… जब पुलिस वाला भी गाली बोलने की और मरने की कोशिश करता है तो वहा भैरव दादा आ जाता है, और पुलिस वाले का कॉलर पकड़ कर उसे रानी महल से बाहर निकाल देता है. अब छबि धीरे धीरे रानी महल की मल्लिका बन चुकी थी. उसकी खूबसूरती और जवानी और बढ़ने लगी थी. और अब वह अपने आप को खुद को आईने में देख कर खुशी खुशी एक वैश्या के रूप में स्वीकार भी करती थी.