अरे अब उठ भी जा महारानी,सूरज सिर पर चढ़ गया है और कब तक सोएगी! माँ की आवाज गूंजी थी कानों में,,,, माँ की बड़बड़ाहट चालू हो गई थी… पता नही कब आदत सुधरेगी इस लड़की की ससुराल जाएगी तब मालूम पड़ेगा! इसका दिन तो आधे दिन के बाद ही शुरू होता है!
अभी तो साढ़े सात ही बजे है माँ थोड़ी देर और सोने दो ना! कहकर जानवी ने चादर से मुहँ ढांप लिया था।
पता नही क्या होगा इस लड़की का,सगाई हो गई है, कुछ महीनों में शादी होने वाली है…माँ का आलाप अभी भी चल ही रहा था…
उधर रसोई में भाभी की खटर पटर चालू हो गई थी,, सभी का नाश्ता बनाने के बाद खाने की तैयारी जो करना थी, जानवी हाथ मुहँ धो कर जैसे ही आई, टेबल पर चाय और बटर टोस्ट रखे थे,,,भाभी कितनी सलीके से सब कुछ मैनेज कर लेती है वह मन ही मन इंप्रेस हो जाती थी अपनी भाभी प्रिया से।
माँ भी भाभी के कारण निश्चिंत ही रहती , घर की सारी जिम्मेदारियों को बहुत अच्छे से सम्हाल लिया था प्रिया भाभी ने । वह प्रिया भाभी के पास आकर बोली, भाभी तुम कैसे इतना सब समय पर मैनेज कर लेती हो! सबकी पसंद- नापसंद का ध्यान रखना ! “जब तुम भी ससुराल जाओगी तब सब सम्हाल लोगी” प्रिया मुस्कुराई…
उसे मालूम था भैया की शादी के बाद माँ ने कामवाली बाई को छुड़वा दिया था ये कहकर की चार लोगों का काम ही क्या है,, बहू दिनभर करेगी क्या!
फिर तो सुबह से प्रिया, जो घर के काम में उलझती तो दोपहर हो जाती,, फिर धुले कपड़ो की तह कर सहेजना,घर की सफाई, चाय नाश्ता निबटाते शाम के खाने की तैयारी हो जाती पर प्रिया भाभी बिना किसी शिकन के सब काम धीरज से कर लेती थी!
पर माँ को फिर भी लगता था की वह कुछ खास नही करती , इससे ज्यादा तो हम काम करते थे ! पर भाभी बुरा नही मानती थी माँ की किसी बात का।
प्रिया भाभी को चौथा महिना चल रहा था,, घर में खुशी का माहौल छाया हुआ था की कुछ ही महीनों बाद घर में नन्हें मेहमान की किलकारियां गूंजेगी…माँ की प्रफुल्लता दिख रही थी,भाभी के घरेलू कामों में अब माँ भी हाथ बटाने लगी थी,, भाभी को काम करते हुए थकान आ जाती तो माँ हाथ से काम छीनकर उन्हें आराम करने को कह देती।
साथ ही प्रिया के खान-पान का भी विशेष ध्यान रखने लगी थी माँ!
उसे आश्चर्य होता ये कैसा तालमेल है सास-बहू का ? आज शाम जब वह सहेली के घर से वापस आई तो देखा माँ और प्रिया भाभी उसी को लेकर आँगन में कुछ बातें कर रही थी, माँ के स्वर में चिंता वह साफ महसूस कर रही थी, वहीं प्रिया भाभी माँ को तसल्ली दे रही थी की समय के साथ सब कुछ बदलकर अच्छा हो जाता है माँ! जानवी भी अपनी ससुराल जाएगी तो सब कुछ अच्छे से सम्हाल लेगी।
माँ कह रही थी, लेकिन! ससुराल का माहौल समझ सब कुछ मन का नही होने पर जिस धीरज की आवश्यकता होती है, वह जानवी में ना हुआ तो…जैसे तुमने नए घर में आकर अपने को ढाल लिया,, क्या जानवी कर पाएगी ?
प्रिया भाभी ने माँ को पकड़ कर झूले पर बैठाल दिया और बहुत लगाव से बोली थी, हमारी जानवी बहुत समझदार है, पढ़ीलीखी है आप व्यर्थ ही चिंता कर रही हो माँ,,
मेरी मम्मी भी ऐसे ही चिंतित रहती थी की मेरा क्या होगा ससुराल में,क्योंकि मैं भी जानवी जैसी ही थी बेफिक्र…मम्मी कुछ समझाती तो कह देती थी की जब मैं अपने घर जाऊँगी तब सब सम्हाल लूँगी, और सच शुरू में मुझे मम्मी की बातें याद आती थी की मैने क्यों ध्यान नही दिया उनकी बातों पर! लेकिन धीरे धीरे मैं अपने घर में ढलती गई और आपको भी मैं समझने लगी की नई बहू को घर की बाग़डोर देना सरल नही होता ! दोनों का इम्तिहान होता है…
जानवी भी इस इम्तिहान में खरी ही उतरेगी, क्योंकि उसमें आपके संस्कार हैं। और जानवी ! माँ और प्रिया भाभी की बातें सुनकर सोचने लगी थी की उसपर भी अब माँ के संस्कारों और भाभी के विश्वास को निभाने की जिम्मेदारी आ गई है, जिसे उसको हर हाल में निभाना ही है ।
किरण केशरे