एक हाथ में पेपर और दूसरे हाथ में सुबह की चाय लिए चाचा जी बाहर बालकनी में बैठे मौसम का आनंद लेते हुए चाय की चुस्कियां ले रहे थे। वे इस बात से बिल्कुल अनजान थे कि कोई घंटे भर से उनके पीछे खड़ा है। संध्या जी उनके चाय खत्म होने का इंतजार कर रही थीं। उनको डर था कि कहीं बीच में टोकने पर वो नाराज हो सकते हैं। देवर के स्वभाव से वो भली -भांति परिचित थीं। बात बात पर उग्र हो जाना और हर किसी से अपनी मनमानी करवा लेना उनके फितरत में था। पति के गुजरने के बाद तो घर बाहर सभी के मालिक वही हो गए हैं। मजाल है कि कोई उनके मर्जी के बिना पंख भी फड़फड़ा ले ।दोनों भाइयों के स्वभाव में जमीन -आसमान सा फर्क़ था।
जैसे ही चाचा जी ने नौकर को खाली कप ले जाने के लिए जोड़ से आवाज लगाई तो झट से संध्या जी ने आगे बढ़कर उनके हाथों से कप ले लिया । पीछे पलटकर चाचा जी ने उन्हें देखा और भृकुटी टेढ़ी करते हुए कहा- यहां क्यों खड़ी हैं भाभी?
“जी छोटे बाबू ,आज सात तारीख हो गया मुन्ना को पैसा नहीं गया वह इंतजार कर रहा होगा “।
“अरे तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा। काम का न काज का दुश्मन …. ।”
संध्या जी रुआँसी होकर बोली -” छोटे बाबू ऐसा मत कहिये वह पढ़ने गया है पढ़ ही रहा है। पढ़कर कुछ न कुछ तो करेगा ही ! तब तक तो हमारा फर्ज है कि उसे हम किसी तरह की कोई कमी न होने दें “।
चाचा जी की आवाज तल्ख हो गई ।भड़कते हुए बोले-“देखिए भाभी,आपके बेटा को पढ़ाना मतलब गोइठा में घ.. सूखाना दोनों एक बराबर है। उसको कहिये आई .ए .एस का भूत माथे पर से उतारकर कोई छोटी -मोटी नौकरी की तैयारी करे ।”
संध्या जी की आँखें खुद- बखुद गिली हो गईं। मिन्नतें करती हुई बोली-” आप अपने भतीजे पर भरोसा रखिए छोटे बाबू वह पढ़- लिखकर इस खानदान का नाम बढ़ायेगा और वक्त पड़ा तो एक न एक दिन वह सबके काम आएगा ।”
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“अब बस भी कीजिए कशीदाकारी करने जरूरत नहीं है देखिए भैया अब रहे नहीं इतना बोझ हम कहाँ से उठाएंगे। मुझे अपने बाल बच्चों के लिए भी तो सोचना है सब आप के बेटे पर ही लूटा दूँ क्या? “
“नहीं -नहीं बाबू मैंने ऐसा कब कहा मैं तो बस विनती कर रही हूँ। आखिरकार आपके भैया हम माँ -बेटे को आपके भरोसे ही तो छोड़ गये हैं। “
हाँ -हाँ याद दिलाने की कोई आवश्यकता नहीं है। भैया अगर मेरे भरोसे छोड़ कर गये हैं तो आपको भी मुझ पर भरोसा रखना चाहिए । हाँ की नहीं !
संध्या जी ने देवर की बातों पर सर हिलाकर हामी भरी।
आप मुन्ना को कहिये मन लगाकर पढाई करे देर- सवेर पैसे चले जाएंगे। ठीक है न! और आप कल ऑफिस में आइये मैं वहाँ आपको दिखाना और समझाना चाहता हूँ कि भैया के जाने के बाद बिजनेस में क्या नफा -नुकसान चल रहा है।
संध्या जी बीच में बोल पड़ी-” कैसी बात कर रहे हैं आप दोनों भाई मिलजुलकर साथ -साथ अब तक बिजनेस चलाते आ रहे थे। “वो” नहीं हैं तो क्या हुआ आप तो हैं न फिर मुझे क्या पड़ी है ऑफिस में आने की छोटे बाबू ।”
“मैं मानता हूँ कि अब मुझे ही सारी जिम्मेदारी निभानी है चाहे वह घर हो या बिजनेस। लेकिन लोग तो यही कहेंगे न की अकेले भाई के हिस्से का भी मलाई खा रहा है।” चाचा जी अपनी बात को पान की तरह चबा चबाकर बोल रहे थे।
” छोटे बाबू, जब तक आपके भाई थे तब तक तो किसी ने कुछ नहीं कहा। अब हमारे बीच लोगों की क्या जरूरत है। लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता छोड़ दीजिये मुझे आप पर पूरा भरोसा है। मैं इतना जानती हूँ कि हम और हमारे बच्चे की जिन्दगी आपके सहारे टिकी हुई है।”
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“इसी भरोसे को साबित करने के लिए तो मैं आपको ऑफिस में आने के लिए कह रहा हूँ भाभी।” मैं चाहता हूँ कि भैया की कुर्सी पर बैठकर आप उसका मान बढ़ायें।
संध्या जी खुशी से बोली -” ठीक है बाबू आपकी इच्छा है तो मैं कल आ जाऊँगी ऑफिस में।”
अगले दिन स्नान पूजा करने के बाद संध्या जी ऑफिस पहुंचीं शायद उन्हें पता ही नहीं था कि वक्त के साथ सब-कुछ बदल जाता है रास्ता भी और वास्ता भी। चाचा जी पहले से ही सारे कागजात तैयार रखे हुए थे। संध्या जी के बैठते ही बोले -“भाभी यह जरूरी पेपर है इसपर आप सिग्नेचर कर दीजिये।”
“लेकिन यह तो सादे पेपर हैं?”
“ओह्ह भाभी आप ज्यादा दिमाग क्यूँ लगा रहीं हैं जो मैं कह रहा हूँ वैसा कीजिये ।”
संध्या जी अचानक से खड़ी हो गईं और बोली-” नहीं-नहीं ऐसा मैं हरगिज नहीं करूंगी चाहे जो हो मैं इस पेपर पर अपना साइन नहीं करुँगी। आपके भैया असमय ही इस दुनिया से दूर चले गए ।पर वे मुझे एक सीख हमेशा देते रहे कि संध्या अपने सिवा किसी पर भरोसा मत करना।
संध्या जी उठकर जाने लगी तो चाचा जी ने टोका-” सुनिए,सुनिए भाभी , इतनी अकड़ ठीक नहीं है।कभी सोचा है किसके भरोसे आप दोनों माँ -बेटे का जीवन कटेगा ?”
संध्या जी ने पलटकर कहा-” हाँ छोटे बाबू आप चिंता मत कीजिए मुझे खुद पर भरोसा है ।”
#भरोसा
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार