औरत का औरत पर भरोसा…!! – मीनू झा

कैसी औरत है ये दुकान वाली विनय..इसकी दुकान पर बैठकर दिन भर मनचले आती जाती लड़कियों पर फब्तियां कसते रहते हैं और उन्हें मना करना,डांटना फटकारना तो दूर ये भी टुकुर टुकुर देखती और मजे लेती रहती है।

नेहा उसकी भी मजबूरी तो समझो,बेचारी का पति पहले चाय पान की दुकान चलाता था..उसका जबसे एक्सीडेंट हुआ तब से तो वो नाम मात्र का ही मर्द रह गया,सुबह उसे लाकर वो बिठा देती है और सारा काम खुद करती है..अब अगर उन मनचलों का विरोध करने लगी और उन्होंने कोई हंगामा किया या उसे या उसके परिवार को हानि पहुंचाने की कोशिश की तो वो क्या करेगी? शायद इसीलिए चुप रह जाती हो..

किस दुनिया में है आप विनय..वो इतनी भी सीधी सादी और डरपोक औरत नहीं है..परसों उसका किसी मर्द से जबरदस्त झगड़ा हुआ था और इतनी गन्दी गन्दी गालियां दे रही थी उसे कि आसपास के लोग बगलें झांकने लगे थे…तभी तो मैं कह रही हूं आपसे इतनी सशक्त होकर भी वो क्यों नहीं कुछ कहती उन आवारा लड़कों से पता नहीं…यही तो दिक्कत है हम औरतों की..औरत होकर भी औरत का साथ नहीं देते,एक दूसरे पर भरोसा नहीं कर सकते…।

अब इस मामले में मैं क्या बोल सकता हूं.. ज्यादा बोला तो मेरी ही शामत आ जाएगी..वैसे मुझे लगता है तुम्हें इस विषय पर कुछ करना चाहिए.. क्योंकि तुम अक्सर इस बात को लेकर परेशान रहती हो ना कि उसकी सास अच्छी नहीं,उसकी जेठानी उसका साथ नहीं देती,उसके ऑफिस की महिला कलिग उसके साथ खड़ी नहीं होती..फलाना ढिमकाना…।

करने का तो मन बहुत होता है विनय..पर लगता है कोई मेरी बात क्यों मानकर बदलेगा खुद को मैं ना कोई प्राइम मिनिस्टर हूं ना मेरे राज में कोई बसता है,उल्टे टका सा जवाब मिल जाएगा…काश कुछ दिन के लिए मुझे एक सुपर पावर मिल जाती ना तो मैं दुनिया की हर औरत के दिल में दूसरी औरत के प्रति प्रेम, सम्मान और एक दूसरे के लिए खड़े होने का…एक दूसरे पर भरोसा करने का जज़्बा भर देती।

सुपर पावर मिल जाए…औरतें किसी सुपर पावर से कम है क्या नेहा?? औरतें अगर ठान लें तो कुछ भी कर सकती है,किसी काम को करने की शिद्दत और जोश खुद ब खुद इंसान के अंदर सुपर पावर ले आती है नेहा..देखो दुनिया की औरतों को बदलने से पहले तुम एक छोटा सा लक्ष्य लो..अपने आसपास तुम्हें जिनको बदलना है उनको चुनो और कोशिश तो करो..क्या पता उन्हें एहसास भी ना हो कि वो जाने अंजाने में अपनी ही जाति की दुश्मन बन बैठी है।

पर कैसे विनय??

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देखो वो‌ तो तुम्हें सोचना होगा क्योंकि सुपर पावर तुम्हारे अंदर है..तुम कुछ भी कर सकती हो इतना यकीन है मुझे तुमपर..आगे तुम सोचो–




कहकर विनय ऑफिस की फाइलों में उलझ गया और नेहा ये सोचने में कि एक प्रयास तो करना बनता है..सच कहा विनय ने अगर चार औरतों के अंदर भी वो औरतों के प्रति संवेदनशीलता जगा पाई तो वो चार सोलह,चौसठ और धीरे धीरे और आगे बढ़ता जाएगा ना…कल से मिशन स्त्री शुरू…।

रात भर नेहा को नींद नहीं आई…सुबह टहलने निकली तो देखा वो चाय की गुमटी वाली दुकान पर झाड़ू लगा रही थी।

क्या नाम है तुम्हारा बहन…कितने बच्चे हैं तुम्हारे??

चंदा..तीन बच्चे हैं…दो लड़का एक लड़की??आप ये क्यों पूछ रही हो मैडम जी?? कहीं कामवाली तो नहीं ढूंढ रहे.. देखिए मैडम मैं आज दुकान पर इसीलिए आकर बैठी..ताकि मेरे बच्चों की जिंदगी ना खराब हो..वो अपनी पढ़ाई लिखाई कर सकें..खाना कपड़ा मिल सके उन्हें…पर आप बड़े लोगों को ये सब कहां समझ में आएगा…हर दिन कोई ना कोई आकर यहीं पूछता है..बेटी है तुम्हारी?? घर का काम जानती है??करेगी?? 

तुम्हारी बेटी तुम्हें प्यारी है ना??तुमपर उसे और उसे तुम पर भरोसा तो है ना?

क्यों नहीं होगी मैडम..और दुनिया की कौन सी औरत ऐसी होगी जिसे अपनी बेटी प्यारी नहीं होगी और किस मां बेटी को एक दूसरे पर भरोसा नही होगा??

तो चंदा.. तुम्हारे दुकान के आगे से गुजरने वाली हर लड़की किसी ना किसी की प्यारी बेटी ही तो है..तुम्हारी दुकान पर बैठकर जो लड़के उनपर फब्तियां कसते हैं वो जुमले अपनी बेटी के लिए तुम सुनना चाहोगी कभी… कोई मां नहीं सुनना चाहेगी चंदा, गरीब हो चाहे अमीर..।सोचो हम औरत होकर औरतों के खिलाफ लंफगों मनचलों की हरकत पर आवाज नहीं उठाएंगे तो क्या कृष्ण आएंगे इस युग में हमारी रक्षा करने??

मैडम…पंगा लेना नहीं चाहती मैं दूसरों की खातिर किसी से..

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दूसरी नहीं है वो बच्चियां भी चंदा..मेरी तुम्हारी समजात है..आज तुम उनके लिए खड़ी होगी तभी कल को वो किसी और लिए खड़े हो पाने की हिम्मत जुटा पाएंगी..तुमने देखा है तुम्हारी दुकान के आगे से गुजरते वक्त उनके चेहरे की असहजता और घबराहट?? तुम नहीं चाहती ऐसा समाज जहां औरतें भयमुक्त हों??

नेहा ने भाषण तो दे दिया पर उसे लगा झाड़ू लगाते लगाते चंदा ने उसकी बातों,सोच और सलाह पर भी झाड़ू फेर दिया क्योंकि वो उतनी सीरियस नहीं दिखी नेहा को।

बुझे मन से पहले ही प्रयास में हार चुकी नेहा घर के कामों को निपटाने में लग गई..सारा काम खत्म कर नाश्ता कर…मशीन के कपड़ो को बाल्टी में डाल बालकनी में रखने गई तो कदम ठिठक गए उसके..

क्यों रे छोरों…रोज देखती हूं तुम सबको..मां बहन नहीं है क्या तुम्हारे घर में?? पढ़ते लिखते हो नहीं निकम्मों कम से कम इन लड़कियों को देखकर तो शर्म कर लो‌ जो पढ़ने जाती है..चंदा उन लफंगों को लताड़ रही थी और वो लड़के चंदा के इस नए रूप पर आश्चर्य से उसकी तरफ देख रहे थे..।




यूं दीदे फाड़ फाड़ कर मेरी तरफ क्या देख रहे..पढ़ लिख नहीं सकते तो ये सब करके किसी को परेशान करने की बजाय कुछ कमाने धमकाने की ही सोचो ताकि मां बाप को खुशी दे पाओ..ये लड़कियां ताड़कर कौन सा तीर मार लोगे

लड़कियां..एक तरफ से थैंक्यू आंटी थैंक्यू आंटी बोलने लगी और वो लड़के धीरे धीरे करके वहां से हटने लगे..।

बाल्कनी से झांकती नेहा को चंदा ने ऐसे देखा मानो कह रही हो खड़ी हुई ना मैडम मैं बेटियों के लिए..तो नेहा ने उसे थम्सअप का इशारा किया…।

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सच कहा था विनय ने हर औरत के अंदर एक सुपर पावर है ,बस पहचानने और आगे बढ़ने की जरूरत है.. स्त्री को स्त्री की नजर में उठाते जाना है, स्त्री को स्त्री पर भरोसा दिलाना है…ताकि ये सुपर पावर द्विगुणित चौगुनित होता रहे और औरतें एक दूसरे की कद्र करती रहें भरोसा करती रहें..।

नेहा का अगला मिशन.. उसकी चाची सास और उनकी नौकरीपेशा बहू के बीच में तालमेल बिठाकर उनके मन में एक दूसरे के प्रति आदर और प्रेम का भाव संचालित करना था…और अब उसका मन कह रहा था वो कर लेगी..सुपरपावर जो है उसके अंदर…।

 #भरोसा 

मीनू झा 

 

 

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