रोज की तरह ही शाम को दरवाजे पर खड़ी सुनयना सागर का इंतजार कर रही थी।हालांकि वह जानती थी उसका इंतजार व्यर्थ ही है। क्योंकि सागर आजकल कभी कभी हफ़्तों तक नही आता था, या बहुत देर रात को नशे में धुत होकर आता था l
परंतु सुनयना फिर भी हर शाम को सात बजे वह दरवाजे पर हमेशा की तरह खड़ी हो ही जाती थी उसके इंतजार में l, क्यों कि उसको भरोसा था कि एक दिन वह वक्त वापस आयेगा तब सागर फिर से उसी उमंग उत्साह के साथ वापस घर आने लगेगा उसके व बच्चों के लिये l
पहले सागर ऐसा नहीं था, वह बहुत समझदार अपने परिवार के प्रति पूर्ण समर्पित कर्तव्यनिष्ठ
एक जिम्मेदार पिता व पति था l
जो अपने परिवार को बहुत प्यार करता था l उसकी खुद की कम्पनी थी जो कि बहुत अच्छी खासी चल रही थी l परंतु जब उसकी कम्पनी में रोजी उसकी पर्सनल सेक्रेट्री बन कर आई थी वह उसके चक्कर में ऐसा पड़ा कि उसकी दुनियां ही बदल गई थी l
सुनयना के पास आकर उंसके दोनो बच्चें जो कि बहुत छोटे थे और नासमझ थे,वह पूछने लगे मम्मी पापा कब आयेगें ?
वह क्या बताती बस दोनों बच्चों को बाहों में समेट बोली आते ही होंगे ।चलो तुम खाना खा लो, नही माँ आज हम पापा के साथ ही खाना खायेंगे कहकर वह दोनों भागकर कमरे में चले गये थे।
रात घिर आई थी रात के ग्यारह बजने वाले थे वह दरवाजे पर आई खोल कर देखा बाहर सन्नाटा छा गया था।वह बच्चों को बुलाने गई पर वह दोनों पढ़ते पढ़ते भूखे ही सो गये थे। उसकी आँखों में आंसू भर् आये थे, वह खाना लेकर आई और दोनों बच्चों को उठाकर अपने हाथो से उनको खाना खिलाने लगी बीच बीच में अपनी भर आई आँखों को भी धीरे से पोंछ रही थी l
जब से सागर की नई स्टेनो आई थी सागर अक्सर देर से घर आने लगा था।वह एक बार घर आई तो सुनैना ने देखा मॉर्डन परिवेश अर्धनग्न छोटे कपड़ो में सिगरेट के छल्ले उड़ाती हुई मेकअप से लिपी पुती वह कोई बार गर्ल समान लग रही थी।
उसको देख उसने सागर से कहा भी यह लड़की ठीक नही लग रही है, इस पर ज्यादा भरोसा मत करना l इसको नौकरी से निकाल दो पर वह य़ह सुनकर सुनयना पर ही गुस्सा हो गया था l
सागर धीरे धीरे उसके जाल में फंसता चला गया l
उंसके बाद तो रोज का नियम ही बन गया था सागर देर रात नशे में धुत्त होकर आता और सो जाता था।उसके आने तक बच्चे सो जाते थे और उसके उठने के पहले वह स्कुल जा चुके होते थे l इस कारण उसको बच्चों से मिले काफी समय हो जाता था।
सुनयना की खुशहाल गृहस्थी को मानों रोजी नामक बला की नजर लग गयी थी l
रोजी की उन्मुक्त जीवन शैली ने सागर को ऐसा दिवाना बना दिया था कि उसके कारण वह अपनी कम्पनी में ध्यान भी नही दे पाता था । सुनयना के बहुत समझाने के बाद भी उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा था l
वह अगर कुछ बोलती तो वह उससे लड़ने लगता था l
धीरे धीरे कम्पनी की हालत खराब होती चली गई उसके सारे काम करने वाले नौकर भी उसके बदलते व्यवहार और रोजी के बर्ताव के कारण धीरे धीरे नौकरी छोड़ कर चले गये थे l
एक दिन रोजी ने भी उसको
धोखा दिया और लंबी चपत और कम्पनी के बहुत से शेयर अपने नाम कर सागर को लम्बी चपत लगा कर दूसरे लड़के के साथ भाग गई।
सागर उसके धोखे से एक दम जमीन पर आ गिरा, वह सम्भल पाता तब तक बहुत देर हो चुकी थी l
आज उसको घर की सुनयना की अहमियत समझ आ गई
थी l
आज वह लुटा पीटा हारे हुए जुआरि के समान हो चुका था l
रोज की तरह आज भी सुनयना दरवाजे पर खड़ी थी सागर के इंतजार में उसी समय सागर की कार उसको दिखी जो दरवाजे पर आकार रुकी तो सुनयना को आश्चर्य के साथ विश्वास नहीं हुआ एक पल के लिए, पर उसने देखा सागर थके हुए कदमो से उतर कर घर के दरवाजे पर था।
वह बोला सुन्नी मैं लौट आया
वापस तुम्हारे पास मुझकों माफ कर दो मैं स्वच्छ पानी व कीचड़ में अंतर भूल गया था।
समाप्त
मंगला श्रीवास्तव इंदौर
स्वरचित मौलिक कहानी