सुषमा जी का सपना था पति के रिटायर होने के बाद पूरे भारत के तीर्थ यात्रा करेंगी। एक बेटा और बेटी थी जिसकी शादी पहले ही कर दी थी। बेटा हैदराबाद में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। बेटी की शादी चार्टर्ड अकाउंटेंट से किया था जो दिल्ली में रहती थी। जीवन हंसी खुशी बित रही थी। घर के काम के लिए नौकरानी रख लिया था। छुट्टियों में बेटा और बेटी मिलने आ जाते थे और साल में एक आध बार अपने पति के साथ बेटा और बेटी के घर मिलने चले जाते थे।
अगले महीने सुषमा जी ने अपने पति के साथ जगन्नाथ पूरी जाने का प्लान बनाया था। शाम को भुनेश्वर की फ्लाइट थी फिर बाइ टैक्सी वही से जगन्नाथ पूरी जाते। लेकिन अचानक सुषमा जी के पति विनोद जी की तबीयत बिगड़ी। उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी। जल्दी से उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया।
बेटा और बेटी दोनों को खबर कर दिया गया आने के लिए। 1 घंटे बाद डॉक्टरों ने बताया विनोद जी अब नहीं रहे।
पति के जाने के बाद सुषमा जी के जीवन में अंधेरा छा गया जहां उन्होंने सपना देखा था कि पति के साथ पूरे भारत की यात्रा करेंगी। लेकिन किस्मत ने तो उन्हें अकेला कर दिया।
तेरहवीं खत्म होने के बाद बेटा ने कहा, “मां आप अकेले यहां कैसे रहेंगी अब आप चलिए हमारे साथ हैदराबाद।”
सुषमा जी अपनी नौकरानी चंपा को अपना घर देखभाल के लिए सौंपकर बेटे के साथ हैदराबाद चली गई।
सुषमा जी के बेटे और बहू दोनों नौकरी करते थे। हैदराबाद पहुंचने के बाद दोनों अपनी दिनचर्या में लग गए सुबह होते ही बेटे और बहू ऑफिस के लिए निकल जाते। बच्चे भी स्कूल चले जाते। घर में सुषमा जी अकेले रह जाती थी।
ऐसे तो घर में कोई टीवी नहीं देखता था लेकिन सुषमा जी के आ जाने से डी टी एच का कनेक्शन ले लिया गया था। ताकि सुषमा जी का मन लगता रहे। सुषमा जी की सेवा करने में बेटे बहू कोई कमी नहीं रखते थे। समय पर दवाई, फल और पौष्टिक आहार सब उपलब्ध हो जाता।
लेकिन सुषमा जी जब अकेले में होती उनके पति विनोद जी की याद सताती रहती थी। उन्हें अपने इलाहाबाद का घर और शहर बहुत याद आता।
बेटी बहू के साथ रहते हुए 1 साल बीत गए। लेकिन सुषमा जी कभी भी पूरी तरह से खुश नहीं रहती थी।
एक दिन उन्होंने लंच के समय बेटे और बहू से कहा, बेटा मुझे यहां रहने में कोई परेशानी नहीं है बहू मेरी बहुत अच्छे से ख्याल रखती है लेकिन बेटा मैं क्या कहूं मेरा मन यहां नहीं लगता है मैं पूरी रात जगी रहती हूं तुम्हारे पापा की याद सताती रहती है। बेटा मुझे अपने शहर इलाहाबाद पहुंचा दो। चम्पा है ना वहां पर मेरी देखभाल करने के लिए। फिर तुम लोग भी तो आते जाते रहोगे। जब पूरी तरह से लगेगा अब मेरे बस में कुछ भी नहीं है फिर मैं तुम लोगों के साथ रहने आ जाऊंगी।
बेटा उस घर में तुम्हारे पापा की यादें जुड़ी है कितने प्यार से तुम्हारे पापा ने उस घर को बनवाया था। एक साल भी उस घर में नहीं रह सके भगवान ने उन्हें हमसे छीन लिया। बेटा कुछ भी गलत मत समझना तुम दोनों ने बहुत किया तुम दोनों जैसा बेटा और बहू हर मां बाप को दे। लेकिन बेटा मुझे मेरे घर पहुंचा दो।
मुझे वही मानसिक शांति मिलेगी।
आप चिंता मत करो कल मैं आपको डॉक्टर के पास ले चलूंगा। नहीं बेटा मुझे कुछ नहीं हुआ है मुझे बस मेरे घर पहुंचा दो। बेटा अमित थोड़ा गुस्से होते हुए बोला आप समझने की कोशिश क्यों नहीं करती हो वहां जाकर क्या करोगी यहां पर तो हम आपको देखभाल करने वाले हैं वहाँ कौन करेगा।
सुषमा जी जब जिद पर अड़ गई कि मुझे किसी भी हालत में अपने घर जाना ही है तो बेटा अमित ने अपनी बहन राखी के पास फोन किया। राखी ने भी अपनी मां को बहुत समझाया वो किसी की बात सुनने को तैयार नहीं थी उनके दिमाग में ये बात घुस गई थी वो किसी भी हाल मे इलाहाबाद जाएंगी।
अगले दिन अमित ने अपनी मां को डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर ने जांच करके बताया यह शारीरिक रूप से तो ठीक है लेकिन मानसिक रूप से परेशान हैं। कुछ दिन के लिए ये जहां रहना चाहती हैं उनको वहीं पहुंचा दो।
मां को अकेले इलाहाबाद भेजना अमित को सही नहीं लग रहा था। लेकिन मां के जिद के आगे अमित को झुकना ही पड़ा.
सुषमा जी अपने घर इलाहाबाद आकर बहुत खुश थी।
दोस्तों आज के परिवेश में अधिकांश देखा जा रहा है की बेटे मां बाप को अपने पास तो रखना चाहते हैं लेकिन मां बाप अपने बेटे के साथ नहीं रहना चाहते। क्योंकि अधिकांश माता-पिता छोटे शहरों या गांव के होते हैं और उन्हें खुले में रहने की आदत है उनका अपना एक मित्र मंडली होता है लेकिन बेटों के साथ बड़े शहर में आकर दो कमरे के फ्लॅट में उनकी जिंदगी सिमट जाती है।
अब ऐसे में बेटा भी करे तो क्या करें उसका भी अपना परिवार है अब नौकरी छोड़ कर वापस गांव तो नहीं लौट सकता और मां-बाप की भी मजबूरी है जहां वह अपनी पूरी जिंदगी गुजार दिए हैं वही उनका मन लगता है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसका कोई सलूशन नहीं है अगर आपके पास ऐसा कोई सलूशन है तो कमेंट करके जरूर बताइएगा।
Mukesh Patel