तुम बहू हो बहू की हद में ही रहो…! – भाविनी केतन उपाध्याय 

शर्वरी की शादी अभी जतिन से पांच महीने पहले ही हुई है, शर्वरी के ससुराल में जतिन के अलावा उसके सास-ससुर और दो देवर भी हैं। शर्वरी की सासूमां सरला जी बहुत सुलझी हुई और स्वभाव से बेहद सरल नाम के अनुरूप ही महिला हैं। वो शर्वरी को अपनी बेटी की तरह ही रखती हैं…… बस शर्वरी को सरला जी की एक बात खटकती है कि सुबह जितनी खुश सरला जी होती है वो शाम होते होते इतनी चिड़चिड़ी क्यों हो जाती हैं ?

शर्वरी पांच महीने से उसका पता लगाना चाहती थी पर उसे एक भी मौका नही मिला। पर जब शर्वरी को बुखार था और वो छुट्टी पर थी तो उसने मन ही मन सरला जी के चिड़चिड़ा होने के कारण जानने की कोशिश की और तीन दिन की जेहमत के बाद उसे वो कारण पता चल भी गया, परंतु जबकि घर में सारे मर्द ही थे तो अब उन्हें औरत के नजरिए से दिखाना एक चैलेंज के जैसा यानिकि लोहे के चने चबाने जैसा काम था ..!

परंतु शर्वरी को अपने खुद के भविष्य के लिए और अपनी मॉं समान सासूमां सरला जी के बिगड़ते स्वास्थ्य और बिगड़ते स्वभाव को नियंत्रित करना बहुत ही आवश्यक था। वैसे कहा जाए तो सरला जी की प्रॉब्लम बहुत ही छोटी सी नजर आएंगी पर शायद हर घर की महिलाओं की आम समस्या ही लगती है जो गृहिणी है।

सरला जी की समस्या ये है कि उनका प्रतिदिन का एक जैसा रुटीन। ना ही उसमें कोई बदलाव कर सकती है वो और ना ही कोई काम छोड सकती है वो । सब को समय पर चाय-नाश्ता देना और टिफिन बॉक्स देना समय की पाबंदी के साथ आवश्यक है। फिर घर के काम झाड़ू बर्तन , कप़ड़े और उपर से मर्दों की ये सोच की हम तो दिन भर बाहर रहते है तो तुम्हें कामवाली बाई की क्या जरूरत ? तुम सब काम आराम से कर सकती हो।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

भाई का हक – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

कुछ बाजार से लाने और सब्जी वगैरह लाने जाना कभी सरला जी चाहती तो उन्हें यह कहकर घर में रुकने के लिए मजबूर किया जाता कि अब तो ऑनलाइन शॉपिंग कर लो या हमें बोल दो तो हम आते-आते ले आएंगे । बेचारी भोली-भाली सरला जी कभी बोल ही नहीं पाई कि मुझे भी बाहर जाने का मन होता है …

आगे पढ़ेंगे की शर्वरी ने किस तरह घर के मर्दों का नजरिया बदला और अपनी सासूमां के जीवन में खुशियां भर दी।

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद,

आप की सखी 

भाविनी केतन उपाध्याय 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!