अन्धविश्वास – बीना शुक्ला अवस्थी

आज गौरांगी आफिस से आई तो घर के निचले भाग में स्थित सदा खुली रहने वाली देवर की दुकान बन्द थी। ऊपर आई तो देवर बुखार के कारण लेटा था, पास बैठी सास और ननद उसे सहला रहीं थी। देवर की तबियत पूॅछने पर दोनों ने किसी अज्ञात टोने टोटके करने वाले को रो रोकर गालियॉ देना और कोसना शुरू कर दिया। ( शिक्षित होने पर भी गौरांगी की ससुराल में इस तरह की बातों को बहुत माना जाता था और वैसा ही मुहल्ला था ) पूरी बात सुनकर गौरांगी ने अपना सिर पीट लिया, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या प्रतिक्रिया दे – हॅसे या रोये।

 गौरांगी की ससुराल में परम्परा थी कि दीवाली के लिये दीपकों के साथ मिट्टी के खिलौनों और दो मटकियों ( सकरे मुॅह का छोटा सा घड़ा जैसा पात्र ) की पूजा भी होती थी। एक वर्ष तक सहेजकर रखने के बाद गणेश लक्ष्मी की पुरानी मूर्तियों के साथ उन्हें भी हटा दिया जाता था।

चूॅकि उसके घर का चबूतरा टाइल्स का होने के कारण सुंदर दिखता था तो मिली जुली आबादी वाले इस मुहल्ले के बच्चे अक्सर चबूतरे पर खेला करते थे । गौरांगी आफिस जाते समय जो वस्तुयें उसके काम की नहीं होती थीं जैसे मोतियों की मालायें, रंग उतरी चूड़ियॉ और कड़े, नकली जेवर, सजावटी सामान और ऐसे ही तमाम सामान चबूतरे पर रख देती थी, जिससे यदि बच्चे खेलना चाहें तो उठा लें वरना सफाई करते समय सफाईकर्मी झाड़ू से सफाई कर देता। उसी चबूतरे पर वह पिछले वर्ष के मिट्टी के खिलौने, दिये आदि सारी सामान दीवाली के बाद आफिस जाते समय रख देती थी। यह बात घर में सब लोग जानते थे।

तीन साल पहले गौरांगी ने पुरानी मटकियों को काले और सफेद रंग से पेंट करने के बाद गोटे, सितारे आदि लगाकर बहुत सुंदरता से तैयार करके बैठक में सजा लिया। नवरात्रि की पुरानी जालीदार माता रानी की चुनरियों के दोनों मटकियों पर ऊपर मुॅह से लेकर नीचे तक फेवीकोल से चिपके रहने के कारण भीतर से झॉकते सितारे, गोटे और कॉच के टुकड़े और भी सुन्दर लग रहे थे। नई दुल्हन सी सजी दोनों मटकियॉ हर आने वाले का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती थीं। कई लोगों ने बाद में खुद भी बैठक में सजाने के लिये ऐसी मटकियॉ तैयार की थीं।

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तीन साल में मटकियॉ पुरानी हो गईं तो इस साल गौरांगी ने उन्हें बैठक से हटा दिया था और आज सुबह आफिस जाते समय उसने  पिछली दीवाली के खिलौने, तस्वीरों पर चढ़ी बनावटी फूलों तथा मोतियों की मालायें, मूर्तियों के पहने हुये पुराने वस्त्र उन्हीं दोनों मटकियों में भरकर हमेशा की तरह नीचे चबूतरे पर रखकर आफिस चली गई।

सुबह गौरांगी और उसके पति के आफिस जाने के बाद जब देवर दुकान खोलने गया तो चबूतरे पर लाल कपड़े में लिपटी मटकियों को देखकर हंगामा मचा दिया। उसे लगा कि किसी ने टोटका करके लाल कपड़े में बॉधकर कुछ रख दिया  हैं। मुहल्ले के लोग इकठ्ठे हो गये, किसी में उस लाल कपड़े में लिपटी सामग्री का स्पर्श करने का साहस नहीं था, यहॉ

तक कि जमादार ने भी चबूतरे पर झाड़ू लगाने से मना कर दिया। आखिर देवर दुकान बन्द करके घर आ गया और उसे बुखार आ गया।

पति भी आफिस से आ चुके थे, वो भी इस अजीबोगरीब घटना से परेशान और क्रोधित थे। गौरांगी ने देवर से पूॅछा – ” उस कपड़े में क्या था, क्या आप या किसी ने देखा था?”

” कैसी बातें करती हो गौरांगी, ऐसी वस्तुयें कौन छुयेगा? पता नहीं किस उद्देश्य से कौन रख गया?” गौरांगी के पति ने उसे ही डॉट दिया।

गौरांगी ने पति से कुछ नहीं कहा और देवर से कहा – ” अगर आप पास जाकर देख लेते तो अपनी बैठक में रखी मटकी और तस्वीरों से उतरी पिछले साल की मालायें अवश्य पहचान लेते।”

फिर उसने सास और ननद से कहा – ” आप सबको पता है कि हर साल सभी खिलौने और पुराना सामान मैं चबूतरे पर रख देती हूॅ  और सारा दिन इतना हंगामा मचता रहा लेकिन आप लोगों ने नीचे उतरकर एक बार देखना भी जरूरी नहीं समझा? अपने घर की सभी सामान तो आप लोग भी पहचानती हैं।”

सब खिसियाये से एक दूसरे का मुॅह देख रहे थे। फिर पति ही बोले – ” अब इस बात को यहीं खतम करो, किसी को पता नहीं लगना चाहिये कि वह सामान हमारे घर की थी। अब चबूतरे पर कुछ नहीं है।”

” कोई बच्चा ले गया होगा।” कहकर गौरांगी किचन की ओर चली गई।

आधे घंटे के अन्दर देवर का बुखार गायब हो चुका था लेकिन उसके बाद गौरांगी ने चबूतरे पर कुछ भी रखना छोड़ दिया।

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

 

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