नई उम्मीद

संचिता बड़े-बड़े कदमों से तेज-तेज चलने लगी…आज कोई आटों नहीं मिला पैदल ही घर जा रही थी रात के नौ बजने वाले थे रास्ता सुनसान था…दिसंबर था तो ठंड भी बहुत थी…!!!!

   तभी चार नौजवान सामने से आते दिखें…अच्छे लग रहे थे देखने में तो…थोड़ी देर बाद संचिता और वो चारों आमने-सामने थे…पता नहीं क्यूँ वो उनको देखकर मुस्कुराई… आगे बढ़ गई…!!!!

  पर थोड़ा आगे बढ़कर वो चारों संचिता की तरफ मुड़ गये और पीछा करने लगे अब वो बहुत डर गयी थी…वो और तेज चलने लगी घर अब कुछ ही दूर था तो उसे थोड़ी हिम्मत आ गई…वो जोर-जोर से दरवाजा खटकाने लगी तो मम्मी ने …क्या हो गया बोलतें हुए दरवाजा खोला..!!!!

 अन्दर आकर उसने मुड़कर देखा तो वो लड़के वापस जा रहें थे तो संचिता उनके पास गई और बोली कि तुम मेरा पीछा क्यूँ कर रहे थे…??

  उन्होंने कहा…दीदी हम आपका पीछा नहीं कर रहें थे हमने आपकों अकेला देखा तो हम आपकों घर छोड़नें आ रहे थे…!!!!

  संचिता ने बोला कि ये तो उसकी सोच से परे…नई उम्मीद थी…सच हमेशा ऐसा हो और सबकी सोच तुम जैसी हो तो कितना अच्छा हो…ऐसा हो सकता है बस हमें अपनी सोच बदलने की जरूरत है…!!!!

  उनमें से एक ने कहा कि अगर लड़कियों को समझाया जाता कि देखो उसके साथ ऐसा हुआ तो तुम्हें ध्यान रखनें की जरूरत है तो ये भी बताओ कि कैसे आज हमने आपको घर तक छोड़ा तो इससे सीख और भी लड़कें लें कि जब भी कोई अकेला लड़की दिखें तो उसका साथ वहाँ तक दे दो जहाँ उसे जाना है तो…मुझे लगता है खिलाफ जाने से ज्यादा साथ देने वालें होगें…तो ये नई सीख…नई उम्मीद बहुत कारगार सिद्ध होगी…!!!!

 संचिता ने कहा बिल्कुल सही कहा और मुझे यहाँ तक साथ देने के लियें…बहुत शुक्रिया….

#उम्मीद

गुरविंदर टूटेजा

उज्जैन (म.प्र.)

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