“छोटा प्रयास बड़ा बदलाव” – कविता भड़ाना

आजकल शादियों का मौसम है।

 आप लोगों का भी शादी और उससे जुड़े दूसरे समारोह में आना जाना लगा ही होगा।

कल रात मेरा भी दो शादियों में जाना हुआ।

में, मेरी दोनों बेटियों और पतिदेव के साथ अपने करीबी रिश्तेदारों के यहां गई थी। बड़ा ही सुंदर फार्म हाउस था। बिजली की रंग बिरंगी लड़ियों और दूसरे कीमती सजावटी सामानों से बिल्कुल परीलोक जैसा प्रतीक हो रहा था।

हम भी अब सुंदर सी मेज कुर्सियों वाले हाल में जाकर बैठ गए। डीजे पर बज रहे गानों के साथ मनभावन माहौल का आनंद उठाने लगे की तभी अत्याधुनिक वस्त्रों से सुसज्जित कन्याएं अपने साथ “बेरा” को लिए गरमा गर्म स्नैक्स लिए “क्या आप ये वाला स्नैक्स लेंगे”पूछ रही थी और हां कहने पर परोस भी रही थीं।

भरी ठंड में भी उन्होंने घुटनो से भी ऊंची काली स्कर्ट को सफेद रंग के टॉप के साथ पहना था, जो उनकी यूनिफार्म थी, अब आजकल का समय चूंकि दिखावे और आधुनिकता का है तो शादी जैसे पारंपरिक और रीति रिवाजों वाले समारोह को भी नए नए प्रयोगों द्वारा आधुनिकता का चोला पहना दिया गया है। 

तभी हमने खाते खाते देखा की दूसरी मेज कुर्सियों पर बैठे लड़के बार बार उन लड़कियों को बुलाते स्नेक्स लेते और भद्दी सी फब्ती कसकर हंसने लगते। ये सब बिलकुल मेरे सामने हो रहा था। 

मुझ से रुका ना गया और में सीधे उन लड़कों की टेबल पर पहुंच कर तेज आवाज में बोली की बेटा स्नेक्स से ही पेट भरोगे क्या? बार बार इन दीदी को बुला रहे हो, जाओ खाना भी लग चुका है इतनी भूख है तो वही खा लो और कहकर अपनी कुर्सी पर आकर,उन्ही की तरफ मुंह करके बैठ गई। 




मेरे विरोध का कितना असर हुआ पता नही पर वो लड़के फिर वहां से खिसक कर कहा गए पता नही।….

दो बेटियों की मां होने के नाते भी मुझे बुरा लग रहा था की छोटी छोटी उम्र की ये लड़कियां जाने किस मजबूरी के चलते ये काम करने पर विवश है । केटरिंग वाले पर भी गुस्सा आ रहा था की कम से कम शादी ब्याह जैसे पारिवारिक समारोह में ड्रेस कुछ पारंपरिक ही रख सकते थे।

ये लड़कियां कपड़ो की वजह से भी काफी असहज दिख रही थी। गंदी नजरो और भद्दी भाषा वाले जाने कितनो लोगो से ये रोज मिलती होंगी और असुरक्षा भी महसूस करती होंगी। 

बड़े बड़े पब और क्लबों में काम करने वाली लड़कियों को पूरी सुरक्षा दी जाती है, कुछ अप्रिय घटनाओं के बाद तो घर तक छोड़ने की जिम्मेदारी भी अब उन्हीं लोगों की होती है, लेकिन कुछ घंटों के हिसाब से काम करने वाली इन लड़कियों को ये सुविधा भी उपलब्ध नहीं होती है।

ये बातें भी मुझे वही काम करने आई एक लड़की ने मेरे पूछने पर बताया था, सुनकर बुरा भी लगा और सोचने पर मजबूर भी कर दिया की क्या ये साधारण बात है या बेटियो की सुरक्षा में हो रही बड़ी चूक है।

आप लोग भी यदि ऐसे समारोह में जाए तो एक बार जरूर मेरी बात पर गौर कीजिएगा और हो सके तो इन लोगो के साथ  तहजीब से पेश आए और कुछ गलत होता देखे तो विरोध भी जरूर करे, क्योंकि ये छोटे छोटे प्रयास ही आगे एक बड़े बदलाव का प्रतीक बनते है। समारोह में काम करने वालो, खासतौर पर महिला वर्ग के साथ विनम्रता और सम्मानित व्यवहार करे।

हम लोग भी जब विदा होकर बाहर निकले तो देखा वही लड़किया अब अपना काम खत्म होने के बाद घर निकलने की तैयारी में थी मगर आसपास असमाजिक तत्वों द्वारा उन्हें परेशान करना जारी था, हालांकि वो सब सुरक्षित जगह पर बैठ अपनी कैब का इंतजार कर रही थी पर बहुत असहज लग रही थी। 

मन में कई सवाल लिए हम भी घर के लिए अपनी गाड़ी से निकल तो आए पर मेरा मन इतना दुखी था तो सोचा लेखन के जरिए आप लोगो के साथ सांझा किया जाए।

आप सभी की प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।

धन्यवाद

#विरोध

कविता भड़ाना

 

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