” दीदी, कल आपके भतीजे का जन्मदिन है। आपलोग बच्चों के साथ आ सको तो बहुत अच्छा लगेगा, ” एकता ने मनुहार करते हुए अपनी ननद मधु को फोन किया।
” देखती हूं भाभी…. वैसे मुश्किल हीं है क्योंकि आपके जीजा जी को कल जरूरी काम है,” मधु ने ठंडी सी प्रतिक्रिया देकर फोन रख दिया।
ननद का जवाब सुनकर एकता का उत्साह ठंडा पड़ गया और वो वापस अपने काम में लग गई। उधर थोड़ी देर बाद हीं ननद मधु ने तसल्ली करने के लिए अपनी मां को फोन मिलाया , ” मां, ये बड़ी भाभी का फोन क्यों आया था… मुझे चीकू के जन्मदिन पर बुलाने के लिए । क्या कोई बड़ी पार्टी रखी है इस बार ??”
” अरे नहीं बेटा , ये कहां बड़ी पार्टी रखेंगे । यूं हीं घर पर केक काटेंगे । तूं रहने दे , बेकार में आने जाने का खर्चा लगेगा । ,, भारती जी फुसफुसाते हुए अपनी बेटी मधु से बोलीं ।
” हां मां, इसीलिए मैंने भी बहाना बना कर मना कर दिया। कुछ लेती देती तो है नहीं बस एक शगुन का लिफाफा पकड़ा देगी और खाना खिला देगी । पिछली बार जो साड़ी दी थी वो भी बिल्कुल आउट फैशन की थी।” मधु शिकायत करते हुए बोली।
दोनों मां बेटी एकता की बुराई करने में मग्न थीं ।
एकता बहुत हीं सरल स्वभाव की थी। मायके से भी ज्यादा कुछ नहीं लाती थी और पति की कमाई भी सीमित थी लेकिन एकता को फिर भी किसी से कोई शिकायत नहीं थी । वो तो जितना मिलता उसी में संतुष्ट रहती थी।
एकता एक गरीब घर की बेटी थी इसलिए ससुराल में सास ननद ने कभी उसे ऊंचा ओहदा नहीं दिया । और ये मानसिकता तब और ज्यादा नीचे गिर गई जब भारती जी के छोटे बेटे की शादी एक पैसे वाले घर की लड़की तनुजा से हुई और वो छोटी बहू बनकर उस घर में आ गई। उसके लाए मंहगे तोहफे और दहेज ने उसे सबके सर माथे पर बिठा दिया था।
घर के सारे काम एकता के जिम्मे हीं आते थे। तनुजा तो कह देती ,” मैंने कभी अपने मायके में काम नहीं किया।”
छोटे बेटे की नौकरी भी अच्छी लग गई थी तो उसने कह दिया, ” मेरी बीवी से काम नहीं होता तो ना सही। एक कामवाली रख लो , लेकिन घर में क्लेश नहीं होना चाहिए।”
इसपर भारती जी बोलीं ,” कामवाली की क्या जरूरत है, पहले भी तो घर के काम होते थे अब भी हो जाएंगे । सिर्फ एक छोटी बहू हीं तो ज्यादा हुई है घर में। एक जने का काम हीं कितना होता है जो अलग से कामवाली रखेंगे!”
सास और पति की सह पाकर तनुजा अब और भी बेफिक्र हो गई थी। वो तो बस सजने संवरने और घूमने फिरने में हीं लगी रहती थी। कभी मायके में कोई फंक्शन होता तो कभी पति के साथ चली जाती ।
एकता कुछ कह भी नहीं पाती थी बस पहले की तरह हीं जिम्मेदारी से हर काम करती रहती।
चीकू का जन्मदिन तो बुआ के इंतजार में बीत गया। लेकिन मधु नहीं आई।
अगले महीने मधु के छोटे भाई भाभी की शादी की पहली सालगिरह थी। मधु बहुत उत्साहित थी कि वो लोग जरूर बहुत बड़ी पार्टी देंगे लेकिन उनकी तरफ से कोई फोन भी नहीं आया। मधु ने अपनी मां के पास फोन मिलाया, ” मां.. , क्या छोटी भाभी और भाई अपनी सालगिरह की पार्टी नहीं रखेंगे ?”
” पता नहीं बेटा , लेकिन मैंने सुना था वो फोन पर कुछ होटल बुक करने की बात तो कर रही थी,” भारती जी बोलीं।
” अच्छा!! लगता है वो लोग कोई सरप्राइज़ पार्टी रख रहे हैं । मैं तो जरूर आऊंगी। मैंने भाई के लिए शर्ट और भाभी के लिए एक सूट भी लिया है गिफ्ट के लिए” चहकते हुए मधु बोली।
बिना किसी बुलावे का इंतजार किए मधु सालगिरह के दिन मायके पधार गई। तनुजा के कमरे में जाकर सालगिरह की बधाई देने के लिए जैसे ही मधु ने तनुजा को गले लगाना चाहा उसने हाथ से रूकने का इशारा किया ,” अरे दीदी, मैंने अभी अभी बाल सेट कराए हैं.”
मधु के पैर ठिठक गए, झेंपते हुए उसने कहा, ” साॅरी भाभी, आपको सालगिरह की ढेर सारी शुभकामनाएं। देखिए आपलोगों ने तो नहीं कहा लेकिन मैं ही आपको सरप्राइज़ देने आ गई।”
” थैंक्स दीदी, वो हमने बाहर का प्रोग्राम रखा था तो किसी को बुलाया नहीं। वैसे आपके भाई अभी आने वाले हैं। फिर हम दोनों होटल के लिए निकल जाएंगे” तनुजा बोली।
” हम दोनों!!!! मतलब आप लोगों ने कोई पार्टी नहीं रखी है??” मधु हैरानी से पूछ बैठी।
” दीदी, पार्टी तो है लेकिन हमने सिर्फ अपने फ्रेंड्स को हीं इन्वाइट किया है। वो क्या है ना वहां ड्रिंक वगैरह होगा तो फैमिली के बीच कम्फ़र्टेबल फिल नहीं होता… हां हम आप सबके लिए खाना आर्डर कर देंगे आपसब खा लेना। हमें तो आने में देर हो जाएगी।” तनुजा बेरूखी से बोली।
मधु तनुजा की बात सुनकर स्तब्ध रह गई । बड़ी भाभी ने तो आजतक परिवार के बिना कभी कोई सालगिरह या जन्मदिन नहीं मनाया। केक हमेशा मां हीं कटवाती है। कितने मनुहार करके सबको बुलाती है फिर भी हम नखरे दिखाते रहते हैं। और छोटी भाभी ने कितनी सहजता से कह दिया कि फैमिली के बीच कम्फ़र्टेबल फिल नहीं होता।
मधु अपना सा मुंह लेकर मां के पास लौट आई । तनुजा और छोटा भाई तैयार होकर निकल गए और भारती जी भी उनका मुंह देखती रह गई। आर्डर किया हुआ खाना आ चुका था लेकिन उनके गले से निवाला भी नीचे नहीं उतर रहा था।
एकता ने आकर पूछा, दीदी, ” आपलोग खाना क्यों नहीं खा रहे?”
” बहू , वो मेरे पेट में गैस बन रही है, मैं ये भारी खाना नहीं खाऊंगी । तूं मेरे लिए दलिया बना दे।”
” जी मां जी” कहते हुए एकता मुड़ने लगी तो मधु बोली ,
” भाभी मेरे लिए भी दलिया हीं बना लेना , ये खाना बहुत तीखा है । मुझे नहीं पचेगा”
मधु मुस्कुराते हुए रसोई में गई और दलिया बना कर ले आई। आज वो दलिया भी दोनों मां बेटी को बहुत स्वादिष्ट लग रहा था क्योंकि उसमें एकता का अपनापन और सम्मान घुला था।
सविता गोयल