लिफाफे में पड़ी जिंदगी – संगीता त्रिपाठी

विदेश में बसे पुत्र को फ़ोन कर -कर रमेश जी परेशान हो गये.। पंद्रह दिन पहले बेटे ने फ़ोन उठाया था। तब उसे बताया कि “तेरी माँ की हालत ठीक नहीं हैं.। तुझे देखने के लिये तरस रही हैं।”   ”पिता जी तीन महीने पहले भी आपने यहीं कह कर मुझे बुलाया था.। मेरे आते ही माँ ठीक हो गई.। इतनी जल्दी मेरा आना संभव नहीं हैं.। आप परेशान ना हो माँ ठीक हो जाएगी। कह रोहन ने फ़ोन काट दिया था ”.।

बिचारे रमेश जी, उधर मालती, अपनी जीवनसंगिनी को हिम्मत और आश्वासन देते.। इधर बेटे को फ़ोन मिलाते। पर बेटा अब उनका फ़ोन नहीं उठाता.।

कल से मालती जी की हालत, ज्यादा बिगड़ी लग रही थी.। कल से खाना -पीना सब छोड़ दिया, बस रोहन की रट लगाए हुये थी।  रमेश जी समझ गये, बिछड़ने की बेला आ गई..। मलाती को बोले, रोहन को फ़ोन करता हूँ,। कल तक जरूर आ जाएगा…। दूसरे कमरे में जा बिलख पड़े,। कैसी विवशता हैं। न बेटे को समझा पा रहे, न जीवनसंगिनी की इच्छा पूरी कर पा रहे..।क्या औलाद ऐसी स्वार्थी होती हैं। जिसे  अपने सुख के आगे,अपने माँ -बाप की चिंता ही नहीं.।

मालती के पुराने संदूक को खोला, क्या पता रोहन के किसी मित्र का फ़ोन नम्बर मिल जाये, जिससे वे रोहन तक खबर पहुँचा सके..। संदूक खुलते ही, एक लिफाफा गिर पड़ा.। खोल कर देखा, तो रोहन के बचपन की कई फोटो रखी थी..।फ़ोन नम्बर ढूढ़ना छोड़,वे लिफाफा ले, मालती के पास आये.। फोटो से ही सही,मालती की इच्छा तो पूरी होंगी।, तो आशा भरी निगाहों से मालती ने उनको देखा –हाँ -हाँ तेरा बेटा, जल्दी ही आ रहा, जो भी पहली फ्लाइट मिलेगी, उससे आ जाएगा..। देखो मालती ये किसकी फोटो हैं.। एक -एक फोटो मालती को दिखाने लगे,। फोटो देख मालती के सूखे अधरों पर एक मुस्कान तैर गई.।माँ हैं, बेटे को देख निहाल कैसे नहीं होंगी..।नन्हा रोहन बिना माँ के खाना ही नहीं खाता था.। रमेश जी और मालती दोनों फोटो देखते -देखते अतीत में पहुँच गये, जहाँ रोहन की किलकारी थी,।उनके कहकहे थे..।फोटो देखते -देखते  मालती चिरनिद्रा में चली गई.। रात के बारह बज रहे थे.। रमेश जी फफक पड़े..। बीमार ही सही, अब तक वो दो लोग साथ थे। आज अकेले हो गये .।




 

सोसाइटी के लोगों को बताया, तो धीरे -धीरे सब इकट्ठा हो गये.। एक आखिरी कोशिश, उन्होंने रोहन को फ़ोन करने की और की., पर आज भी फ़ोन नहीं उठा..। फिर निर्णय ले लिया, क्रिया -कर्म खुद ही करेंगें..। मालती के हाथों में रोहन की तस्वीर रह गई थी,..। उसे मालती के हाथों से निकलते समय रमेश जी रो पड़े..।लोगों की मदद से, सारे काम बिना किसी परेशानी के, ठीक से हो गया.। रमेश जी  खामोश हो गये.। एक अकेलापन उनको, असुरक्षित महसूस कराने लगा.। पत्नी का तो सब कार्य उन्होंने कर दिया। पर उनका कौन करेगा.।

 

सोसाइटी के उनके मित्र, बारी -बारी से उनके साथ रहते..। एक दिन खामोश फ़ोन अपनी तीखी आवाज के साथ बज उठा..। फ़ोन उठाते ही,-हेलो पापा, माँ अब ठीक हो गई होंगी..। मालती नहीं रही.। ठन्डे स्वर में बोल, रमेश जी ने फ़ोन काट दिया.।उसी दिन रोहन की वो तस्वीर, उन्होंने फाड़ दी…। एक स्नेह -जाल से अपने को मुक्त कर दिया.।

 

रमेश जी को उनके दोस्त प्रकाश जी अपने साथ, समाज सेवा में लगा लिया…। एक नये सिरे से जिंदगी शुरू कर दी.। बिना किसी से उम्मीद किये..।

 

इंसान, अपनी औलाद को कितने कष्ट से पालता हैं, वही औलाद बड़े होकर, माँ -बाप के कष्ट को नहीं समझता। कैरियर बनाने के चक्कर में, आज के युवा, सारे रिश्तों को भूला देते .। वे भूल जाते.. आज का युवा, कल बूढ़ा होगा.।

 

–संगीता त्रिपाठी

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