कौन सी खुशियां या ख्वाहिशों को पूरा नहीं किया… – भाविनी केतन उपाध्याय 

 

” अब जाने दो ना अनु, एक दस रुपए के बिस्किट के पैकेट की तो बात है…. इस में बात बढ़ाने और मुंह फूलाने की क्या बात है?” समीर ने अपनी पत्नी अनुराधा से कहा ।

 

अनुराधा ने जैसे सुना ही नहीं वैसे ही अपने फोन पर निगाहें गढ़ाई रखी। समीर ने उसके हाथ में से लगभग फोन खिंचते हुए कहा,” मैं तुम से बात कर रहा हूॅं, किसी ओर से नहीं। अब इतना भी रिएक्ट करने की कोई बात नहीं है।”

 

” अच्छा, ये छोटी बात है ? आप के लिए होगी छोटी पर मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है। ये छोटी छोटी ना जाने कितनी ही बातें हैं जिस की आप को कोई अहमियत ही नहीं है पर मेरे लिए यह छोटी छोटी बातें कब मेरे पैरों की बेड़ियां बन गई पता ही नहीं चला ।हर छोटी छोटी मेरी खुशियां या ख्वाहिशों पर ना जाने आपने कब ताला लगा दिया मुझे पता ही नहीं चला और मैं चुपचाप बिना कुछ कहे वो बेड़ियों में जकडती चली गईं और अपने आप को ताले में बंद करती गई।

 

पर आज जब तुम ने इतने लोगों के सामने मुझे एक दस रुपए के बिस्किट के लिए जो सुनाया वो मेरे दिल को छलनी करने और मुझे झंकझोर कर रखने के लिए काफी है … जब मुझे मेरे ही कमाए हुए पैसों में से एक रुपया तक खर्च करने को ना मिले तो मेरी कमाई का क्या फायदा? इससे अच्छा तो मैं आप की तरह घर बैठ कर बिना हाथ पैर हिलाए चैन से ना रहूं ? वैसे भी मेरे पैरों में आप ने इतनी सारी बेड़ियां डाल दी है कि मैं खुद से ना कुछ ले सकतीं हूॅं ना ही खुद पर खर्च कर सकती हूॅं ” अनु ने सुबकते हुए कहा।

 

” कौन सी खुशियां या ख्वाहिशों को मैंने पूरा नहीं किया ? पैरों में बेड़ियां मैंने कहॉं डाली है जो मुझे सुनाए जा रही है?” समीर ने गुस्से में झुंझलाते हुए कहा।




 

दरअसल बात यह है कि समीर छोटे मोटे काम करता है जिसमें उसकी स्थायी आवक नहीं है जबकि अनु एक स्कूल में पढ़ाती भी है और टयुशन भी करती हैं तो उसकी कमाई स्थिर है। समीर स्वभाव से इतना कंजूस है कि अनु को हर जगह पर, किसी ना किसी बहाने रोक टोक लगा देता है चाहे कपड़े, खाना या फिर कुछ ओर ही क्यों ना हो ? पर यह कंजूसी सिर्फ अनु पर ही लागू होती है खुद के ऊपर नहीं …!! समीर खुद की ख्वाहिशें और इच्छाओं को पूरा करने में कभी पीछे मुड़कर ना रहता और ना ही किसी ओर को देखता …

 

ऐसे चलते ही ना जाने समीर ने कितनी ही बंदिशों को अनु पर लाद दिया था उसका भी पता नहीं था और अनु भी हर बार के चलते गृहक्लेश की वजह से कभी समीर की लगाई बेड़ियों में जकडती गई पता ही नहीं चला पर आज जब दस रुपए के बिस्किट के पैकेट के लिए मॉल में समीर ने तमाशा कर अनु के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई है और इसी बात को लेकर दोनों में बहस हो रही है।

 

” खुशियां या ख्वाहिशों को तो बात ही ना करे तो अच्छा है आप…!! खरीद कर खुद तो कुछ देते नहीं पर मेरे मायके से या किसी के यहां से आए कपड़े भी आप मुझे पहनने नहीं देते हैं ऐसे ही तीन चार साल बाद निकाल कर देते हैं पहन लो अब..!! खाने में भी सबकुछ अपनी पसंद और हिसाब का ही..!! क्यों मेरी कभी ख्वाहिश नहीं होती नए फैशन के कपड़े पहनने की? या मन नहीं करता अपनी पसंदीदा खाना खाने का ?

 

घर सजाने या ठीक करने जाऊं तो कहते हैं मेरा घर है इधर उधर हाथ मत लगाओ तो जब घर आप का है तो मैं यहां क्यों हूॅं ? यहॉं ना कुछ मेरा हैं सिर्फ मेरी कमाई के अलावा तो मुझे यहां कोई हक़ नहीं है रहने का… ” कहते हुए फफक फफक पड़ी अनु…

 




” तुम्हें लगता है कि मैंने तुम्हारी ख्वाहिश और इच्छाओ को पूरा नहीं किया है तो चली जाओ यहां से..” समीर ने गुस्से में कहा।

 

” ना ही इधर से जाऊंगी और ना ही अपने ख्वाहिशों को मरने दूंगी । अब मैंने सोच लिया है ये घर आप का ही है तो जो करना है करिए पर मेरी कमाई में से फूटी कौड़ी भी अब आपको नहीं दूंगी । आज से मेरे पर लगाई गई बंदिशों को तोड़ती हूॅं और अपने हिसाब से अब रहूंगी ।

 

जो ख्वाहिशें और सपने मैंने खुद के लिए देखें है वो अब पूरा करुंगी और आप की लगाई बेड़ियों को यहीं को मैं तोड़कर आगे बढूंगी। अब मेरी ख्वाहिश और इच्छाओं के बीच कोई नहीं आएगा ” कहते हुए पर्स उठाए बहार निकल गई । समीर अनु के आत्मसम्मान और आत्मविश्वास से बढ़ते कदम को देखता ही रह गया , उसे पता नहीं था कि अनु इस तरह उसका विरोध भी कर सकती हैं…

 

दोस्तों,अनु ने क्या सही फैसला लिया इतने सालों के बाद अपनी बेड़ियों से मुक्त होकर ? अपनी कमेंट के जरिए बताइए और मुझे फोलो करें 🙏🙏

 

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद,

#विरोध 

भाविनी केतन उपाध्याय 

 

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