“देखो बेटा। मैं अब अगले महीने रिटायर होने वाला हूँ। बहुत दिनों से अम्मा के मोतियाबिंद का आपरेशन टाल रहा था कि ऑफिस से छुट्टी पाऊंगा तो आराम से करा दूंगा। हमारा खर्च तो मेरी पेंशन में जैसे तैसे हो जाएगा। मैं ये चाहता हूँ कि तुम भी अब घर के खर्चे में थोड़ा भार उठा लो तो अच्छा है। अभी तक मेरी तनख्वाह में से सबकुछ अच्छी तरह चल रहा था अब शायद कुछ दिक्कत हो जाए मैं तुम्हारी मम्मी और अम्मा अक्सर बीमार रहते हैं। अभी तक थोड़ा टीए डीए मिल जाता तो सहारा लग जाता था। रिटायर्मेंट के बाद वह सुविधा खत्म हो जाएगी”
रमेश जी ने अपने बेटे सुधीर से कहा जो एक बड़ी कंपनी में कार्यरत था अच्छी तनख़्वाह पाता था। उसकी पत्नी टीना भी स्कूल में टीचर थी ब्याह को दो साल हुए थे अभी परिवार बढ़ाने के इच्छुक नहीं थे। दोनों अपनी पूरी कमाई बचाते और अपने शौक पूरे करने में खर्च करते।
रमेश जी और उनकी पत्नि ने कभी उनसे कुछ लेने की इच्छा भी नहीं की। घर की देखरेख और किचन रमेश जी की पत्नि अच्छी तरह संभाल रही थी पति की बंधी बंधाई तनख़्वाह में कैसे किफायत से घर चलाना है यह वह अच्छी तरह जानती थीं। अपने लिए भले ही कोई कमी कर लें पर सुधीर और टीना के लिए जहाँ तक हो सकता कोई कमी नहीं रखती सोचतीं दोनों बाहर काम करते हैं थके हारे आते हैं कम से कम गर्म खाना तो खिला ही दूं।
एक दो बार तो सुधीर रमेश जी की बात को अनसुना करके निकल गया। फिर एक दिन उनके दोबारा कहने पर तमक कर बोला “पापा ऊब गया हूँ रोज-रोज का ताना सुनकर। मैं तो शादी के बाद टीना को लेकर किराए के मकान में जाना चाह रहा था आप और मम्मी ने ही कहा था क्यों किराए में पैसा बर्बाद करते हो साथ में रहेंगे तो सेविंग ही होगी। उसी सेविंग से मैंने फ्लैट बुक करा लिया है जिससे मैं और मेरा परिवार ठाठ से रह सके अगले महीने उसका पजेशन मिल जाएगा हम उसमें शिफ्ट कर जाएंगे”
“पर बेटा ये घर तो है ना अलग घर की क्या जरूरत?” रमेश जी घिघियाते से बोले।
“क्यों इसमें तो आप लोग रह ही रहे हैं। आप दोनों में से एक भी रह जाएगा तो वो रहेगा” सुधीर बेशर्मी से बोला वैसे भी टीना को यह घर बिल्कुल पसंद नहीं यहां रहना पड़ा तो उसे आप दोनों मे से किसी ना किसी के साथ रहना पड़ेगा। फिर दादी भी तो हैं। इसीलिए टीना भी अपनी तनख़्वाह में से फ्लैट की किस्त भर रही है।
देखिये पापा आपने तो जैसे तैसे रहकर अपना गुजारा कर लिया पर हम लोग अब स्टैंडर्ड से अलग रहना चाहते हैं मेरे ऑफिस के सब लोग ठाठ से रहते हैं इस घर में उन्हें बुलाने में शर्म आती है।”
रमेश जी भी गुस्से में आकर बोल गए “तुम भूल गए कैसे इसी छोटे से घर में हमने अपना पेट काटकर अपनी सारी जरूरतों को ताक पर रखकर तुम्हें पढ़ाया लिखाया तुम्हारी खुशी के लिए ही जीते रहे तुम्हारी मां ने तुम्हारी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए अपने जेवर तक बेच दिये आज जब हम शरीर से लाचार बेबस हो रहे हैं तो अपना ठाठ बनाने के लिए तुम हमें छोड़कर जाना चाह रहे हो।”
सुधीर कब चुप रहने वाला था बिफर कर बोला “आपने कौन सा एहसान किया मुझ पर हर आदमी अपने बच्चों को पालता पोसता है पढ़ाता लिखाता है। पैदा करने की जिम्मेवारी है तो बाकी की जिम्मेदारी भी तो आपको ही उठानी थी ना?
रमेश जी आगे क्या कहते सर पकड़कर वहीं जमीन पर बैठ गए। सोचा न था कभी यह दिन भी देखना पड़ेगा क्या इसी दिन के लिए बेटे को पढ़ाया लिखाया था।
दोस्तों
आज की पीढ़ी अपने आराम के आगे मां-बाप के त्याग को उनकी जिम्मेवारी का नाम देकर अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ लेती हैं। जीवन संध्या में जब माता-पिता को बच्चों के सहारे की जरूरत होती हैं उस समय उन्हें अपने ठाठ बाट की चिंता रहती है।सब बच्चे एसे नही होते। कुछ सुधीर जैसे भी निकल ही आते हैं।
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कुमुद मोहन