अब क्या रोटी भी ना खाने देंगी… – रश्मि प्रकाश

अपनी माँ को सिसकते देख रूहानी से रहा ना गया वो सोची आज जो कुछ हुआ है अपने पापा निकुंज को फ़ोन कर के बता दूँ ताकि जब वो घर आए तो पहले से जानकारी होने पर सब सामान्य कर सकें… उसने फ़ोन करके अपने पापा से आज की सारी घटना बता दी ।

शाम को जब निकुंज घर आए … घर का माहौल बहुत शांतिपूर्ण लगा… ना आज टीवी पर माँ कोई प्रवचन सुन रही थी….ना.. रसोई में राशि के काम करने की कोई आहट… दोनों बच्चे अपनी किताबों में सिर घुसाएँ चुपचाप बैठे थे ।

निकुंज अपना बैग रख फ्रेश होने अपने कमरे में गया तो देखता है राशि सिर पर दुपट्टा बांधे पड़ी है…. पूरे कमरे में बाम की महक फैली हुई थी ।

“ क्या हो गया तुमको… जब देखो ऐसे बिस्तर पर पड़ी रहती हो…बंद करो अपना ये नाटक…. अरे क्या ही कह दिया माँ ने…. तुम बना नहीं सकती थी उनके लिए रोटी… चार रोटी तो खाती हैं वो भी तुमसे बनाएँ नहीं गए…तुमसे नहीं होता तो मैं खुद रख लूँगा अपनी माँ का ध्यान…अब उठो और चाय बनाओ… दिनभर इन लोगों के लिए कमाओ और घर आओ तो आए दिन इनके नाटक देखो।” निकुंज ग़ुस्से में राशि से कह कपड़े बदल माँ के कमरे में जाकर बैठ गया

उधर माँ भी उदास चेहरा लिए बैठी थी… जानती ही थी बेटा ऑफिस से आने के बाद माँ से मिलने तो आएगा ही।




“ कैसा रहा दिन बेटा आजकल तू ज़्यादा व्यस्त रहने लगा है….देर से आता है… ।”घड़ी की ओर देख माँ ने कहा

“ बस माँ अब पहले की तरह नहीं रह गया बहुत काम करना पड़ता है…. तुम ये बताओ… आज तुम टीवी क्यों नहीं देख रही हो…. राशि ने कुछ कहा क्या?” निकुंज ने पूछा

“ वो बस बेटा आज मन अच्छा नहीं लग रहा …. तो कमरे में आराम कर रही थी …. बहू का क्या है उसका तो हर दिन का एक जैसा ही रहता है ।”माँ ने कहा

“ हाँ माँ उसका तो हर दिन का नाटक रहता है अच्छा तुम ये बताओ तुमको हुआ क्या जो राशि रोटी बना कर देने से मना कर रही थी ।” निकुंज ने कहा

“ अरे बेटा आज सुबह मैं रुहानी को छोले खाते देख कर मैं भी माँग कर खा ली उसके बाद मेरे पेट में दर्द होने लगा…. दोपहर में बहू ने मुझे रोटी नहीं दिया… बोलने लगी गीले चावल खा लीजिए पेट के लिए सही रहेगा पर मैं तो रोटी खाने की ज़िद्द कर रही थी…

बहू मुझे नहीं दे रही थी तो खुद ही बनाने लगी …बहू मुझे बनाने से मना करने लगी…. जब वो मेरे हाथ से बेलन ले रही थी ये बोल नहीं मानती तो लाइए बना देती हूँ मैं भी ज़िद्द पर अड़ी की अब खुद बना लूँगी तुमसे ना कहूँगी…. छीना झपटी में बस बेलन जरा उसके सिर पर लग गया और महारानी सिर पकड़कर बैठ गई…. अब क्या वो मुझे रोटी भी ना खाने देगी…?” माँ ने निकुंज से कहा

माँ के मुँह से सच सुन कर निकुंज सिर पकड़ कर बैठ गया… राशि को बेकार ही भला बुरा सुना आया…. ठीक ही तो कर रही थी वो…. माँ को छोला पसंद है पर जब भी खाती पेट ख़राब हो जाता ऐसे में वो रोटी खाती हैं तो और परेशान हो जाती है राशि इसलिए ही मना कर रही होगी… पर माँ भी बच्चों जैसे हरकतें करने से बाज नहीं आती….

“ माँ वैसे परेशान तो तुम ही होती हो ना…फिर राशि क्या गलत कर रही थी….चलो उठ कर बाहर आओ….।” कह निकुंज कमरे से निकल रसोई की ओर बढ़ा…राशि अभी भी कमरे से बाहर नहीं आई थी वो कमरे में गया तो महसूस हुआ राशि सुबक रही है…





“ सॉरी यार रुहानी ने फ़ोन कर के सब बताया तो था पर मुझे लगा वो अपनी माँ की तरफदारी कर के बातें बता रही…. अभी माँ से सुन कर आ रहा हूँ…. तुम सही ही कर रही थी…. माँ को कुछ कहूँगा तो वो सोचेंगी जोरू का गुलाम हूँ …. बस इसी चक्कर में मैं तुम्हें सुना गया…अब माफ भी कर दो और उठकर बाहर आओ… आज चाय और डिनर मैं बना देता हूँ…. ।” निकुंज राशि का हाथ थाम बोला

“निकुंज मैं कितना भी कर लूँ… आपकी नज़रों में हमेशा नाटक ही करने वाली लगूँगी…. माना माँ को नहीं बोल पाते पर इसका मतलब क्या बीबी को कुछ भी बोल दे…मैं भी इंसान हूँ निकुंज तकलीफ़ होती हैं … बस आज मेरी आँख बच गई…. अब माँ ने क्या कहा नहीं पता पर मेरा माथा देख लो…।“कह दुपट्टा हटा दी सिर पर एक गुम्बद सा निकल आया था…

निकुंज के समझ ही नहीं आया कहे तो क्या कहे… वो बस चुपचाप राशि को देखने लगा ।

बाहर निकुंज कह निकुंज जब नहीं दिखा तो माँ कमरे की ओर आ गई थी और राशि की बात सुन ठिठक गई…

राशि के सिर में जोर से लग गई…. मैं भी ना बहू जो हर समय इस परिवार के लिए सोचती रहती मैं उसके सिर का चोट भी ना देख सकी…

वो चुपचाप उधर से रसोई में गई और बर्फ़ निकाल कर राशि के कमरे में आई

“ देखूँ कहाँ लग गई है जो मेरे बेटे से शिकायत लगा रही है…. कह सिर का दुपट्टा हटा उधर बर्फ़ से सिकाई करने लगी…

“ बहू देख मैं जानती हूँ तू मेरे भले के लिए बोल रही थी पर तू मुझे मना कर रही थी तो ग़ुस्सा आ रहा था…. बहू हो तो मुझे कैसे मना कर सकती हैं निकुंज तो कभी मना ना करता… यही बात मुझे चुभ गई और मैं खुद रोटी बनाने लगी और देख  चक्कर में तेरे सिर का क्या हाल हो गया… ले रे निकुंज तू कर सिकाई मैं जरा वॉशरूम हो आऊँ ये मुआ छोला खाना भारी पड़ जाता मुझे ।” राशि की सासु माँ ने कहा





माँ तो चली गई पर राशि सोचने लगी ये सास कभी सही सुनना पसंद ना करती…. और सच जानते हुए भी करेगी बहू से उल्टा काम…खैर ये तो नाटक हमेशा चलता रहेगा पर निकुंज की डाँट का असर जल्दी क्यों नहीं जाता….

निकुंज राशि का हाल देख माफ़ी माँग और माँ के सब कह देने से माहौल हल्का करने की कोशिश में लग गया….।

बहुत घरों में सास कभी भी बहू की सही बात पचा नहीं पाती उसे बहू का मना करना अपने आत्मस्वाभिमान पर चोट प्रतीत होता है और वो उसकी बात का उल्टा ही करने में लग जाती है जैसा राशि की सास के साथ हुआ… आप मेरी बात से कितना सहमत हैं ज़रूर बताएँ….

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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