समर्पण का ठप्पा… – स्मिता सिंह चौहान

राधिका अपनी ही तन्मयता में तेज तेज चली जा रही थी घर से काफी दूर आने के बाद उसे अपने हाथ में किसी का हाथ महसूस हुआ “पकड़ लिया  कहां भागे जा रही हो? कबसे आवाज लगाकर तुमहारे पीछे पीछे भाग रही हूँ? तुम सुन ही नहीं रही हो। ” राधिका की दोस्त बीना बोली। 

“अरे सच मैं नहीं सुन पायी। ” इधर उधर देखते हुए राधिका जैसे जानना चाह रही थी कि वो कहाँ पर खड़ी है। 

“चलो जब यहाँ तक आ ही गये हैं  तो पार्क में चलते हैं  थोडी देर बैठकर साथ घर चले जायेंगे।  चलो ना। ” बीना हाथ खींचते हुए राधिका को पार्क की तरफ ले गयी। राधिका धीमे से मुसकराते हुए उसके साथ चल दी। 

“देख वो झूला खाली है  चल एक बार झूलते है बचपन के दिन याद आ जायेंगे  बड़ा मजा आयेगा। “बीना झूले पर बैठकर राधिका को आने का इशारा करती है। राधिका अपनी ही किसी उधेडबुन में  परेशान सी। उसकी इच्छा ना होने की बात कहते हुए

झूले पर बैठने से इन्कार कर देती है।  तभी बीना झूले से उतरते हुए पास में लगी एक बेंच में बैठते हुए उसका हाथ पकड लेती है  “अच्छा बैठ  अब बता क्या हुआ है? “अचानक पूछे इस सवाल से राधिका सकपका कर बोली “नहीं  कुछ भी नहीं। बस ऐसे ही तबियत ठीक सी नहीं लग रहीं। “

“अच्छा  तबियत ठीक नहीं है और तू हमारे घर से इतनी दूर बेतहाशा चलते हुए  वो भी पैदल ,यूँ ही आ गयी। जिस पर किसी कि आवाज तो छोड़ो मैं तेरे पास से गुजरी वो भी नहीं दिखाई दिया तुझे। अब जल्दी बता क्या हुआ? फिर कुछ पंगा हुआ क्या सुधीर से? “बीना ने बड़े ही अनौपचारिक तरीके से पूछा। 

“क्या बताऊँ? रोज का किस्सा है। अब तो कहने को भी कुछ सा नहीं लगता। वही सब जैसे बीवी नहीं गुलाम हूँ। पिछले 10 सालों से वही कर रही हूँ जो सुधीर कहता है  घर बुजुर्ग   बच्चे सब का ध्यान रखती हूँ। अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ती

फिर भी सबको कोई ना कोई कमी मिल जाती है। चल परिवार में ये सब चलता रहता है बुरा नहीं लगता लेकिन दिल छलनी हो जाता है जब सुधीर अपने परिवार के सामने  मुझे मेरी गलती ना होने पर भी जलील करता है। ऐसा लगता है

कि वो सब तो एक परिवार के है जिनका अहम् से लेaकर आत्म सम्मान तक सुरक्षित है। लेकिन जैसे मेरा सब कुछ मैंने खुद गिरवी रख दिया हो और रोज किश्तें भरने पर भी वो कर्ज नहीं चुका पा रही हूँ जो मैने उस घर में शादी करके सात वचन सात फेरे लेकर लिया। “राधिका अविरल बोलते जा रही थी। 




“लेकिन इसमें सुधीर की क्या गलती? ये अधिकार तो तुमने दिया है उसे अपने ऊपर। “बीना ने राधिका से कहा

“मतलब क्या है तेरा?   मैं भी ना  पागल हूँ जो तुम्हे अपना दुखड़ा सुनाती रहती हूँ  तभी तो तुम ऐसे बात करने की हिम्मत कर पायी। सारी मैं चलती हूँ। “कहते हुए जैसें ही खड़ी हुई तभी बीना ने उसका हाथ पकड़ लिया। 

“अरे बैठ तो सही। बुरा मत मान अभी तुझे बुरा लगा ना कि तूने मुझे अपनी बातें बताकर मुझे  कुछ भी कहने कि परमिशन दे दी। ठीक ऐसे ही तुमने सुधीर को कहीं ना कहीं पहले से ही उसकी सही गलत बातों को सुनकर या मानकर ये दिखाया होगा कि तुम उसकी हुक्म की गुलाम हो। 

जैसे तुमहे बुरा लगा तो तुमने मेरी बात का विरोध किया वैसे कभी सुधीर का किया?  “बीना ने राधिका को आईना दिखाते हुए कहा। 

“तू दोस्त है तुझसे कह सकती हूँ। ससुराल वाली बात अलग होती है। सुधीर  का विरोध तो नही किया लेकिन एक दो बार परिवार के सामने कुछ् भी बोल देना मुझे  यह बात ठीक नही ये समझाया था मैने । तो वो कहते है कि परिवार के सामने गुस्से में बोल दिया

कुछ् तुमसे  तो क्या हुआ। परिवार तो हमारा ही है ना। “राधिका ने अपनी बेबसी को बयां किया। 




“क्या तुम कुछ भी कह सकती हो?अपने मायके में सुधीर को या उसके परिवार वालों को। तब भी तो परिवार ही होता होगा। नहीं ना, तुम उसकी गलत बात को भी बर्दाश्त कर लोगी लेकिन अपने मायके में उसको अपने परिवार के सामने तो ,कम से कम कुछ नहीं कहोगी

कयोंकि उसने तुम्हें अपने ऊपर इतना अधिकार नहीं दिया कभी। यही बात हम औरतों को समझ नहीं आती कि पति का परिवार हमारा हो जाता है और हमें कुछ भी कहने का अधिकार पति से लेकर उसके घर के हर सदस्य को होता है। तो हमारा परिवार भी तो उसका होता है 

इस हिसाब से सममान  असममान का अधिकार भी तो बराबर होना चाहिए। हम बहु बन के आये है तो तुम भी तो दामाद हो हमारे घर के। ससुराल हमारी है तो तुम्हारी भी तो हैं। मेरी मानो तो तुम भी परिवार में गलत का विरोध करना सीखो। आखिर परिवार है

बोलने की आजादी  या अपना पक्ष रखनें की आजादी बहु के अलावा सब को क्यो? बहुओं का या बीवी का कोई आत्मसम्मान नहीं होता। “बीना ने अपनी बात को समझाते हुए कहा। 

“सही कह रही हो तुम मैंने कभी विरोध किया ही नहीं। मै खुद को ही सजा देती रहती हूँ  अकेले रोना खुद की किस्मत को कोसना बस ये सब करके अपने मन को समझाती रहती हूँ। “राधिका ने अपनी बात रखी। 

“ये सब करके कुछ नहीं होता मौन रहना अच्छा है शायद कई परेशानियों को आमंत्रण नहीं मिलता। लेकिन कभी-कभी आपके मौन को लोग आपकी कमजोरी समझकर बोलने की हद भूल जाते हैं। इसलिए अपनी बात कहना सीखो जैसे तुमहे बता दिया जाता है

कि तुम उनके साथ कैसें रह पाओगी वैसे ही तुमहे भी बताना होगा कि वो तुम्हारे सांथ कैसे रह पायेंगे? परिवार का मतलब यह नहीं होता कि घर की बहु के माथे सारे समर्पण का ठप्पा लगा दिया जायें। “बीना की बातें सुनकर राधिका को जैसे अपनी गलतियों का अहसास होने लगा

जिनकी वजह से वो 10 साल से एक ऐसे मकडजाल में फंस रही जो उसका खुद का बुना हुआ था। 

“चल घर चलें  थोडी देर में अंधेरा हो जायेगा। “बीना बोली ही थी कि राधिका ने एक गहरी सांस लेते हुए बीना का हाथ पकड़ा “चल झूला झूल कर जाते हैं। “बीना और राधिका झूला झूलने लगें। राधिका बच्चो की तरह पींगे बढ़ाकर बीना को देखकर खिलखिलाकर हस रही थी।

शायद उसे समझ आ गया था कि किसी को अपने ऊपर अधिकार देने से पहले अपनी मिलकियत के मालिक खुद बनों। 

दोस्तों आपकी राय का इंतजार रहेगा। 

आपकी दोस्त

स्मिता सिंह चौहान

 

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