नाव्या तुम बहुत भाग्यशाली हो तुमको इतनी अच्छी ससुराल और पति मिलें हैं। नाव्या की सारी सहेलियां आज करीब 20 साल बाद आपस में बात करके एक जगह दो दिन के लिये एकत्रित हुई थी । नाव्या बहुत समझ दार थी क्योंकि वह एक गरीब परिवार से थी । उसको बस ईश्वर ने सुन्दरता देने में कंजूसी नहीं दिखाई थी । मां पापा पर धन तो नहीं था पर नाव्या को शिक्षा दिलाने के साथ अन्य सभी क्षेत्रों में कुशल बनाया था । उसके पापा शिव प्रसाद चीफ इंजीनियर मि. सिन्हा के स्टेनो थे । चीफ साहब का बेटा प्रतुल भी इंजीनियर था । बहुत ही घंमडी और स्वार्थी बस उसने नाव्या को एक समारोह में शिव प्रसाद जी के साथ देखा और बात करनी चाही पर नाव्या ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई । बस जिद पकड़ ली की इससे शादी करके रहेगा । मि.सिन्हा को भीअपने से इतने छोटे स्तर की बेटी से शादी करना मंजूर नहीं था पर बेटे की हटधर्मी से उन्हें झुकना पड़ा । शिव प्रसाद तो कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि इतने बड़े अधिकारी के प्रस्ताव को हां करे या ना । मां ने जब नाव्या से पूछा तब उसने कहा आप लोग जैसा उचित समझे । नाव्या जब शादी होकर ससुराल पहुँची तब उसका स्वागत बहुत ठंडे माहौल में हुआ । ननद और सासुजी इस सम्बन्ध से खुश नहीं थी । नाव्या को महसूस होगया कि इस माहौल में उसे बहुत कुछ सहना होगा । प्रतुल की भी गुस्सा बहुत तेज थी । वैसे कोई कमी नहीं थी पर उसका अपना कोई वजूद नहीं था । बाहर सब जान पहचान वालों को और रिश्तेदारों को लगता था कि ऐसे परिवार की लड़की तो इतने ठाठ से इस घर में रहती है। इन बीस सालों में वह दो बच्चों की मां बन गयी थी । बच्चे भी अब युवा हो गये पर प्रतुल का रवैया वही तानाशाही था । सब सहेलियां आपस में मिल कर बहुत खुश थी । नाव्या भी उनके साथ कुछ समय के लिये अपने दुख दर्द भूलना चाहती थी। वह फिर उन पलों को जीना चाहती थी जो कहीं खो गये थे । अचानक उसके घर से फोन आया उसने उठाया फोन का स्पीकर कैसे भी खुला हुआ था । उसने जैसे ही हलो कहा उधर से प्रतुल की दहाड़ती आवाज आई घर कब लौटेगी क्या ये उम्र तेरी मौज मस्ती करने की है। अपनी औकात में रहा करो । नाव्या बिलकुल जड़ होगयी क्योंकि उसकी सहेलियों के लिये ये एक दुखद घटना थी । अभी सब पर पर्दा पड़ा था । यह तिरस्कार तो उसके जीवन का अभिन्न अंग बन गया था । वह सोच रही थी “काश “यह बात मुठ्ठी के अन्दर ही रहती तब कितना अच्छा होता ।
स्व रचित
डा. मधु आंधीवाल
अलीगढ़