मैं अपनी बहू का तिरस्कार नहीं कर सकती –  सविता गोयल

” वाह, सुधा भाभी, तुम्हारे जैसी मां तो मैंने आज तक नहीं देखी । जिस बहू के कारण बेटा चार महीने से बिस्तर पर पड़ा है उसी बहू को इतना सर पर चढ़ा रखा है। पति खाट में पड़ा है और ये सज धजकर व्रत पूजा का ढोंग कर रही है। ,,  नैना को तैयार होकर वट सावित्री की पूजा करते हुए तिरस्कृत नजरों से देखते हुए कौशल्या जी गुस्से से तमतमाते हुए अपनी भाभी सुधा से बोल पड़ी।

” ये आप क्या बोल रही हो जीजी!! वरूण बिस्तर में पड़ा है इसमें बेचारी नैना का क्या कसूर है!! ये तो उसी के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना के लिए पूजा कर रही है।  ,,

” भाभी, तुम नहीं समझती , कुछ लोगों के कदम हीं मनहूस होते हैं। मुझे तो पहले हीं ये रिश्ता कुछ खास पसंद नहीं था। इस नैना के पैदा होते ही इसकी मां मर गई थी और बाप भी कैंसर में चलता रहा। तुम हीं सोचों ऐसी लड़की मनहूस नहीं तो और क्या है?? और इसका सबसे बड़ा सबूत तो अभी तुम्हारे सामने हीं है। देखा नहीं शादी के दूसरे दिन ही कैसे बेचारे हमारे वरूण का एक्सीडेंट हो गया। उसके साथ साथ मेरा बबलू भी बेचारा इसकी मनहूसियत का शिकार बन गया। वो तो भगवान का शुक्र है कि हमारे अच्छे कर्मों की वजह से दोनों की जान बच गई। नहीं तो आज……  ,, अपने साड़ी के पल्लू से मुंह ढककर कौशल्या जी सुबकने लगी।

 




अपनी बड़ी ननद की बात सुनकर सुधा जी हतप्रभ थीं। वैसे तो पिछले चार महीने से वो ऐसी बातें अक्सर सुनती आ रही थीं लेकिन आज अपनी बहू का ऐसा तिरस्कार देखकर उनसे चुप नहीं रहा गया और वो बोल पड़ी,” माफ करना जीजी, वरूण और बबलू के साथ जो हादसा हुआ उसमें कसूर नैना का नहीं बल्कि हमारे बच्चों का हीं था। हम हीं अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने में नाकाम हो गए  जिसके कारण वो शराब में धुत्त होकर गाड़ी चला रहे थे। और शायद आप भूल रही हैं कि शराब पीने के लिए उकसाने वाला भी आपका बेटा बबलू हीं था।

रही बात नैना की तो मनहूस ये नहीं मनहूसियत तो इसकी किस्मत में लिखी थी जो ये बेचारी बचपन से झेलती आ रही है। पहले माता पिता का प्यार नसीब नहीं हुआ और जबसे ब्याह कर इस घर में आई है किसी ने प्यार के दो बोल भी इसके साथ नहीं बोले। एक बार सोच कर देखो कि जिसके साथ सात जन्मों के बंधन में बंधकर ये इस घर में आई थी वो सात घंटे भी इसके साथ नहीं रह पाया। ये चाहती तो अपने दादा दादी के पास वापस भी जा सकती थी क्योंकि ये पढ़ी लिखी है और नौकरी भी करती है लेकिन पिछले चार महीने से ये दिन रात वरूण की सेवा में लगी है। मेरा भी इतना ख्याल रखती है। कहती है इतनी मुश्किल से मां का साया मिला है अब इस साये से कभी दूर नहीं होना चाहती। आज इसकी सेवा से हीं वरूण कोमा से निकल आया है। अब तो वो हमसे बात भी करने लगा है। ,, बोलते हुए सुधा जी की आंखें ख़ुशी और दर्द से छलक पड़ीं।

 

 




कितने अरमान लेकर एक लड़की अपने ससुराल में कदम रखती है। यदि आते हीं सारी मुसीबतों का जिम्मेदार उसे ठहरा दिया जाए तो आप हीं बताइये उस लड़की पर क्या बीतेगी??  ,,

जीजी मानती हूं मां का कलेजा अपने बेटे के लिए फटता है लेकिन बहू भी तो किसी की बेटी होती है। उसके साथ ऐसा व्यवहार हमें कहां शोभा देता है !! मैं अपनी बहू का तिरस्कार बर्दाश्त नहीं कर सकती। ,,

सुधा जी की बात सुनकर कौशल्या जी की नजरें झुक गईं ।सच में बबलू के ज़िद करने पर हीं बार में जाकर सभी दोस्त शराब पीकर आ रहे थे जिसकी वजह से बबलू और वरूण दोनों का उस दिन एक्सीडेंट हो गया था ।  नैना तो उनकी इसी गलती की सजा भुगत रही थी जो शादी के दूसरे दिन ही उसका पति अस्पताल में भर्ती हो गया और कोमा में चला गया। फिर भी उसने इस परिवार को अपना परिवार समझकर पूरे मन से उसकी और सुधा जी की सेवा की।

 

इतनी देर में हीं नैना पूजा खत्म करके आई और सुधा जी और कौशल्या जी के पैर छूकर आशीर्वाद लेने लगी। दोनों के मुंह से एक हीं शब्द निकला “सदा सौभाग्यवती रहो। “

नैना के चेहरे पर मुस्कान छा गई।

 

 सविता गोयल

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