“क्या बात है भाभी!! कभी तो फोन कर लिया करो कभी तो किसी का हाल-चाल भी पूछ लिया करो आप तो सिर्फ अपने में ही खुश रहती हैं हम लोगों से तो जैसे आपको कोई मतलब ही नहीं है…” सुनीता की ननंद अलका ने फोन पर कहा!
“नहीं दीदी!! ऐसी कोई बात नहीं है आजकल सोनू की थोड़ी तबीयत ठीक नहीं है दो-तीन दिन से उसको बुखार सा है इसीलिए फोन नहीं कर पाती…”
“अरे भाभी!! जैसे कि मुझे कुछ पता ही नहीं यह नाटक किसी और के सामने ही करन अभी 15 दिन पहले बुआ दादी के पोते का मुंडन था तब भी आपने सोनू का बहाना लेकर वहां जाने से इनकार कर दिया रिश्ते निभाने तो जैसे आपको आते ही नहीं है थोड़ा रिश्तेदारों का भी ख्याल रख लेना चाहिए “कहकर ननद रानी ने फोन काट दिया!!
यह सब सुनकर सुनीता को बहुत गुस्सा आया कि दीदी मुझे इतना कुछ सुना गई ! लेकिन एक बार भी उन्होंने सोनू के हाल-चाल के बारे में नहीं पूछा! हर बार सब कुछ करने की जिम्मेवारी उसी की होती है! सब का हाल-चाल पूछना सब की खुश खबर रखना सिर्फ उसकी ही जिम्मेवारी है! यहां वह इतना परेशान है या फिर कोई भी मुसीबत आ जाती है तो कोई उसकी खोज खबर नहीं लेता और ना ही किसी को कोई मतलब होता है!
न जाने क्यों हर कोई उसी से सारी उम्मीद बांधे रखते हैं! जबकि उसके देवर और देवरानी आराम से रहते थे उन्हें कोई कुछ भी नहीं कहता था क्योंकि देवरानी तेज स्वभाव की है ये बात सारे रिश्तेदार अच्छे से जानते हैं कि अगर वो देवरानी से कुछ भी कहेंगे तो वह एक कि बजाय दस बातें सुना देगी!
लेकिन फिर भी सबकी नजर में वही अच्छे थे क्योंकि वो मन मीठी छुरी थी!
सुनीता सब के बारे में सोचती लेना देना सब करती लेकिन हर कोई उसे गलत समझता था क्योंकि उसे अपना पक्ष रखना नही आता!
शाम को जब सुनीता का पति सुनील घर आया था तो उसने सारी बातें उसे बताई!
तब सुनील ने कहा, “इन बातों को अपने दिल से लगाना बंद कर दो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम कैसे हो किस हाल में हो हर किसी की अपनी-अपनी सोच है! हम किसी की सोच को बदल तो नहीं सकते ना”
“लेकिन सुनील!! कम से कम दीदी को तो समझना चाहिए ना”
“छोड़ो यह सब बातें जब मेरे माता पिता ही कुछ समझने को तैयार नहीं है और किससे क्या कहें अब से उतना ही करना जितना बन पड़े “
सुनिता: ” पर भाई- बहन तो हमारे सुख दुख के साथी होते हैं! उनसे अच्छा दोस्त कोई होता भी नहीं है !हम अपने मन की हर बात अपने भाई बहनों से शेयर कर सकते हैं”
“नहीं सुनीता! हमारे साथ बहुत अलग है! मेरे भाई बहन मेरी तकलीफ समझने से ज्यादा मेरी बुराई करने या मुझे परेशान करने में ज्यादा विश्वास रखते हैं !सबके लिए अच्छा करते-करते भी मैं आज सबकी नजर में बुरा क्यों हूँ न जाने क्यों क्या कमी है मुझमें अपने ही परिवार वाले मुझसे इतनी दूरी बना कर रखते हैं! जब भी मुझे मुझे उनके सपोर्ट और साथ ही जरूरत होती है वह मुझे कभी नहीं मिलता है..”दुखी होते हुए सुनील कहने लगा!
सुनील को परेशान देखकर सुनीता ने बात को घुमा दिया और फिर इधर उधर की बातें करने लगी! दोनों एक दूसरे को बहुत अच्छे से समझते थे और अपनी सब परेशानियां एक दूसरे से बात कर मन को सुकून देते थे!
अगले दिन की सासू मां का फोन आया!उन्होंने भी सुनीता को उल्टा सीधा बोलना शुरु कर दिया क्योंकि उन्हें भी अच्छे से पता था कि वह चाहे कितने ही ताने मार ले या कुछ भी बोल दे सुनीता कभी भी पलट कर जवाब नहीं देगी और इस बात का उसकी सास और रिश्तेदार अच्छा खासा फायदा उठाते थे !;कोई भी काम होता या कोई भी मतलब निकालना होता तो उसे प्यार से बोल कर सब अपना काम निकलवा लेते लेकिन अगर सुनीता को जरूरत होती तो, सबके पास कोई ना कोई बहाना जरूर तैयार रहता!
कभी-कभी तो सब निभाते निभाते सुनीता को खीझ भी होती थी! लेकिन कोई भी उसे समझने को तैयार नहीं होता!
एक दिन सुनीता के नंदोई की हालत ज्यादा खराब हो गई! जिसकी वजह से उसकी ननद काफी परेशान रहने लगी!
ऐसे में सुनील ने अपनी पत्नी सुनीता को अपनी बहन अल्का के घर भेज दिया ताकि उसके थोड़ी मदद हो जाए और उसे एक भावनात्मक सहारा मिले!
अपनी भाभी का साथ देखकर अब अल्का के व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगा! अब उसे समझ आया कि कौन बुरे वक्त में साथ देता है और कौन नहीं
तभी अल्का की सासु माँ ने कहा, “अलका!! रिश्ते निभाना तो कोई तुम्हारी भाभी से सीखे किस तरह से उसने यहां आकर सब कुछ संभाल लिया मैं खुद बिस्तर पर पड़ी हूं तुम्हारी कोई सहायता नही कर सकती हूं और तुम अकेले सब कैसे संभालती लेकिन मैंने जब भी देखा तुम हमेशा अपनी बड़ी भाभी को ताने मारती हो तुम मुझे भी यही कहती थी कि बड़ी भाभी को रिश्तो की समझ नहीं है लेकिन अब देखो”
अलका को भी कुछ कुछ बात समझ में आने लगी! उसने देखा कि यह उसकी बड़ी भाभी सुनीता उसके साथ उसके घर आकर कामों में लगी रहती थी वहीं दूसरी ओर छोटी भाभी ने तो कभी उसे फोन करना भी जरूरी नहीं समझा और ना ही सही उनका हालचाल पूछा!
फिर एक दिन अलका ने कहा, “भाभी!! मुझे माफ कर दीजिए मैं हमेशा आपको भला-बुरा कहती रही हमेशा आपको यही बोलती रही कि आपको रिश्तों की समझ नहीं लेकिन सच कहूँ तो आपकी तरह रिश्ते निभाना भी किसी को नहीं आता आपने जो मेरे लिए किया है वह मैं जिंदगी में कभी नहीं भूलूंगी..”
और गले लगकर रोने लगी!
सुनीता भी यह सुनकर खुश थी कि चलो कम से कम देर से ही सही लेकिन उसके प्रति लोगों का नजरिया तो बदलना शुरू हुआ! अब कम से कम उसे उल्टी-सीधी बातें सुनकर तकलीफ कम होगी !
दोस्तों! हममें से अधिकतर लोगों के साथ ऐसा होता है कि कई बार हम बहुत जरूरी कार्य छोड़ कर भी अपने घरवालों और रिश्तेदारों के लिए रिश्तेदारी निभाते हैं! लेकिन सब निभाते निभाते भी ना जाने कहां कमी रह जाती है कि लोग हमें बिना हमारे हालात समझे हमें गलत समझने लगते हैं! और उन्हें लगता है कि उनकी जो मर्जी आए वह हमें बोल देंगे! बिना यह सोचे समझे कि उनकी बातों का या उनके तानों का सामने वाले के दिलों दिमाग पर क्या असर पड़ता है!!
क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है? आपकी इस बारे में क्या राय है?
कृपया मुझे कमेंट करके जरूर बताएं!
धन्यवाद🙏🙏
प्रियंका मुदगिल