अंकिता अपने मां-बाप की इकलौती बेटी थी बड़ी नाजो से उसके मां बाप ने पाला था। अंकिता के पापा का सपना था कि अंकिता बड़ी होकर डॉक्टर बने। लेकिन अंकिता देखने में बहुत खूबसूरत थी तो उसकी मां चाहती थी कि मेरी बेटी बड़ी होकर एक्ट्रेस बने लेकिन किस्मत को जो मंजूर होता है वही होता है अंकिता का भी मन डॉक्टर बनने का था इसलिए उसने मेडिकल की पढ़ाई की और पढ़ाई खत्म करते ही दिल्ली के एक बड़े हॉस्पिटल में उसकी जॉइनिंग हो गई। उसी हॉस्पिटल में रितेश नाम का डॉक्टर भी अंकिता के साथ ज्वाइन किया। धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हुई और फिर एक दूसरे से प्यार कर बैठे।
इधर अंकिता के पापा अंकिता के लिए लड़का ढूंढने की तैयारी शुरू कर चुके थे । अंकिता के पापा हृदय रोगी थे वह चाहते थे कि अपनी जिंदगी में ही बेटी का हाथ पीला कर दे क्योंकि जिंदगी का कोई पता नहीं कब मुंह मोड़ ले।
एक दिन अंकिता हॉस्पिटल से जब घर आई तो उसके मम्मी पापा ने कई सारे फोटो सिलेक्ट करके रखा हुआ था। उन्होंने अंकिता को दिखाया और बोला बेटी इसमें से देखो तो कौन लड़का तुम्हें पसंद है। अपनी मम्मी की बात सुनते हुए अंकिता बोली मम्मी आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है मैंने ऑलरेडी आपका दामाद ढूंढ रखा है। अंकिता ने रितेश के बारे में अपने मम्मी पापा से सब कुछ बता दिया। फिर क्या था अगले दिन ही अंकिता के पापा रितेश के घर चले गए।
अंकिता देखने में बहुत खूबसूरत थी इस वजह से रितेश के घर वालों ने भी अंकिता को पसंद कर लिया।
जब अंकिता के पापा रितेश के घर से चलने लगे तो रितेश की मम्मी ने कहा, “भाई साहब हमने अपने बेटे को पढ़ाने में बहुत खर्च किया है हम आपसे कोई दहेज नहीं मांग रहे हैं लेकिन आप हमारी इज्जत का ख्याल रखिएगा।” रितेश के मम्मी ने खुलकर दहेज का जिक्र तो नहीं किया लेकिन बातों बातों में बता दिया कि हमारे रिश्तेदारों के यहां अगर एक छोटा सा भी नौकरी कोई करता है तो उसको कितना दहेज मिला है हमारा बेटा तो डॉक्टर है इतना तो मिलना ही चाहिए।
अंकिता के पापा को भी कोई एतराज नहीं था क्योंकि उनका कोई बेटा तो था नहीं। ले देकर एक बेटी थी। और लड़का भी डॉक्टर था बेटी उसको पसंद करती थी और अंकिता का मम्मी पापा को क्या चाहिए था।
अंकिता की शादी बहुत धूमधाम से हुई उसके पापा ने दहेज में बहुत सारे जेवरात और पैसे अपनी बेटी को दिया। अंकिता के ससुराल वाले बहुत खुश थे ऐसी बहू कहां मिलती है बहू खुद तो डॉक्टर है ही उसके बाद इतना सारा दहेज भी लेकर आई है।
अंकिता की सास तो अपनी बहू के बारे में सब से यही कहती थी कि हमारे घर बहू नहीं लक्ष्मी आई है जब से हमारी बहू हमारे घर आई है हमारा घर खुशियों और पैसों से भर गया है। खुशियों का तो पता नहीं लेकिन पैसों से उनका घर जरूर भर गया था।
ऐसे करके शादी के 2 से 3 साल बीत गए थे। अंकिता के पापा का दिल्ली के रोहिणी इलाके में 500 गज जमीन था। अंकिता के हस्बैंड चाहता था कि वह जमीन उसके पापा उसको हॉस्पिटल बनाने के लिए दे दे। लेकिन वह कहे तो कैसे ?
एक दिन आखिर उसने अंकिता से कहीं दिया, “अंकिता आखिर कब तक हम लोग किसी की नौकरी करते रहेंगे मैं तो चाहता हूं कि हम दोनों का अपना हॉस्पिटल हो। हॉस्पिटल बनाने के लिए लोन की बात मैंने कर ली है लेकिन जमीन का ही पंगा पड़ रहा है तुम्हारे पापा के पास जो रोहिणी में जमीन है उनसे बात करो ना अगर वह दे देते हैं तो हम वहीं पर अपना हॉस्पिटल बना लेंगे।”
अंकिता ने कहा ठीक है कल मैं मम्मी से बात करूंगी। सुबह होते ही रितेश ने अंकिता को याद दिलाया कि अपनी मम्मी से बात करो। अंकिता ने अपनी मम्मी से इस बारे में बात की कि रितेश अपना हॉस्पिटल खोलना चाहते हैं उसके लिए उन्हें जमीन चाहिए थी क्या पापा वह जमीन हमें दे देंगे।
अंकिता की मां बोली, “बेटी ये सब तुम्हारा और दामाद जी का ही है ऐसा करो तुम लोग शाम को आ जाओ पापा भी रहेंगे और तुम्हारी बात हो जाएगी।”
अंकिता और रितेश शाम को अपने पापा के घर पहुंच चुके थे। जब अंकिता ने अपने पापा से इस बारे में बात की उसके पापा ने एक बार में ही हां कर दी और उन्होंने बोला कि तुम जब मर्जी उस पर हॉस्पिटल बना सकते हो सब तुम ही लोगों को तो है।
मंजूरी मिलते ही रितेश मन ही मन बहुत खुश हो रहा था। वह बाहर आकर जल्दी से अपनी मम्मी पापा को फोन लगाया और कहा कि मम्मी, अंकिता के पापा ने हां कर दी है अगले महीने से ही हम लोग हॉस्पिटल बनवाना शुरू कर देंगे।
अगले महीने नवरात्रि शुरू हो रहा था सब ने यह फैसला किया कि नवरात्रि में ही हम जमीन का पूजन कर देंगे।
पूजा हुये एक महीना बीत गया लेकिन वहां पर एक ईंट भी नहीं लग पाया तो अंकिता के पापा ने कहा, “बेटी क्या बात है एक महीना हो गया हॉस्पिटल का काम कुछ हो नहीं रहा है क्या बात है।”
वास्तव में बात यह था कि रितेश ने किसी भी बैंक से लोन के लिए बात नहीं की थी वह तो ऐसे ही झूठ बोल दिया था कि हमें लोन मिल रहा है हॉस्पिटल बनाने के लिए सिर्फ जमीन की कमी है। इनके पास अब पैसे तो थे नहीं हॉस्पिटल बनवाएं कैसे ।
रितेश ने अपनी पत्नी अंकिता से बोला, “अंकिता किसी कारणवश हमारा लोन नामंजूर हो चुका है । मैं यह सोच रहा हूं उसमें से कुछ जमीन हम बेच देते हैं और उसके जो पैसे आएंगे उसी से हॉस्पिटल बनवा लेंगे।
अंकिता को अपने ससुराल वाले के लालचीपन का बिल्कुल भी शक नहीं हो रहा था वह लोग जो बोलते अंकिता करती जाती थी
अंकिता के पापा को जब यह बात पता चला कि दामाद जी के पास पैसे नहीं है हॉस्पिटल बनवाने के लिए तो उन्होंने अपने बेटी और दामाद से कहा कि तुम्हें जमीन बेचने की कोई जरूरत नहीं है मैं पैसे दे देता हूं और जो मेरा दुकान है मैं वह भी बेच देता हूं क्योंकि अब मैं बूढ़ा हो चुका हूं अब मेरे बस की नहीं है दुकान चला पाना।
अंकिता के पापा के पास जितने पैसे थे उन्होंने अपनी बेटी और दामाद को दे दिया हॉस्पिटल बनवाने के लिए अगले एक साल में हॉस्पिटल बनकर तैयार हो चुका था।
जब हॉस्पिटल बनकर तैयार हो गया तो अब बात आई हॉस्पिटल का नाम क्या रखा जाए। अंकिता ने कहा कि इसका नाम मेरे माता पिता के नाम पर होना चाहिए क्योंकि उन्होंने इसके सारे खर्चे दिए हैं। लेकिन रितेश हॉस्पिटल का नाम अपने माता पिता के नाम पर रखना चाहता था।
जब रितेश ने देखा कि अंकिता जिद पर अड़ गई है तो उसने सोचा कि नाम में क्या रखा है बात बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है उसने अपने सास-ससुर के नाम पर ही हॉस्पिटल का नाम रख दिया।
एक दिन अंकिता अपने हॉस्पिटल में सर्जरी कर रही थी तभी इमरजेंसी कॉल आया और उसे बताया गया कि उसके पापा को हार्ट अटैक आया है। अंकिता ने जल्दी से सर्जरी को निपटा कर वह अपने घर पहुंची और दिल्ली के सबसे बड़े हॉस्पिटल में अपने पापा को भर्ती करा दिया। हॉस्पिटल वालों ने बताया कि आपके पापा के इलाज में 15 लाख रुपए का खर्चा आएगा।
अंकिता ने उसी समय अपने हसबैंड रितेश को फोन किया और बोला, “रितेश तुम जल्दी से हॉस्पिटल आ जाओ पापा का ऑपरेशन कराना है 15 लाख रुपए की जरूरत है।” रितेश उसी समय बोला, “अंकिता कैसी बात कर रही हो तुम तो 15 लाख के बारे में ऐसे कह रही हो जैसे 15 लाख नहीं 15 रुपये हो मैं 15 लाख कहां से लाऊंगा मेरे पास जो भी पैसे थे सब हॉस्पिटल बनाने में लग गए अभी तो हॉस्पिटल से कोई प्रॉफिट भी नहीं हो रहा है जितनी कमाई होती है उतना खर्चा हो जाता है।
अंकिता को अपने पति से इस तरह की उम्मीद नहीं थी। अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें क्योंकि उसके पापा के पास जितने भी पैसे थे उन्होंने हॉस्पिटल बनाने के लिए दे दिया था घर में भी अब इतने पैसे नहीं थे। इनका घर का खर्चा भी अंकिता जो पैसे भेजती थी उसी से चलता था अब अंकिता क्या करें उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसी समय काउंटर से अंकिता के पास कॉल आया मैडम 1 घंटे के अंदर आप पैसा जमा करा दीजिए क्योंकि अगर रोगी का जान बचाना है तोऑपरेशन बहुत इमरजेंसी में करना होगा ।
अब अंकिता बिना कुछ सोचे अपनी मम्मी से बोली मम्मी मैं बस 1 घंटे में आती हूं अंकिता सीधे अपने घर गई और उसके पास जितने भी जेवरात थे उसे लिया और उसे बेचकर हॉस्पिटल पहुंच चुकी थी। दोस्तों हम कई बार औरतों से कह देते हैं कि तुम्हें जेवर की क्या जरूरत है लेकिन जेवर एक ऐसी चीज है कि यह आपके बुरे समय में आपका साथी होता है।
अंकिता के पापा का हार्ट का ऑपरेशन सक्सेसफुल हो चुका था। चार-पांच दिन के अंदर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर वह घर आ चुके थे। अंकिता ने अपनी मां को साफ-साफ बता दिया था कि वह पापा को कुछ नहीं बताएगी कि पैसे का इंतजाम कैसे हुआ था। अंकिता के पापा को लग रहा था कि उनका ऑपरेशन का सारा खर्च उनके दामाद ने दिया है। उधर शर्म के मारे रितेश 1 दिन भी हॉस्पिटल में मिलने नहीं गया लेकिन जब उसके ससुर घर आ गए तो वह और उसका पूरा परिवार बेशर्म की तरह उनका हालचाल जानने घर पर पहुंच गया ।
अपने दामाद को देखकर अंकिता के पापा बोले कि मैंने अपने दामाद के रूप में अपने बेटे को पाया है आज मेरे दामाद नहीं होते तो शायद मैं जिंदा नहीं बचता। रितेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है उसके ससुर जी ऐसा क्यों कह रहे हैं उसने तो कुछ किया भी नहीं यहां तक कि वह तो हॉस्पिटल भी मिलने नहीं गया।
अंकिता वहीं पर थी लेकिन वह चाहकर भी अपने पापा के सामने कुछ कह नहीं सकती थी वह अपने पापा को दुबारा अटैक नहीं देना चाहती थी। लेकिन उस दिन के बाद से उसने ठान लिया था कि वह अब अपने ससुराल कभी नहीं जाएगी अगर रितेश को यहां आकर रहना है तो रहे वह मना भी नहीं करेगी।
यहीं से वह हॉस्पिटल जाने लगी और हॉस्पिटल का सारा मैनेजमेंट वो खुद देखने लगी। कुछ दिनों बाद रितेश को भी एहसास होने लगा कि उसने अपनी पत्नी के साथ बहुत गलत किया है जिस पत्नी ने और सास-ससुर ने उस पर आंख बंद कर विश्वास किया जो मांगा वह दिया उसने उनके लिए क्या किया सिर्फ विश्वासघात।
रितेश अपनी पत्नी से जाकर माफी मांगने लगा और बोला अंकिता मुझे माफ कर दो मैं माफी के काबिल तो नहीं हूं लेकिन माफ कर दो और अपने घर चलो। अंकिता बोली कौन सा घर ले जाओगे रितेश उस घर में कभी नहीं जाऊंगी जहां पर दहेज के लोभी भेड़िए रहते हैं मैं उन्हें अपनी मां बाप जैसे समझती रही लेकिन वह अच्छे पन का नाटक करते रहे और मुझसे बार-बार अपने पिता पर दबाव बनाकर पैसे मांगते रहे। कभी तुम्हारे बहन की शादी के नाम पर तो कभी तुम्हारे भाई की पढ़ाई के नाम पर।
बस मैं इतना कर सकती हूं कि मैं नहीं चाहती हूं कि तुमसे रिश्ता तोड़ कर अपने पापा को फिर से हार्ट अटैक की तरफ ले जाऊं अगर तुम्हें मेरे साथ रहना है तो मेरे घर में ही रहना होगा मैं अब ससुराल नहीं जाऊंगी। अंकिता जानती थी कि उसके पापा बहुत ही इमोशनल आदमी है अगर उनको पता चलेगा कि उनकी बेटी और उनके दामाद में कुछ भी अच्छा नहीं है तो उन्हें दुबारा आघात लग सकता है इसीलिए वह अपने पापा को कुछ भी नहीं बताना चाहती थी।
दोस्तों चाहे हम कितना भी पढ़ लिख जाए हम कितने भी आधुनिक होने का नाटक कर ले लेकिन दहेज रूपी दानव यह हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाला है हमें लगता है कि हम शिक्षित हो जाएंगे तो यह खत्म हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं होता है हम जितना शिक्षित होते जाते हैं उतना ही यह बढ़ते जाता है अब खुद ऐसा महसूस करते होंगे अगर आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है तो आप अपनी कहानी हम से कमेंट बॉक्स में शेयर कर सकते हैं तो फिर मिलते हैं एक और नई प्रेरक कहानी के साथ तब तक अपने दोस्त को दीजिए इजाजत धन्यवाद।