आलसी बहु  – चेतना अग्रवाल

“अनुज, जरा थोड़ी देर के लिए गुनगुन को सँभाल लीजिए। लगातार रो रही है, इस तरह मैं रसोई में काम नहीं कर पा रही।” खाना बनाती रचना ने रसोई से अपने पति को आवाज दी जो टी वी देखने में मशगूल था।

रचना के सास-ससुर भी हॉल में बैठे टी वी देख रहे थे। अनुज की बड़ी बहन सौम्या भी रहने आई हुई थी। गुनगुन के रोने की आवाज सुनकर सौम्या रसोई में आने लगी तो मंजरी जी ने उसे हाथ पकड़कर बैठा लिया।

“ये तो उसका रोज का है, जब भी खाना बनाने जायेगी गुनगुन को रूला देगी जिससे उसे काम ना करना पड़े।”

“तो क्या हुआ मम्मी… भाभी अकेले काम भी कर रही हैं और दूध पीती बच्ची को भी सँभाले। ये कहाँ तक ठीक है। वो सबको गर्म रोटी लाकर खिला रही हैं, हम बच्ची को तो सँभाल सकते हैं। मैं बाद में भाभी के साथ खा लूँगी।” सौम्या ने कहा।

“अरे तू बैठकर गर्म रोटी खा। ससुराल में तो गर्म रोटी नसीब नहीं होती होंगी। कम से कम यहाँ तो गर्म खाना खा ले। रचना अपने आप सँभाल लेगी।” मंजरी जी ने सौम्या को रोक लिया।

आज गुनगुन भी चुप होने का नाम नहीं ले रही थी। इसलिए रचना को अपने पति से उम्मीद दिखाई दी। लेकिन  मंजरी जी ने अनुज को भी घूरकर देखा तो वो भी ज्यादा कुछ ना बोल सका। अनुज ने गुनगुन को उठाया और अपने पास पालना रखकर उसमें लिटा दिया और उसके मुँह में शहद का निप्पल लगा दिया। निप्पल मिलने और पालने में बिस्तर का आराम मिलने गुनगुन थोड़ी देर में रोते-रोते सो गई।




“देख, मैंने पहले ही कहा था कि बहू बच्ची को जानबूझकर रुलाती है जिससे उसे काम से बचने का बहाना मिल जाये।  बच्ची को और कुछ नहीं भूख लगी थी, उसे पहले ही दूध दे देती तो वो इतना ना रोती। अब वो सो गई है ना आराम से। ये काम तो वो खाना बनाना शुरू करने से पहले भी कर सकती थी जिससे हम सब आराम से खाना खा सकें।” मंजरी जी को यह बिल्कुल पसंद नहीं है कि रचना के अल्वा कोई और गुनगुन को सँभाले। उनका कहना था कि सभी औरतें अपने बच्चे को सँभालते हुए खुद ही काम करती हैं, हमने भी किया है तुम्हें भी करना चाहिए। इसलिए वो अनुज को भी उसकी सहायता नहीं करने देती।

गुनगुन के रोने की आवाज बंद हुई तो रचना के भी हाथ जल्दी-जल्दी चलने लगे। ना जाने क्यों आज उसकी ममता गुनगुन को गले लगाने के लिए तड़प रही थी, उसे लग रहा था कि आज गुनगुन की तबियत ठीक नहीं है, क्योंकि रोज तो गुनगुन इस तरह नहीं रोती। जल्दी से काम निपटाकर रचना गुनगुन के पास आई।

उसने जैसे ही गुनगुन को हाथ लगाया, “अनुज, गुनगुन को तो बहुत तेज बुखार है। आपने भी नहीं देखा और उसे ऐसे ही पालने में छोड़ दिया।” रचना को रोना आना लगा।

रचना की आवाज सुन अनुज और सौम्या भागकर आये। सौम्या ने गुनगुन का माथा छुआ तो देखा कि उसे तो बहुत तेज बुखार है। मंजरी जी तो अभी भी उसे वहीं बैठने के लिए कह रही थी।

सौम्या ने जल्दी से अनुज को गाड़ी निकालने के लिए कहा और रचना के साथ गुनगुन को लेकर डॉक्टर के पास गई।

डॉक्टर ने गुनगुन का चेकअप किया और कहा, “घबराने की बात नहीं है, वायरल है… दवाई दे दीजिए तीन दिन में वो ठीक हो जायेगी।”

घर आकर रचना ने गुनगुन को दवाई दी और उसके पास ही बैठी रही। सौम्या बोली, “भाभी, आप पहले खाना खा लो। गुनगुन को भाई देख लेगा।”




ननद की बात सुनकर सौम्या की आँख से आँसू बहने लगे। “दीदी, मुझे माफ करना। मुझे पहले ही लग रहा था कि आज गुनगुन की तबियत ठीक नहीं है इसलिए मैं बार-बार अनुज से उसे सँभालने के लिए कह रही थी। लेकिन जितनी देर मैं घर के काम करती हूँ कोई मेरी बच्ची को सँभालने वाला नहीं होता। सबको लगता है कि मैं नाटक कर रही हूँ। जबकि कोई इस बात का दूसरा पहलू समझने की कोशिश नहीं करता कि बच्चे को कुछ परेशानी भी हो सकती है या काम करते हुए बच्चे को सँभालने में के भी चोट लग सकती है। मुझे नहीं पता कि मम्मी जी ने बच्चों को सँभालते हुए अकेले कैसा काम किया लेकिन मुझे लगता है कि अगर घर में सब लोग हैं और माँ काम में लगी है तो बाकि लोग बच्चे को सँभाल सकते हैं, वरना संयुक्त परिवार में रहने का क्या फायदा..  अगर मुझे अकेले ही सब करना है तो मैं अकेले रहना ज्यादा पसंद करूँगी।” आज रचना के दिल का दर्द छलक उठा था।

रचना की बात सुनकर सौम्या बोली, “आपने सही कहा भाभी… मेरी सास भी मेरे साथ यह तो घर के काम कराती है या बच्चों को सँभालती है इसलिए तो मैं भी आराम से काम कर पाती हूँ। मम्मी, आपको भी सोचना चाहिए। हल बात के दो पहलू होते हैं, आपने हमेशा एक ही पहलू देखा है कि आजकल की बहुऐं काम से बचने के लिये बच्चे के रोने का सहारा लेती हैं, इसलिए आपने भाभी को ऐसा ही समझ लिया। जबकि आपको पतावहै कि आपकी बहू ऐसी नहीं है आपने इस बात के दूसरे पहलू को समझने की कोशिश नहीं को कि भाभी क्यों बच्ची को सँभालने के लिए कह रही हैं।




अगर आप-पापा या भैया गुनगुन को सँभाल लेंगे तैयारी को तो आसानी होगी ही… साथ ही गुनगुन भी किसी अंजान दुर्घटना से बची रहेगी और आप लोगों को भो गुनगुन के साथ खेलने का उसके दिल से जुड़ने का बहाना मिल जायेगा। अगर आज हमने पहले ही देख लिया होता तो गुनगुन को वक्त पर दवाई मिल जाती और हमें बेवक्त डॉक्टर के पास भागना नहीं पड़ता।

सही कहा भाभी ने संयुक्त परिवार में रहने का एक पहलू ये भी तो होता है कि बच्चे बचपन से ही सबके साथ खेलकर बड़े होते हैं तो उन्हें सबके प्यार के साथ-साथ सबकी सीख भी मिलती है। आपकी नजर में केवल बहू को सबके काम करने चाहिए।”

बेटी और बहू की बात सुनकर मंजरी जी को अपनी गलती का एहसास हुआ और आगे से अपने व्यवहार को बदलने का वादा किया।

दोस्तों अधिकतर घरों में सास यही सोचती है कि बहू केवल काम से बचने के लिए बच्चों के रोनेशका बहाना करती है जबकि बहुत बार ऐसा नहीं होता। बच्चा सच में किसी परेशानी में हो सकता है उस समय बच्चे को माँ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। अगर उस समय या तो कोई बच्चे को सँभाल ले या काम कर ले जिससे माँ बच्चे को सँभाल ले तो माँ और बच्चा दोनों परेशानी से बच जाते हैं और माँ भी बिना झुँझलाये काम कर पाती है।

दोस्तों कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें।

धन्यवाद

चेतना अग्रवाल

2 thoughts on “आलसी बहु  – चेतना अग्रवाल”

  1. ऐसी सासो का तो सांस लेने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए। और फालतू टीवी देख रहा पति अपने ही बच्चे का भी ना संभाल पाए तो उसे पिता कहलाने का कोई अधिकार नहीं। ……………………………

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