विनोद ने अपनी मां को फोन कर पूछा मां श्वेता कहां है उसका फोन नहीं लग रहा है मैंने भी कई बार ट्राई किया और उसके मायके से भी फोन आ रहा है उसके पिताजी को हार्ट अटैक आया है और वह हॉस्पिटल में है।
श्वेता किचन में खाना बना रही थी श्वेता की सास फोन लेकर आई और बोली बहू तुम्हारा फोन कहां है, “विनोद कब से फोन ट्राई कर रहा है और तुम्हारे मायके वाले भी फोन कर रहे हैं तुम्हारे पापा की तबीयत बहुत खराब है उन्हें हार्ट अटैक आया है विनोद ऑफिस से आ रहा है तुम जल्दी से जाने की तैयारी करो। “
श्वेता दौड़कर अपने बेडरूम में गई जहां उसने फोन चार्ज में लगाया हुआ था उसने देखा सच में उसके मायके से 8 मिस कॉल आए हुए हैं और उसके पति विनोद का भी 5 मिस कॉल आया हुआ है। उसने तुरंत अपनी मां को फोन लगाया और अपने पापा का हाल जाना मां ने बताया बेटी जल्दी से हॉस्पिटल आ जा तेरे पापा की बचने की उम्मीद नहीं है।
श्वेता जैसे ही हॉस्पिटल पहुंची हॉस्पिटल के गेट पर ही मां मिल गई और उनका रो-रो कर हाल बुरा हो रहा था क्योंकि श्वेता के पापा अब नहीं रहे डॉक्टरों ने कह दिया था कि अगर एक घंटा पहले भी आप लोगों इनको ला दिए होते तो शायद हम इनकी जिंदगी बचा सकते थे।
श्वेता का इकलौता भाई चेतन अमेरिका रहता था उसको भी खबर कर दिया गया था अगले दिन वह भी अपने परिवार के साथ आ चुका था।
पापा के तेरहवीं बीतने के के एक दिन बाद ही चेतन अपने परिवार के साथ अमेरिका अपनी मां से यह कह कर लौट गया कि मां बहुत जल्द हम आप को अमेरिका ले जाएंगे तब तक आप को हर महीने आपके अकाउंट में पैसे भेज दिया करूंगा।
श्वेता को जब पता चला कि उसका भाई उसकी मां को अपने साथ नहीं ले जा रहा है उसे अंदर ही अंदर बहुत गुस्सा आया लेकिन वह क्या कर सकती है सोच रही थी कैसा बेटा है मां के बारे में एक बार भी नहीं सोचा कि माँ अकेले कैसे रहेगी।
श्वेता ने सोच लिया था वह अपने मां को अकेला नहीं छोड़ेगी। अगले दिन उसे भी अपने ससुराल लौटना था सुबह होकर वह अपने मां का बैग पैक करने लगी मां ने कहा, “बेटी मेरा सामान क्यों रख रही हो।”
श्वेता ने कहा, “मां तुम अब यहां अकेले नहीं रहोगी तुम भी हमारे साथ चलोगी।” मां उदास नजरों से अपनी बेटी को देखते हुए बोली, “बेटी मैं तुम्हारे ससुराल जाकर क्या करूंगी। मुझे यही रहने दे तुम्हारे पापा के यादों के साथ।” “मां आपको तो पता है ना कि आपकी भी तबीयत ठीक नहीं रहती है फिर यहां पर आप की देखभाल कौन करेगा कुछ भी हो जाए मैं आपको अकेले में नहीं छोड़ सकती हूं आप मेरे घर चल रही है बस।”
“बेटी इमोशनल मत हो दिमाग से काम ले मुझे कुछ नहीं होगा फिर वहां पर तेरे सास – ससुर भी है उन्हें क्या? तुम्हारे यहां मेरा रहना अच्छा लगेगा। श्वेता ने अपनी मां से कहा मां मेरे सास-ससुर बहुत अच्छे हैं वह तो आप लोगों की परछाई की तरह है।
मां, भाई ने तो एक बार भी नहीं सोचा कि मां कैसे रहेगी तो क्या मैं भी छोड़ दूं नहीं मां मैं तुम्हें अकेले नहीं छोड़ सकती मैं तुम्हारी कुछ नहीं सुनने वाली हूं।” मां ने कहा, “बेटी दामाद जी ने भी तो एक बार भी नहीं कहा चलने के लिए उन्होंने भी तो बस इतना ही कहा कि मां जी आपको देखने हम आते रहेंगे।”
श्वेता ने अपनी मां से कहा मां तू अब कुछ मत सोचो वह तो ऐसे ही बोल दिए थे वह मेरी किसी भी बात का मना नहीं करते हैं तुम्हारे दामाद बहुत अच्छे हैं।”
श्वेता जब अपनी मां को अपने ससुराल लेकर गई तो उसके सास-ससुर चौक गए। उन्हें लगा कि श्वेता के पापा के गुजरने के बाद मां अकेले हो गई है तो कुछ दिन के लिए बहू लेकर आई है कि इनका मन लग जाएगा।
15- 20 दिन तक तो सब लोग श्वेता की मां से अच्छी तरह से बात कर रहे थे श्वेता की सास अपने साथ ही उनको भी शाम को सत्संग में ले जाया करती थी। श्वेता के पति भी अपनी मां की तरह श्वेता की मां को आदर और सम्मान देता था।
लेकिन एक दिन श्वेता के सास-ससुर अपने बेटे विनोद से पूछ बैठे, “विनोद बहू से पूछो उसकी मां कब तक यहां रहेगी कहीं पूरा जीवन यही बिताने का प्लान तो नहीं है।” विनोद ने भी अपनी मां से कहा, “हां मां मैं आज ही श्वेता से बात करता हूं मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा है अपने ही घर में मेहमानों जैसा फिलिंग आता है।”
रात में विनोद श्वेता से पूछा, “श्वेता मम्मी जी यहां कब तक रहेंगी। श्वेता ने कहा, “कब तक का क्या मतलब है विनोद ऐसा क्यों पूछ रहे हो। आपको तो पता है कि मां की तबीयत ठीक नहीं रहती है वहां रहकर अकेले क्या करेगी।” “अरे यार कैसी बात कर रही हो तुम्हें क्या पता मुझे अपने ही घर में किस तरह का फीलिंग हो रहा है ऐसा लगता है कि मैं अपने घर में नहीं बल्कि किसी मेहमान के घर हूं मैं हूं। तुम्हें समझ नहीं आता तो कम से कम उनको तो समझना चाहिए कि बेटी के घर ज्यादा दिन तक नहीं रहना चाहिए। तबीयत ठीक नहीं रहता है तो वहां पर एक केयरटेकर उनके लिए रख दो। पैसे की कमी तो है नहीं पापा जी की पेंशन आ ही रही है।”
उस दिन के बाद से ना ही विनोद और ना ही उसके माता पिता सीधे मुंह श्वेता की मां से बात करते थे। अब तो शाम को श्वेता की सास सत्संग में भी इनको नहीं ले जाती थी।
धीरे-धीरे श्वेता की मां को भी समझ आ गया था श्वेता के सास-ससुर और दामाद जी को यहां रहना अच्छा नहीं लग रहा है क्योंकि अब कोई भी उनसे बात नहीं करता था। श्वेता को भी एहसास हो गया था लेकिन वह अपनी मां को कैसे कह सकती थी कि मां चलो मैं तुम्हें वापस मायके पहुंचा देती हूं।
श्वेता को कभी लगा नहीं था कि उसका हस्बैंड या सास-ससुर उसके मां के के साथ इस तरह का व्यवहार करेंगे उसे तो अपने सास-ससुर में अपने मां पापा की परछाई नजर आती थी पति दोस्त की तरह लगता था लेकिन उसे यह अहसास हो गया था कि पति हमेशा पति होता है और सास-ससुर हमेशा सास-ससुर होते हैं वह कभी मां बाप नहीं बन सकते।
1 दिन श्वेता की मां ने खुद ही कहा, “बेटी मैं अब अपने घर जाना चाहती हूं आखिर कब तक तुम्हारे घर रहूंगी। तुम्हारी मौसी की लड़की सावित्री को गांव से बुला लूंगी उसकी पढ़ाई लिखाई भी हो जाएगी और मेरी देखभाल भी करेगी।”
श्वेता आखिर क्या कहती उसने बोला, “हां आज भर रुक जाओ कल तुम्हें पहुंचा दूंगी।” श्वेता को एहसास हो गया था कि माँ यहां रहकर और डिप्रेशन की शिकार हो जाएगी। श्वेता ने सबसे पहले तो उसने अपने भाई को फोन लगाया और भाई से कहा, ::भाई तुम अब मां को अपने पास क्यों नहीं ले जाते हो।”उसके भाई ने साफ-साफ कह दिया था कि देखो श्वेता तुम्हें तो पता है कि तुम्हारी भाभी भी जॉब करती है और मैं भी यहां घर में कौन देखभाल करेगा यहां अमेरिका में तो लोग भी नहीं मिलते हैं देखभाल करने के लिए। तुम ऐसा करो मां के लिए वहीं पर कोई नौकर रख दो जितना पैसे की जरूरत होगी मैं भेज दिया करूंगा। श्वेता ने गुस्से में कहा भाई मां को तुम्हारे पैसे की जरूरत नहीं है पापा की पेंशन इतना आ जाती है कि मां की जिंदगी आसानी से कट जाएगी।
श्वेता ने फैसला कर लिया था कि वह अपने मां को ऐसे अकेले तन्हा नहीं छोड़ सकती है। श्वेता की एक फ्रेंड कानपुर में ही एक एनजीओ चलाती थी। श्वेता ने अपनी फ्रेंड से बात कर अपने मां के लिए एनजीओ का ब्रांच ओपन करवा दिया। क्योंकि उसका घर बहुत बड़ा था रहने वाला कोई नहीं था यह तो तय था कि अब उसका भाई कभी इंडिया वापस नहीं आने वाला है।
श्वेता ने जब अपनी मां से कहा तो उसकी मां बहुत खुश हुई उसने कहा यह बेटी तुमने बहुत अच्छा किया इससे मेरा समय भी कट जाएगा और महिलाओं के साथ और मेरे मे जो हुनर है वह भी मैं दूसरी महिलाओं को सिखा पाऊंगी।
अगले दिन श्वेता अपनी मां को लेकर अपने मायके के लिए जाने लगी जब उसके साथ ससुर को पता चला कि उसकी मां अब जा रही है तो उन्होंने शिष्टाचार बस आकर इतना ही कहा, “अरे बहन जी वहां जाकर क्या करेंगी यहां रहेगी तो बहू आपकी देखभाल भी करेगी।” उसका हस्बैंड विनोद भी सेम यही बात बोला लेकिन श्वेता ने कुछ नहीं कहा क्योंकि उसके अंदर गुस्सा भरा हुआ था अगर वह कुछ बोलती तो बहुत अनर्थ हो जाता इसीलिए उसने सोचा चुप रहने में ही भलाई है मन ही मन सोच रही थी कैसे लोग हैं यह ऊपर से कितने भोले बन रहे हैं और अंदर काले नाग से भी ज्यादा विष भरा हुआ है।
कुछ ही दिनों के अंदर श्वेता अपने मायके के घर में एनजीओ खोल चुकी थी श्वेता की मां सिलाई कढ़ाई में पारंगत थी वह महिलाओं को सिलाई कढ़ाई सिखाने लगी तो वही श्वेता छोटे गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। श्वेता ने अब सोच लिया था कि मां मेरे साथ नहीं रह सकती है तो कोई बात नहीं मैं मां के साथ तो रह सकती हूं इसके लिए तो मुझे कोई नहीं रोकेगा।
विनोद ने कई बार श्वेता को फोन पर कहा श्वेता तुम वहां जाकर रहने लगी हो तो अब इस घर का क्या होगा तुम्हें जरा सा भी ख्याल नहीं है। श्वेता ने बस इतना ही कहा विनोद तुम अपने मां बाप को देखो और मैं अपने मां को।
लेकिन यह श्वेता के लिए आसान नहीं था जब श्वेता की मां को पता चला उनकी वजह से श्वेता और उसके दामाद जी में लड़ाई झगड़े होने शुरू हो गए हैं एक मां कभी नहीं चाहेगी कि उसकी वजह से उसकी बेटी का घर उजड़ जाए। श्वेता की मां ने अपनी कसम देकर अपनी बेटी को उसकी ससुराल भेज दी बोली, “बेटी मैं बहुत खुश हूं कोई भी दिक्कत हो मैं तुम्हें फोन कर लिया करूंगी और तुम भी आते जाते रहना क्योंकि तुम्हारे बगैर तो यह एनजीओ चल ही नहीं सकता।”
श्वेता को ना चाहते हुए भी अपने ससुराल जाना पड़ा। अब वह अपने ससुराल में रहने तो लगी थी लेकिन उसके पति और सास-ससुर के रिश्तो में एक गांठ जरूर आ गई थी।
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