कृष्णकांत जी पलंग पर लेटे-लेटे सोच रहे हैं और उनकी आंखों से अश्रु बह रहे हैं, नन्हा पांच साल का उनका पोता भौतिक जो पास में बैठकर खिलौने से खेल रहा है। उसने अपने दादाजी को रोते देख अपनी मा सुनिता को पुकारा, “मां देखो ना दादाजी रो रहे हैं।”
सुनिता जो रसोईघर में कृष्णकांत जी के लिए शिरा बना रही हैं वो भागकर आई और कृष्णकांत जी से पूछा, “क्या हुआ पिताजी ? हम से कोई गलती हुई या आप को कहीं दर्द हो रहा है, आप के बेटे को बुला लूँ?”
सुनिता के इतना पूछने पर कृष्णकांत जी फूट-फूटकर रो पड़े, सुनिता ने उन्हें नन्हें बच्चे के भांति चुप कराया। नन्हा भौतिक दादाजी को रोता देख घबरा गया है, कृष्णकांत जी के चुप होने के पश्चात उन्हें सुनिता ने पानी पिलाया और फिर प्यार से शिरा भी खिलाया, दवाई देकर सुला दिया।
पर आज कृष्णकांत जी से नींद कोसों दूर है वह भूतकाल में खो गए, जहां उनकी शादी अनुराधा जी से हुई थी दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय चल रहा था, पर अनुराधा जी एकलौती बेटी होने के कारण जब उनके पिताजी का देहांत हो गया तो अनुराधा जी और कृष्णकांत जी थोड़े दिन उधर रुकने के लिए चले गए। परंतु दोनों के बीच प्रोपर्टी के लिए झगड़ा हो गया और कृष्णकांत जी घर छोड़कर चले गए तब अनुराधा जी छः महीने की गर्भवती थीं, उन्होंने अपना दांपत्य जीवन बचाने के लिए बहुत प्रयास किया पर सफलता हासिल नहीं हुई।
अनुराधा जी अपनी मां के साथ रहने लगे, वो पूरा दिन सोचती रहती की मेरी गलती क्या है इसलिए उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही थी और उन्हें एक प्यार सा बेटा भी हुआ। उनका अब एक ही लक्ष्य था कि अपने बेटे सुमित को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाना है और उसमें संस्कार का बीज बोना है। धीरे धीरे सुमित बड़ा हो गया और उसको मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई, हार्थों-हाथ अनुराधा जी ने उसकी शादी सुशील और समझदार सुनिता से करवा दीं।
अब अनुराधा जी की तबीयत नरम-गरम रहने लगीं उन्होंने अपने बेटे बहू को अपने पास बुला कर अपनी आप बीती कह दी और कहा कि, ” अगर तुम्हारी इच्छा हो तो तुम्हारे पापा को लाना चाहते हों तो ला सकते हो, मैं कभी नहीं चाहतीं थीं कि तुम्हें पिता के प्यार से वंचित रखबु, पर वे कभी समझना ही नहीं चाहते हैं” और वो चल बसी।
सुमित ने अपने पिताजी को ढूंढा, उम्र दराज होनेके कारण वह पथारीवश हो गए हैं, फिर भी सुमित और सुनिता उन्हें अपने घर ले आए, सुमित चाहता है कि मेरा बचपन तो पिताजी के प्यार के बिना ही चला गया पर भौतिक को दादाजी का प्यार मिलें।
सुमित के बुलाने पर कृष्णकांत जी की विचारधारा छूटी उन्होंने अपने बेटे को पास बुलाया और सर पर ममता भरा हाथ सहलाते हुए कहा कि, ” यह तुम्हारी मां के संस्कार ही तो है जो तुम और बहू मेरी इतनी सेवा कर रहे हो, बहू के माता-पिता को भी कोटि-कोटि नमन जिन्होंने उसमें इतने अच्छे संस्कार दिए, में आप दोनों का ऋणी हो गया, ही सकें तो बेटा मुझे माफ़ कर देना मैंने तुम्हारा बचपन बिगाड़ा है” और कृष्णकांत जी सदा के लिए चल बसे, सुमित और सुनिता फूट-फूटकर रोने लगे। नन्हा भौतिक अपने दादाजी का पार्थिव शरीर को निहारता रहा।
दोस्तों, अगर मुझसे लेखन में कोई त्रुटी हुई है तो माफी चाहूंगी |
#संस्कार
भाविनी केतन उपाध्याय
स्वरचित और मौलिक रचना ©®
धन्यवाद