माँ मै आपका अपमान नही सह सकती – किरण विश्वकर्मा 

आज कई वर्षों बाद वह अपनी मां के सामने बिलख पड़ी…..  मां मै तुम्हारा अपमान कैसे सह लूँ….. मां मैं थक चुकी हूं अब और मुझसे सहन नहीं होता है फिर मेरी बात हो तो मैं बर्दाश्त भी कर लूं पर जब मां आपको कोई कुछ भी अपशब्द कहता है या फिर मेरी परवरिश पर उंगली उठाता है तब ना मुझसे बर्दाश्त नहीं होता है जैसे मेरी सासू मां मेरे पति की मां है..मैं उनका मान- सम्मान करती हूँ…….तो वैसे आप भी तो मेरी मां हो और मां तो पूजनीय होती है…….मां का स्थान तो भगवान के बराबर होता है भगवान और मां में कोई फर्क नहीं होता है…….मां आप तो हमारी ताकत हो फिर आप तो ऐसी मां हो कि पापा के ना रहने पर आपने हमें मां और पिता दोनों का प्यार दिया……पापा के ना रहने पर जब सभी लोगों ने मुंह मोड़ लिया था तब आपने अपने आंचल की छाया में हमें महफूज रखा, अपनी जिम्मेदारियां बराबर से निभाती रही, हमेशा सही गलत का फर्क बताया, आपने घर और कार्यालय दोनों की जिम्मेदारियां निभाई ताकि घर और अच्छे से तरीके से चल सके, हम लोगों की खातिर आपने बसों में धक्के खाए शीत की ठंडी लहर, गरमी की तेज धूप, बारिश, तूफान सब का सामना किया, दुनिया के ताने सुने पर आपने खुद को कभी हम लोगों के सामने कमजोर नहीं पड़ने दिया………ऐसी मां पर जब मेरी सासू मां कुछ भी अपशब्द कहती है तो मुझसे सहन नहीं होता है बताओ ना मां आपने कितने कष्टों से हम सभी को पाला है फिर मैं आपकी बुराई कैसे सुन लूं…..जबकि मैंने कई बार यह बात कही है कि आपको जो कुछ भी कहना है मुझे कह लो पर मेरी मां को कुछ मत कहना……..इतना कहते ही वेदिका जोर- जोर से रोने लगी उसको रोते देख कर मां निर्मला जी ने उसे गले से लगा लिया…….बेटा कोई बात नहीं वह तेरी सास हैं…..वह तेरे पति की मां है और मैं उनकी बहू की मां…..हम लड़की वाले हैं…..हम लोगों के लिए मान्य हैं वह कह सकते हैं……हो सकता है मुझसे ही कोई गलती हो गई होगी……निर्मला जी ने कहा




मां आप कितनी भोली हो…..कुछ कहने की बजाय खुद अपने में ही कमियां निकाल रही हो……नहीं मां आप में कोई कमी नहीं है……आप मेरे लिए दुनिया की सबसे अच्छी मां हो तभी अजय जो थोड़ी देर पहले ही आए थे…….पर्दे के पीछे से उनकी बातें सुन रहे थे वह अंदर आए और बोले नहीं मां जी……आप में कोई कमी नहीं बस सिर्फ सोच का फर्क है पर अब तक जो हुआ सो हुआ पर आपसे मैं यह वादा करता हूं की अब आगे से ऐसा कुछ भी नहीं होगा और यह कहते हुए अजय वेदिका को घर ले आए। दूसरे दिन वेदिका को बुखार था……अजय ने देखा तो जाकर मां से कहा……मां आप चाय बना दीजिए मुझे वेदिका को देना है और दवाई भी खिलानी है।

क्यों महारानी को क्या हुआ है….आठ बज गए हैं अभी तक सो कर नहीं उठी…..क्या उसकी मां ने यही सब सिखाया है और उस महारानी के लिए तुम मुझसे चाय बनवा रहे हो मिथिलेश जी बोलीं।

मां पहली बात तो वेदिका को बुखार है और फिर हमेशा तो वही सारे घर के काम करती है तो क्या अगर आज वह बीमार है तो क्या आप उसको चाय भी नहीं बना कर दे सकतीं… जब आप बीमार पड़ती हैं या फिर कोई और तब तो वह घर को संभालने के साथ-साथ आप सबकी भी सेवा करती है दूसरी बात आप हर बात में उसकी मां को क्यों घसीट लाती हैं जैसे आपने हमें अच्छी परवरिश दी है…..वैसे ही उसकी मां ने भी उसे अच्छी परवरिश दी है ऐसा कोई भी कार्य नहीं सिखाया है जिससे उसे नीचा देखना पड़े क्या इतने समय में आप अभी तक उसे समझ नहीं पाई। जब दीदी की सास आपको बुरा भला कहती हैं तब आपको कितना बुरा लगता है वैसे ही वेदिका को भी बुरा लगता है……वेदिका के लिए तो उसकी माँ माँ भी है और पिता भी तो फिर आप कैसे उनका अपमान कर सकती हैं? चाय नहीं बनानी तो ना सही……आप बैठिए मैं सभी के लिए चाय बना कर लाता हूं……यह कहते हुए अजय रसोई में चला जाता है तभी उसके पिता जीवन जी मिथलेश जी से कहते हैं…..इंसान को दूसरे से सम्मान पाने के लिए दूसरों को मान भी देना पड़ता है अगर आप किसी को मान नहीं दे सकते तो किसी का अपमान करने का भी हमें कोई हक नहीं बनता…..मेरी बात पर गौर करना मैं जा रहा हूं दुकान से बहू के लिए ब्रेड और मक्खन लेने…….उसे दवाई भी तो खानी होगी यह कहकर जीवन जी घर से बाहर चले जाते हैं तभी मिथिलेश जी को अपनी गलती का एहसास होता है और वह रसोई में आती हैं अजय से कहती हैं……बेटा मुझे माफ कर दे अब ऐसी कोई भी बात बहू की मां को नहीं कहूंगी जिससे बहू को दुख पहुंचे लाओ मैं सबके लिए चाय बना देती हूं यह कहते हुए अजय को वहां से हटा देती हैं और खुद चाय बनाने लगती हैं।

किरण विश्वकर्मा 

(v)

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