टुकड़ों में बंटी जिंदगी-मुकेश कुमार

यह कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित है सिर्फ पात्रो का नाम बदल दिया गया है 

मेरा नाम रजनी  है। दादी और पापा की गलतियों की वजह से मैं विकलांग पैदा हुई। मेरे मां को भरपूर खाना भी नहीं मिलता था उनको मेरी दादी हमेशा मानसिक टॉर्चर करती थी क्योंकि पापा और दादी को पता चल गया था कि मेरी मां के गर्भ में एक बेटी पैदा होने वाली है वैसे तो गर्भ में पल रहे शिशु के लिंग जांच करना अपराध है लेकिन डॉक्टर पापा के दोस्त थे तो उन्होंने बता दिया कि मेरे मम्मी के गर्भ में एक लड़की है। 

 सही पोषण युक्त खाना ना मिलने की वजह से मैं पैदा होते ही पीलिया रोग से ग्रसित थी लेकिन उसके बाद भी मेरा इलाज नहीं करवाया गया मेरी मां मुझे बहुत प्यार करती थी उनको यह फर्क नहीं था कि मैं लड़की हूं या लड़का उनको तो बस यह था कि मैं उनकी खून हूं।  मेरे पापा भी दादी के साथ मिलकर मम्मी को टॉर्चर करते थे मम्मी घर में एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं थी पापा उनको एक रुपए भी नहीं देते थे सब कुछ रहते हुए भी वह अंदर ही अंदर घुटती रहती थी। 

 बस एक बात अच्छी थी कि नाना नौकरी करते थे तो नानी जब भी मेरी मां  अपने मायके जाती तो नानी चुपके से कुछ रुपए दे देती थी। 



 मेरी नानी मेरी मां का दुख देखकर बहुत परेशान रहती थी नाना-नानी जितना हो सकता था सहयोग करते थे लेकिन उनकी भी मजबूरी थी उनको भी डर था कि मामा-मामी कहीं नाराज ना हो जाए। 

 ऐसे करके धीरे-धीरे मैं  2 साल की हो गई लेकिन मेरे घर में मुझसे कोई बात नहीं करता था यहां तक की मेरे बड़े पापा के लड़के लड़कियां भी मुझसे बात नहीं करते थे।  विकलांग होने की वजह से मैं ठीक से चल नहीं पाती थी बस कैसे भी घुटना रेंग  कर धीरे धीरे चलती थी।  लेकिन मेरी मां हमेशा मेरा ध्यान रखती थी वह हर समय मुझे अपने गोदी में लिए रहती थी।  शायद मां को अंदर से आभास हो गया था कि वह ज्यादा दिन नहीं जिएगी और हुआ यही भी मां को ब्लड कैंसर हो गया और मां मुझे 5 साल का ही  छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए चल बसी।  मां के जाने के बाद मेरी दादी और पापा ने मुझे अनाथ आश्रम भेजने के बारे में सोचने लगे।  लेकिन जब यह बात मेरे नाना नानी को पता लगी तो वो लोग  मुझे अपने साथ लेकर चले गए।  जबकि मुझे अपने साथ रखने के लिए मामा मामी तैयार नहीं थे लेकिन इस बार नानी अपनी जिद पर अड़ गई थी वह नाना के साथ अलग रहने लगी लेकिन वह मुझे छोड़ना नहीं चाहती थी। 

 धीरे धीरे मैं अब 10 साल की हो चुकी थी  मेरे पापा कभी भी मुझे देखने तक नहीं आए और ना ही कभी नानी के पास फोन आता था।  नानी बताती थी कि तुम्हारे पापा ने दूसरी शादी कर ली है। 

यह सच  है कि भगवान अगर एक रास्ते बंद करता है तो दूसरे रास्ता खोल देता है मैं पैरों से भले विकलांग थी लेकिन मेरे कंठ में जान थी मेरे बोल बहुत सुरीले थे।  यह ईश्वरीय देन था नाना ने मुझे संगीत सीखने के लिए एक टीचर को भी रख लिया था वह आकर मुझे संगीत सिखाते थे. औ और वह हमेशा मुझे हिम्मत देते थे कहते थे कि तुम्हारे पास पैरों की ताकत भले  नहीं है लेकिन तुम्हारे गले  में ताकत है और इसी को तुम अपनी ताकत बनाओ और दुनिया को दिखा दो कि जरूरी नहीं है कि जिसके पास पैर नहीं है वह दुनिया में कुछ नहीं कर सकता है तुम्हें अपने आप को इतना मजबूत बनाना होगा कि तुम दुनिया के सामने एक उदाहरण बन सको। 



 ज्यादातर बच्चों के आदर्श उसके माता-पिता होते हैं लेकिन मेरे आदर्श मेरे नाना-नानी थे। 

 धीरे-धीरे मैं बड़ी होती गई और संगीत से ही मैंने ग्रेजुएशन और मास्टर डिग्री भी हासिल की।  मैं कई सारे गानों का प्राइवेट शो भी करती थी। 

 इलाहाबाद में ही विकलांग कोटे से एक स्कूल में मुझे संगीत शिक्षक की नौकरी लग गई। 

फिर एक दिन मेरी नानी इस दुनिया को छोड़ कर चली गई उस दिन मैं बहुत दुखी हुई क्योंकि इस दुनिया में मेरा जो कुछ भी थी मेरी नानी थी उसने मेरे लिए इस दुनिया से लड़ाई की।  नानी ने यह भी परवाह नहीं की कि उसकी बुढ़ापे में उसको कौन करेगा उसने अपने बेटा बहू से भी लड़ाई करके मुझे पाला। 

 अब एक दूसरे का साथ निभाने के लिए सिर्फ मैं और मेरे नाना रह गए थे । 

 1 दिन मैं और नाना रात में डिनर कर रहे थे नाना बोले, ‘बिटिया तुम्हारी भी अगर शादी हो जाती तो मैं भी आराम से मर सकता हूं।”  मैंने हंसते हुए नाना से कहा, “नाना आप कैसी बात कर रहे हैं मुझ विकलांग से कौन शादी करेगा।  मैं तो किसी के लायक ही नहीं हूं भला एक बोझ से  से शादी कौन करेगा।”  नाना बोले, “बिटिया तुम  विकलांग नहीं  हो तुम्हारे गले में सरस्वती बसती हैं।”  “उससे क्या हो गया नाना जी शादी करने के लिए दोनों हाथ पैर सलामत होना चाहिए।  नाना की एक बात अच्छी थी वह कभी भी हिम्मत नहीं हारते थे वह हमेशा विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक बातें करते थे वह मुझसे कहा करते थे की बेटी जोड़ियां ऊपर से बनकर आती है जिसका जन्म होता है भगवान उसकी जोड़ी भी कहीं ना कहीं पैदा कर देता है और तुम्हारे लिए भी कहीं ना कहीं कोई जरूर होगा।” 



 जिस स्कूल में मैं संगीत शिक्षक थी उसी स्कूल में एक हिमांशु नाम के शिक्षक भी थे।  धीरे-धीरे हम दोनों में दोस्ती हो गई।  फिर उन्होंने एक दिन मुझसे प्यार का इजहार कर दिया।  उन्होंने बोला, “रजनी मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूं और मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।”  यह बात सुनकर मैं जोर से ठहाका मारकर हंसी और बोली, “हिमांशु जी क्यों मजाक करते हैं मजाक करने के लिए क्या आपको मैं ही मिली थी।   भला इस विकलांग से कोई शादी कर सकता है।”  ” रजनी मैं मजाक नहीं कर रहा हूं मैं सच कह रहा हूं मैं तुमसे प्यार करता हूं और शारीरिक विकलांगता ईश्वर की देन है इसमें हमारा और तुम्हारा कोई दोष  नहीं।” 

मुझे भी लगा कि हिमांशु शायद सीरियस कह रहे हैं मैंने बोला, 

“हिमांशु एक बार और सोच लीजिए मैं ना  तो नहीं सकती लेकिन आपको एक बार दोबारा सोचना चाहिए क्योंकि शादी के रिश्ते को मैं जन्मों का बंधन मानती हूं और मेरे लिए शादी एक मजाक नहीं है।  इसीलिए एक बार आप सोच लीजिए और यह भी ध्यान रखिए कि मैं विकलांग हूं एक पत्नी जो सुख दे सकती है शायद मैं आपको वह सारी सुख ना दे पाऊं।” 

“मैंने सोच लिया है और तभी तुमसे कह रहा हूं रजनी प्यार तो मन का रिश्ता होता है इसका शरीर के से क्या संबंध।” 

 “हिमांशु जी यह बातें शायरी की किताबों में अच्छी लगती है प्रैक्टिकल जीवन में बेमानी सी लगती है यह बातें।  क्या आपके घर वाले इस रिश्ते के लिए तैयार होंगे।”

“मुझे इसकी परवाह नहीं है मुझे सिर्फ तुम चाहिए।” 

मैंने हिमांशु से कहा कि अगर आपके घर वाले शादी के लिए तैयार हैं तो मैं आपसे शादी करने के लिए तैयार हूं लेकिन मेरी एक और शर्त है मैं अपने नाना जी को नहीं छोड़ सकती हूं मैं जहां भी रहूंगी मेरे नाना जी मेरे साथ रहेंगे क्योंकि इन्होंने मुझे नई जिंदगी दी है आज अगर मैं जिंदा हूं तो अपने नाना-नानी की वजह से हूं मेरे मां के मरने के बाद मेरे पिता ने तो मुझे छोड़ ही दिया था मैं सिर्फ 5 साल की थी कहां जाती? क्या करती?कुछ समझ नहीं था? लेकिन नाना-नानी ने मुझे मामा-मामी से लड़ाई करके नई जिंदगी दी है। 

 हिमांशु तैयार हो गए थे मेरे नाना को भी साथ रखने के लिए।  शुरू में तो उनके घर वाले शादी के लिए तैयार नहीं थे लेकिन हिमांशु की जिद की वजह से उनके मां-बाप को भी झुकना पड़ा।  शुरू में उनके घर वाले मुझसे सही तरीके से बात नहीं करते थे लेकिन बाद में सब मुझे बेटी की तरह मानने लगे।  बचपन में जो प्यार के लिए मैं मरहूम रही वह मां बाप का प्यार सास-ससुर के रूप में मिलने लगा था।

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