“हे प्रभु,सवा सौ का प्रसाद चढ़ाऊंगी,,पर इस बार भी उसे बेटा ही देना” वो हाथ जोड़े बार-बार प्रार्थना कर रही थीं।फिर उन्हें बेचैनी सी होने लगी तो उठकर चहलकदमी करने लगीं।
“आज ग्यारह तारीख़ है।सौर की वजह से छोटी बहू के साथ कम से कम सवा महीना तो रहना ही होगा…मतलब अगले महीने के पन्द्रह दिन और।” मन ही मन वो गणित लगाने लगीं ,,, “फिर इतने दिन छोटी कैसे सहेगी उसे?” इच्छा हो,न हो लेकिन पहली तारीख़ आते ही वह एक घर से दूसरे घर पहुँचा दी जाती है। ज़िन्दगी फुटबॉल सी हो गई है उसकी। पिछले हफ्ते बेटे बिन्नू की कही बात उनके कानों में गूँज उठी ” मम्मी,कल एक तारीख़ है, अपनी तैयारी कर लो तो ऑफिस जाते समय मैं आपको पुरू के घर छोड़ दूँगा, वरना अलग से जाने में बहुत दिक्कत होती है और टाइम बरबाद होता है वो अलग।”
ठीक ऐसे ही तो छोटी बहू करती है। बिन्नू की बहू तो फिर भी मन की भली है,,, एक आध दिन ज़्यादा हो जाये तो भी झेल लेती है, कुछ नही कहती, पर छोटी तो कोई रहम नही करती, बहुत ही कठोर दिल की है। वह तो महीना शुरू होने के तीन-चार दिन पहले से ही उसे जाने के लिए आगाह करने लगती है और यदि किसी वजह से एक दो दिन ज़्यादा हो जाये तब तो मुँह ही फुला लेती है, बात बात पर चिड़चिड़ाती है और सीधे मुँह बात ही नही करती। आह!! अपने ही बच्चों पर बोझ सी बन गई है वह,,,,
“माँ जी,एक बात पूछूँ?” तभी पास बैठी महिला की आवाज़ सुनकर उनकी तंद्रा टूटी।
“अ,, हां, हां,,” जल्दी से अपने आँसू पोंछकर वो मुस्करा दीं।
“बड़ी देर से मैं आपको भगवान से पोता माँगते देख रही हूँ। बुरा न मानियेगा..पर अब तो लड़का, लड़की में कोई फ़र्क नही रह गया है। और वैसे भी आपका पहले से भी एक पोता है न? तो फिर दूसरे के लिए मनौती क्यों ,,,?
“हम्म्म्म,,,,” उन्होंने गहरी निःश्वास भरी ” तूने सही कहा बिटिया। मैं भी यही चाहती हूँ कि घर में एक बेटी हो और हर परिवार में बेटी तो होनी ही चाहिये तभी तो परिवार पूरा होता है,,, लेकिन मनौती इसलिये मना रही हूँ ताकि बहू बेटे को भी तो अहसास हो कि दो बेटों के बीच पिसकर माँ बाप की क्या हालत होती है”..उन्होंने कहना चाहा पर शब्द उनके गले में ही अटककर रह गये,,,
कल्पना मिश्रा
कानपुर