छोटा-सा सपना – दीक्षा शर्मा

विधा – लघुकथा

 

 

जब दिशा ने अपने पापा से बोला कि वो एक प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका बनना चाहती है तो उसके पापा कुछ खास खुश नहीं हुए। कारण यह था की वो दिशा को अपनी तरह रेलवे में नौकरी करवाना चाहते थे।पर दिशा को हमेशा से छोटे बच्चों के साथ समय बिताना अच्छा लगता था इसीलिए उसने ऐसी ही नौकरी करने का फैसला किया जिसमें उसे ज्यादा से ज्यादा समय बच्चों के साथ बिताने का मौका मिले।ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद वो बीटीसी करने लखनऊ चली गई और वहां उसने बहुत कुछ अनुभव किया।परिवार से दूर रहकर वो अब जिम्मेदार भी हो गई थी क्योंकि वहां उसे अपना ख्याल खुद रखना था। बीटीसी कॉलेज में ट्रेनिंग के लिए गांव के प्राथमिक विद्यालयों में १ महीने के लिए जाना पड़ता था।दिशा ने देखा कि उन विद्यालयों की दशा बहुत खराब है।वहां शिक्षा के नाम पर बच्चों के साथ खिलवाड़ हो रहा है।सरकारी शिक्षक को केवल वेतन लेने से मतलब है।

२ साल में ४ बार उसकी ट्रेनिंग लगी और उन ४ महीनों में वो पूरी लगन से बच्चों को पढ़ाती रही।उसने सोच रखा था कि अब वो सरकारी शिक्षक बनकर सुधार करेगी।जहां उसकी पोस्टिंग होगी वहीं से सुधार की शुरुआत करेगी।

२ साल बीतने पर वो अपने घर आ गई और सरकारी शिक्षक बनने के लिए परीक्षा की तैयारी करने लगी।

लेकिन शिक्षक भर्ती जल्दी नहीं आती इसीलिए उसे ३ साल का लंबा इंतजार करना पड़ा।इन ३ सालों में उसने बहुत कुछ अनुभव किया। लोगों के ताने सुने,बेरोजगार जैसे शब्द सुने और अवसाद भी झेला।लेकिन दिशा ने मेहनत करनी नहीं छोड़ी।वो निरंतर अपनी मेहनत में लगी रही।और फिर एक दिन जब परीक्षा का परिणाम आया तो उसका चयन सरकारी शिक्षक के लिए हो चुका था।

दिशा के पापा आज बहुत खुश थे।उसकी मम्मी ने उसे गले से लगा लिया।३ साल के लंबे इंतजार के बाद अंतत: आज वो सफल हो चुकी थी।अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी थी।

 

– दीक्षा शर्मा 

  गोरखपुर,उत्तर प्रदेश

(मौलिक व स्वरचित)

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