‘नदी सी मर्यादा’ – अनीता चेची

जैसे ही पलक को कॉलेज की ओर से मनाली भ्रमण की सूचना मिली  खुशी से झूम उठी। सफर पर जाने के सपने बुनने लगी परंतु भीतर ही भीतर संशय भी था कि पापा जाने देंगे या नहीं।

अगले दिन सुबह पलक ने अपने पापा  से कहा ,पापा जी कॉलेज की सभ छात्र-छात्राएं ट्रिप पर मनाली जा रहे हैं, आप कहे तो, मैं भी चली जाऊं ।’

 पापा जी ने सुनते ही मना कर दिया, बेटी स्त्री की मर्यादा

 नदी सी होती है अपनी सीमा से बाहर जाते ही अपने        साथ बहुत लोगों को बर्बाद कर देती हैं, तुम अपनी पढ़ाई    पर ध्यान दो ,व्यर्थ की उलझनों में मत पड़ो।’

पलक के तो जैसे सारे सपने पलभर में ही चूर चूर हो गए,

रूआई सी इतना सा मुंह लेकर अपने कमरे में बैठ गई।

और मन ही मन सोचने लगी , भ्रमण  में  नदी की बात कहां से आ गई, घूमने ही तो जाना है ,इसमें कौन सी मर्यादा लांघ  रही हूॅं, क्या लड़कियों को दुनिया देखने का कोई अधिकार नहीं है, वह हमेशा   पिंजरे के भीतर ही कैद रहेंगी ?’

थोड़ी ही देर में सहेलियों ने फोन पर पैकिंग की तैयारी के बारे में  पलक  से पूछा, पलक तुमने पैकिंग कर ली ,

हम सब तैयार हैं ,बस परसों 9:00 बजे मनाली के लिए चलेगी, हम सबको वही इकट्ठा  होना है।’




 पलक ने बड़ी मायूसी से कहा , पिताजी ने मना कर दिया, उन्हें लड़कियों का बाहर जाना पसंद नहीं है ‘।

पलक की सहेलियों ने कहा ,

हम भी तो लड़कियां हैं ,और फिर हमारी टीचर हमारे साथ है , यह पूरा ट्रिप सुरक्षित है, तुम उन्हें समझाओ’।

पलक -‘  वे मेरे कहने से  नहीं मानेंगे’।

फिर सभी लड़कियों ने अपनी टीचर से कहा कि वह पलक के पिता जी से बात करें।

टीचर ने पलक के पापा को आश्वासन दिया आप बिल्कुल भी चिंता ना करें, बच्चों के मानसिक विकास के लिए बाहर जाना बहुत जरूरी है, हम सब बच्चों के साथ रहेंगे।’

टीचर के कहने पर पलक के पिताजी ने हाॅं भर दी ।

हाॅं सुनते ही पलक खुशी से झूम उठी और जल्दी-जल्दी सारा सामान पैक कर लिया। सभी लड़के लड़कियां अपने अध्यापकों के साथ सफर पर निकल पड़े। पूरा सफर अध्यापक और बच्चों ने अंताक्षरी और गानों के साथ खुशी से बिताया।

सफर का पता ही नहीं चला कि कब कब में सभी मनाली पहुंच गए। मनाली की वादियों में पलक को ऐसा लग रहा था मानो  स्वर्ग में उतार आई  हो,  एक पिंजरे से मुक्त होकर गगन में उड़ रही हो। वह अपनी मुट्ठी में इन पलों को कैद कर लेना चाहती थी। मनाली के सात दिवसीय कैंप में हर रोज एक अलग गतिविधि होती।




रोज रात को कैंप फायर होता। हर बच्चा अपनी प्रतिभा दिखाता। पलक को भी अपनी प्रतिभा प्रदर्शन करने का मौका मिला। उसने सभी के सामने बहुत सुंदर नृत्य प्रस्तुत  किया। उसके नृत्य को देखकर  सभी पलक को  पसंद करने लगे। वह कैंप के आकर्षण का केंद्र बन गई।

हर कोई उसे जान गया।

वही दूसरे राज्य से आए हुए लड़के शुभम बहुत  अच्छा गाना गाया। वह भी कैंप में सबके आकर्षण का केंद्र बन गया। पलक और शुभम एक दूसरे से बातें करने लगे।

शुभम- ‘पलक  तुम बहुत अच्छा नृत्य करती हो।’

पलक -‘ तुम भी बहुत अच्छा गाते हो।’

दोनों को एक दूसरे से बात करना  अच्छा लगता।

छठे दिन घर वापसी की तैयारी होने लगी। अगले दिन सबको वापिस अपने घर जाना था ।

शुभम-‘पलक घर वापस जाने से पहले, मैं तुमसे अकेले में मिलना चाहता हूॅं ,तुम आज शाम कैंप के पीछे आ जाना।’

शाम को पलक शुभम से कैंप के पीछे मिलने चले गई।

दोनों थोड़ी देर एक दूसरे को देखते रहे।

शुभम  -‘पलक कुछ बोलो’।

पलक-शुभम जीवन भर मुझे यह सफर याद रहेगा, यह मेरे जीवन के सबसे सुखद पल हैं।’

 शुभम-‘पलक मैं तुम्हें पसंद करता हूॅं, और तुम्हें अपनी बाहों में लेकर बहुत सारा प्यार करना चाहता हूॅं,  चूमना चाहता हूॅं।’

शुभम की बातें सुनकर पलक को अजीब सी बेचैनी हो गई ।

उसके दिमाग में पापा जी की बात पल भर में घूम गई। ‘बेटी स्त्री की मर्यादा नदी की तरह होती है ,अपनी सीमा को पार करते ही बहुत सारे लोगों को अपने साथ बर्बाद कर देती हैं।’

पलक ने अपने पैरों को पीछे खींच लिया और  भागकर वापिस कैंप में आ गई और मन ही मन सोचने लगी, ‘नदी का मर्यादा में रहना ही ठीक है’।

अनीता चेची,मौलिक रचना,हरियाणा

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