सरोज आज कुछ जल्दी में काम कर रही थी।सुबह से ही उसका सिर बहुत दर्द कर रहा था।इस कारण वो आज उठी भी थोड़ी देर सी थी।उसने जल्दी जल्दी नाश्ता बनाया और दोनों बच्चों नीरा और राघव को तैयार कर स्कूल भेजा ।और जल्दी से खुद भी तैयार होकर बुटीक पर निकल गयी अपना टिफिन लेकर।
पति के अचानक गुजर जाने के बाद आज लगभग सात महीने हो गए उसको अपने ससुराल को छोड़ कर आये हुए।
ससुराल उसका अच्छा था। सास सुसर व देवर और उसके पति व दोनों बच्चों के साथ वह खुशहाल जिंदगी जी रही थी।
सास व ससुर दोनों सरकारी स्कूल में टीचर थे।पति सौरभ भी एक कम्पनी में मैनेजर थे। देवर विलास कॉलेज में बी कॉम की पढ़ाई कर रहा था l
वह भी घर मे रहकर सिलाई कड़ाई करती और घर संभालती थी।
परंतु एक दिन अचानक उसकी जिंदगी में एक तूफान आया और उसने उसकी जिंदगी बदल दी, उसके पति को अचानक ही हार्टअटैक आया औऱ अस्पताल ले जाने का समय भी नही दिया मौत ने।
पति सौरभ के जाने के बाद उसको और बच्चें दोनों को सास व सुसर ने अच्छी तरह रखा क्योंकि सरोज के रहते उनको घर की कोई चिंता नही थी। हाथों में गरमा गरम खाना मिलता ।घर की देखभाल भी होती रहती,और दोनों घूमने के भी शौकीन थे।अक्सर छुट्टियों में कही ना कही चले जाते थे, सरोज भी अपना दुख भुलाने की कोशिश करते हुए अपनी यही नियति मान अपना पूरा फर्ज निभाती रही।
दोनों बच्चें छोटे ही थे और अभी उसकी भी उम्र कोई ज्यादा नही हुई थी।यही कोई तैतीस साल की थी और दिखने में इतनी सुंदर की कोई उसको कह नहीं सकता था कि वह दो बच्चों की माँ है l
पति के अचानक से गुजर जाने के बाद उसकी सुन्दरता ही अब उसकी दुश्मन बन गई थी l उसका देवर मयंक जो कि कभी उसको भाभी माँ का दर्जा देता था, वह धीरे धीरे अपनी मर्यादा को खोने लगा था l
अब वह जब भी कभी उसको अकेले देखता तो कभी उसका हाथ पकड़ लेता ,या कभी पल्ला खींच देता।पहले तो वह उसकी नादानी ही समझती रही, इस कारण वह उसकी हरकतों को अनदेखा करती रही इस बात का मयंक अब और फायदा उठाने लगा था, वह जब भी मौका मिलता वो उसको पीछे से पकड़ लेता ।सरोज अब उसके बदले हुए व्यवहार को देख कर बहुत डरी सहमी रहने लगी थी।एक दो बार उसने अपनी सास को धीरे से सब बातें बताई भी पर वह अपने बेटे का ही पक्ष लेकर बोली -अरे तुम्हारे मन का वहम है यह, वह तो तुमको माँ जैसा ही समझता है।जब तुम आई थी वह बारह साल का ही तो था l
अब वह क्या करती सास की यह बात सुन कर मन मसोस कर चुप रह जाती थीं l
पर एक दिन जब वह अकेली थी तो मयंक ने हद ही पार कर दी थी जब उसके सास व ससुर दोनों दो दिन के लिए मामा ससुर को जो बहुत बीमार थे उनको देखने गए थे और उसके बच्चें स्कूल गए हुए थे।
वह दोपहर में अपने काम से निपट कर सिलाई कर ही रही थी कि,उसका देवर अपने एक दोस्त के साथ अचानक ही घर आ गया था।भाभी क्या कर रही हो?
अचानक से इस समय उसको इस तरह आया देखकर वह बहुत एकदम घबरा गई थी।
वह बोली कुछ नहीं अपना काम कर रही हूँ कहकर वह अपने कमरे में जाने लगी थी l
अरे भाभी आज कॉलेजों में स्ट्राइक हो गई, इस कारण में घर जल्दी आ गया साथ में राजू जो उसका दोस्त था जिसको सरोज अच्छी तरह से जानती थी वह एक आवारा टाइप का लड़का था उसको वह पसंद भी नहीं करती थी शुरू से ही क्योंकि वह जब भी आता था उसको अश्लील इशारे करता था l
पति थे तब उनके डर से वह नहीं आता था l पर अब उसको अब कोई डर भी नहीं था l
भाभी मेरा व राजू का खाना लगा दो।कहकर अपने कमरे में चला गया था।
उसने खाना लगाया व टेबल पर रख कर बोली भैया खाना लगा दिया है आप लोगो का मैं अभी बच्चों को लेकर आ रही हूँ,
कहकर जैसे ही दरवाजे पर जाकर देखा वह बंद था व उसपर ताला लगा हुआ था।
वह एकदम घबरा गई और दौड़ कर कमरे में जाने लगी थी कि, मयंक व राजू दोनों ने उसको घेर लिया था l
अरे भाभी कहाँ जा रही हो क्यों ? अपनी जवानी ऐसे ही निकाल रही हो । हममें क्या कमी है कभी हमको भी प्यार की निगाह से देख लो, कोई को कुछ पता नही चलेगा बस आप हमारी इच्छा पूरी कर दो। आप तो बहुत सुंदर हो व जवान भी आपका मन भी तो होता होगा
कभी कभी मजा करने का क्या हुआ जो भईया नहीं है हम तो है ,, कहकर दोनों हँसने लगे थे। कब तक यूँही अपनी जिंदगी बिताओगी आपकी भी तो इच्छाएँ होगी हम पूरी कर देंगे ।
आज तक सरोज यह सब सहती आयी थी सिर्फ अपने बच्चों के लिए,पर आज उसको अपने देवर जिसको वह अपना बेटा ही मानती थी,उसके इस घिनोने रूप को देखकर नफरत हो रही थी। उसके अंदर की नारी आज जाग उठी थी। वह समझ गयी थी कि मयंक अपनी हर मर्यादा को लांघ चुका है, अब वक्त आ गया है उसको खुद में हिम्मत लाकर इन सब परिस्थितियों से निपटना ही होगा।
क्यों की वह अब एक अबला नारी बन कर यह जुल्म नहीं सह सकती है , वह बता देगी सबको की वह अबला नही आज की सबला नारी है l
वह सरकते हुए टेबल के बिलकुल पास ही आ गयी थी,
मयंक और उसका दोस्त राजू दोनों भी उसके पास आ गए थे हँसते हुए और जैसे ही उसका हाथ पकड़ने लगे थे कि उसने अपने हाथों से टेबल पर रखी थाली में से सब्जी की कटोरी उठाई और जोर से दोनों के चेहरे पर फेंक दी थी।दोनों आँखों को मसलते हुए नीचे बैठ गए थे। अब उसने आव देखा ना ताव पास ही रखा पीतल का भारी फूलदान उठा कर दोनों के सिर पर जोर से मारा ओर बोला खबरदार जो मुझको अबला बेबस नारी समझा, तुमको औरत की अंदर की शक्ति का अहसास भी नही है।
जब तक वह नाजुक है “नारी है” वर्ना नारी नहीं दुर्गा का ही दूसरा रूप है, और दोनों को तड़फता छोड़ दूसरी चाबी लेकर आई और अपना और बच्चों का थोड़ा सामान और कपड़े बैग में डालकर घर से बाहर निकल आयी थी। चूँकि माता पिता नहीं थे भाई भाभी ने उससे कोई रिश्ता नहीं रखा था इस कारण वह जाने का कोई मतलब नहीं था l
उसने बाहर आकर दोनों बच्चों को स्कूल से लिया और ऑटो में बैठ अपनी सहेली राधा जिसके साथ उसने सिलाई सीखी थी उसके घर चली गई और उसको जाकर सारी बात बताई।
राधा और उसका परिवार बहुत ही अच्छा था उन्होंने सरोज को सपोर्ट किया और कहा कि वह खुद को बेसहारा न समझे जब तक कि उसको कोई घर नहीं मिल जाता है वह बच्चों के साथ वही रहे l
राधा ने अपना खुद का ही बुटीक खोल हुआ था और उसको एक परफेक्ट सिलाई कारीगर की जरूरत भी थी। उसने सरोज की सिलाई व उसके हाथों की कारीगरी व कढ़ाई देखी हुई थी ।उसने उसको कहा कि सरोज तुमको डरने की कोई जरूरत नही।मुझको भी एक सिलाई पार्टनर की जरूरत भी थी मेरे बुटीक के लिए अब हम साथ साथ काम करेंगे l जल्दी ही तुमको घर भी मिल जायेगा सरोज कहकर उसको अपने गले से लगा
लिया l
सरोज ने राधा के यही से अपनी सास को फोन किया व सारी बात बता कर कहा कि माँ में अब वहां नही रह सकती जहां मेरी इज्जत पर कभी भी आंच आ जाये कोई अपनी मर्यादा को त्याग कर मेरा आत्मविश्वास तोड़ दे मेरा आत्मसम्मान और इज्जत को दांव लगे यह मुझको मंजूर नहीं, मैंने तो देवरजी को बेटा ही माना था, परंतु वह मुझको अपनी माँ तो क्या भाभी भी नही समझ सकें।
आप मेरी व बच्चों की चिंता मत करना,अब मैं जहाँ भी हूँ बहुत सुरक्षित हूँ। भगवान ने मुझको इतना हुनर तो दिया ही है कि मैं अपना व बच्चों का ध्यान अच्छे से रख सकूँगी, अब मैं अपनी राह खुद बनाऊँगी,मुझको ना आप सबके और ना ही अपने मायके पर निर्भर रहना है।
मैं अपना व बच्चों का भविष्य खुद बनाऊँगी बिना किसी के सहारे ,और उधर से उसकी सास कुछ बोल पाती
उसने फोन काट दिया था।
आज वह अपनी मेहनत व हुनर से सहेली राधा की बूटिक की हेड बन गयी है इसके साथ ही उसने खाली समय में अपना खुद का सिलाई सेंटर भी खोल लिया है। आज वो आत्मविश्वास से भरी एक सबला नारी बन चूंकि है।जिसको हर परिस्थिति से लड़ना आता है।
मंगला श्रीवास्तव इंदौर
स्वरचित मौलिक कहानी