“अब क्या होगा। इतनी जल्दी इतने सारे पैसों का इंतजाम कैसे होगा। जिन भाइयों पर भरोसा था, उन्होंने ही कन्नी काट ली। माता-पिता के जाने के बाद जिन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया। हर खुशी उन पर न्योछावर कर दी। आज मेरा व्यापार मंदा होने पर लगता है, जायदाद के साथ दिलों का भी शायद बंटवारा हो चुका है। सुधा का आपरेशन कैसे होगा! अब मकान को गिरवी रखना ही उपाय है, मन ही मन अपनी धुन में बड़बड़ाता हुआ समीर व्यस्त सड़क के बीचोबीच चलने लगा। उसे न किसी वाहन का शोर सुनाई दे रहा था, न किसी की आवाज़”।
अचानक किसी ने उसे खींचकर एक बड़ी दुर्घटना से बचा लिया। दो सेकंड तक तो समीर को पता ही नहीं चला, क्या हुआ। तभी किसी युवक की मधुर ध्वनि कानों में पड़ी-
“अंकल जी आप ठीक तो हैं। चोट तो नहीं लगी”।
“जी ठीक हूँ बेटा। तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद।
“अंकल जी अगर बुरा न मानें तो कुछ देर मेरे घर चलें।मेरा घर पास ही है। आप थके से लग रहे हैं और कुछ परेशान भी”।
“बेटा, मेरे लिए क्यों परेशान हो रहे हो। चिंता मत करो। मैं चला जाऊंगा”।
“आपने मुझे बेटा कहा है। क्या एक बेटे की बात नहीं मानेंगे”। युवक ने कहा।
“ठीक है बेटा। वैसे तुम्हारा नाम क्या है बेटा”।
“विनीत”।
समीर को नाश्ता-पानी करवाने के बाद विनीत ने पूछा-
“अंकल जी वैसे आप बीच सड़क में जिस तरह किसी कुछ सोचते हुए चले जा रहे थे, उससे यह तो लगता है, आपको कोई परेशानी है। अगर बुरा न लगे तो बता सकते हैं। आपका दिल हलका हो जाएगा”।
“जिसे किस्मत और अपनों ने धोखा दे दिया, उसके बारे में क्या बताऊं”। समीर ने निराशा से कहा।
“मैं समझा नहीं अंकल जी”।
“मेरी पत्नी सुधा का आपरेशन होना है। उसके लिए पैसों की ज़रूरत है। जिन भाइयों और अपनों के लिए सब कुछ किया, सबने कन्नी काट ली। ऊपर से व्यापार भी मंदा चल रहा है। सोच रहा हूं, मकान गिरवी रख दूं।
“ओह! वैसे किस अस्पताल में आपरेशन है”।
“सिटी अस्पताल में बेटा।
“सिटी अस्पताल में तो मेरी जानपहचान कुछ डॉक्टरों से हैं। मेरे साथ ही पढ़े हैं। कौन-से डॉक्टर ने इलाज करना है अंकलजी। शायद मेरी जान पहचान का निकल आए और कम पैसों में या फ्री में इलाज हो जाए”।
“डॉक्टर सतीश”।
“वो तो मेरा बचपन का मित्र है। साथ ही बहुत अच्छे स्वभाव का। कुछ देर रुकिए। उनसे बात करके आता हूँ”।
“अंकल जी आपकी समस्या दूर हो गई। आपरेशन फ्री में हो जाएगा। इसके साथ ही ये पचास हज़ार का चेक भी रख लीजिए। काम आएगा”।
“बेटा। इसकी जरूरत नहीं। तुमने फ्री इलाज के लिए डॉक्टर से बात करके वैसे ही बहुत मदद कर दी है। मेरा तो तुमसे कोई रिश्ता भी नहीं है। बेगाना होते हुए भी तुमने मुझे अपना बना लिया। तुम तो आज मेरे लिए फरिश्ता बनकर आए हो बेटा। तुमने मुझे ज़िंदगी भर के लिए अपना कर्जदार बना लिया। अपने तो अपने होते है”। समीर ने रुंधे गले से कहा।
“एक तरफ तो आप बेटा कहते हैं, दूसरी तरफ एहसास जताते हैं। आपमें मुझे अपने पिता की छवि नज़र आती है। ऐसा लगता है, आपके रूप में मुझे एक पिता मिल गए”।
“और मुझे भी एक बेटा। अब चलता हूँ। सुधा और बेटी रजनी इंतज़ार कर रही होंगी”।
“रुकिए, मैं आपको घर छोड़ देता हूँ। अपने परिवार से भी तो मिलना है”। विनीत ने मुसकराते हुए कहा।
अर्चना कोहली “अर्चि”
नोएडा (उत्तर प्रदेश)