बेअसरदार मॉर्निंग वॉक – संजय मृदुल

“अनुज भाई बड़े दिनों बाद दिखाई दिए?” मनोज ने तपाक से हाथ मिलाते हुए कहा।

“क्या बात है बड़े स्लिम हो गए हो!” अनुज ने थोड़ा हैरत से देखते हुए प्रश्न किया।

“हां यार! मॉर्निंग वॉक का असर है।

आजकल रेगुलर जाते हैं ना।”

“अच्छा! रोज तो हम भी जाया करते थे उस्ताद पर ऐसा परिवर्तन तो नहीं हुआ पहले? अब ऐसा क्या हो गया? और अब तो आप ने ग्रुप भी छोड़ दिया है, कहाँ जाने लगे हो अकेले -अकेले,या किसी और का साथ मिल गया है मॉर्निंग वॉक के लिए?” अनुज ने शरारती स्वर में पूछा।

“अरे मत पूछो अनुज भाई!” अचानक मनोज का दुखड़ा उभरकर सामने आ गया। “आजकल तुम्हारी भाभी भी जाने लगी है साथ। वो शहर के बाहर जो गार्डन हैं न वहां ले जाती है। पहले जहां एक घण्टे में हम तीन किलोमीटर घूमते थे वो छह किलोमीटर घुमा देती हैं। ऊपर से अपन सब साथ रहते थे तो कभी पोहा, कभी समोसे की पार्टी होते रहती थी, अब सब बंद हो गया है यार। ऊपर से रोज सुबह कभी लौकी का तो कभी ज्वारे का जूस पीना पड़ता है। घर आते ही कटोरी भर के स्प्राउट्स रख देती हैं सामने। जैसे तैसे निगलो उसे कि नाश्ते में फल मिलते हैं ढेर सारे।”




“अरे बाबा रे! ये कायाकल्प इन्ही चीजों का है मतलब।” अनुज ने मजे लेने के लिए और छेड़ा। “फिर तो आप फुल डाइटिंग पर आ गए हैं भैया।”

“आ नहीं गए यार। ला दिए गए हैं। टिफिन में भी सलाद, दलिया रख देती है रोज़। और लन्च टाइम में वीडियो कॉल कर दिखाना पड़ता है कि उसे खाया जा रहा है किसी को दिया नहीं गया है। वैसे भी कोई सलाद और दलिया क्यों एक्सचेंज करेगा बताओ।”

“हां सही बात है।” अनुज ने जवाब दिया।

“और मत पूछो अनुज। रात में भी ये टार्चर का सिलसिला खत्म नहीं होता। मग भर के सूप मिलता है डिनर में बस।”

“क्या जिंदगी है यार अनुज। इससे अच्छे तो पहले थे। एक दिन जोश-जोश में पत्नी को कह बैठे की चलो तुम भी कल से सुबह साथ हमारे। बस जीवन की दूसरी बड़ी गलती कर दी उस पल। और शायद सरस्वती बैठी थी जुबां पर, बात सच हो गयी। दूसरे दिन से उनका भी मॉर्निंग वॉक में जाना शुरू हो गया। अब तुम जानते तो हो जहां हम जाते हैं कैसा माहौल होता है। ढेर सारे लोग जान पहचान के रहते हैं वहां।” दो चार लोग देख कर मुस्कुरा दिए कुछ लोगों ने बात कर ली। बस! मैडम जी को खटक गया। बोलती हैं “अच्छा – ये सब करने आते हो यहां? और वो लाल ड्रेस वाली मुस्कुराई क्यों आपको देखकर? क्या चक्कर है?”

“बस यार अनुज! उस दिन से तुम सब का साथ छूट गया। छूट गयी आये दिन की बर्थ डे की पार्टियां, समोसे जलेबी वाली सुबहें। अब मॉर्निंग वॉक, वॉक कम टार्चर ज्यादा हो गया है।”

मनोज भाई का चेहरा देखकर अनुज को तरस आ रहा था उनपर और मन में प्रण कर रहा था कि भूलकर भी अपनी पत्नी को प्रेरित नहीं करेगा मॉर्निंग वॉक के लिए।

©संजय मृदुल

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