चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। शहर के हर गली मोहल्ले में वीरानी छाई हुई थी। लोग अपने घरों में कैद हो गए थे। महामारी अपना विकराल रूप धारण कर चुकी थी। ऐसी स्थिति में भी प्रकाश को रोजाना अपने कार्य स्थल पर जाना पड़ता था। वह रेलवे में स्टेशन अधीक्षक के पद पर कार्यरत था।
रात के दस बज रहे थे। प्रकाश अपने घर पहुंच चुका था।उसकी पत्नी सुधा और पांच साल का बेटा सौरभ उसके घर आने का इंतजार कर रहे थे।”पापा आ गए?”घर का दरवाजा खुलते ही सौरभ प्रकाश की ओर दौड़ा।”मेरे पास मत आओ बेटा?”प्रकाश सौरभ से दूर होता हुआ बोला।”क्या हुआ आपको..आप ठीक तो है?”सुधा चिन्तित होते हुए बोली। सुधा! मेरा सिर दर्द हो रहा है..तबियत ठीक नहीं लग रही है?”प्रकाश परेशान होता हुआ बोला।”सर्दी जुखाम तो मुझे भी हो गया है?”सुधा घबराहट भरे लहजे में प्रकाश से बोली।”सुधा सौरभ को खुद से और मुझसे दूर ही रखने की कोशिश करो कल सुबह हम लोग अस्पताल चलकर जांच करा लेंगे?”प्रकाश सुधा को समझाते हुए बोला।”ठीक है..आप यह सरदर्द बुखार की गोली खा लीजिए और खाना खाकर आराम करें?”सुधा चिन्तित होते हुए बोली।”ठीक है..मैं नहाकर कपड़े बदल लेता हूं?”कहते हुए प्रकाश बाथरूम की ओर बढ़ गया।
सुबह के दस बज रहे थे। सुधा और प्रकाश नन्हे सौरभ को घर में छोड़कर अस्पताल पहुंच चुके थे। थोड़ी देर रूकने के बाद पहले उनका एंटीजन कोरोना टेस्ट करके उन्हें बाहर बैठा दिया गया। एक घंटे बाद एक स्वास्थ्य कर्मी थोड़ी दूर से ही बोला।”प्रकाश जी! सुधा जी! आप दोनों की रिपोर्ट पाज़ीटिव है..आप यही बैठे रहिए?”कहकर स्वास्थ कर्मी चला गया। हे भगवान!अब क्या होगा?”कहकर सुधा खामोश हो गई।”कुछ नहीं होगा सब ठीक हो जाएगा?”प्रकाश सुधा को दिलासा देते हुए बोला। कुछ देर बाद अन्य जांच होने के बाद उन्हें दवाईयां देकर घर पर चौदह दिन रहने व अन्य हिदायत देकर भेज दिया गया।
प्रकाश और सुधा के पास उनकी व नन्हे सौरभ की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। सुधा की तबियत ज्यादा खराब हो रही थी। सुधा! तुमने अपनी दीदी को फोन किया की नहीं?”सुधा की हालत देखकर प्रकाश चिन्तित होते हुए बोला।”मैंने कल ही फोन किया था..मगर दीदी व जीजा ने अपनी मजबूरी बता कर मना कर दिया?”सुधा खांसते हुए बोली।”क्यूं मना कर दिया कल तक तो वही तुम्हारे अपने थे?”प्रकाश झुंझलाते हुए बोला।”सही कहा आपने शायद मैं ही गलत थी..जो अपनी दीदी और जीजा की बातों में आकर अपने घर से अलग रहने का गलत फैसला किया?”कहते हुए सुधा की आंखों में आसूं टपकने लगे। नन्हे सौरभ की चिंता सुधा और प्रकाश को परेशान कर रही थी।
पांच साल पहले ही प्रकाश ने अपने घर से दूर शहर में किराए का घर लिया था।उसकी मां का देहांत हो चुका था। उसके पिता व एक छोटा भाई, एक छोटी बहन ही उसका परिवार था। शादी के पांच साल बाद अपनी दीदी और जीजा की सलाह से सुधा ने अलग शहर में रहने की जिद कर लिया था।ना चाहकर भी मजबूर होकर प्रकाश ने अपनी नौकरी का हवाला देकर अपने पिता व भाई बहन से अलग रहने की बात की थी। उसके पिता व छोटे भाई बहन ने ही उसकी खुशी के लिए उसे शहर में शिफ्ट होने में उसकी मदद की थी।
रात के आठ बज रहे थे। सुधा को अपनी दीदी और जीजा से ऐसे व्यवहार की जरा भी उम्मीद नहीं थी। जो उसके अपने बनने का दम भरते थे। जो इस मुसीबत की घड़ी में उसके छोटे से बच्चे सौरभ को भी कुछ दिनों तक अपने पास रखने के लिए भी तैयार नहीं थे। बीमारी की दहशत पति और बच्चे की सलामती गम और चिंता में सुधा की तबियत बिगड़ती जा रही थी। तभी डोर बेल बज उठी।”कौन है..इस वक्त जो हमारे घर आया है..जब कोई भी हमारे घर के आस-पास भी नहीं आता?”सुधा चिन्तित होते हुए बोली। सुधा! तुम लेटी रहो मैं देखता हूं?”प्रकाश सुधा को रोकते हुए बोला। दरवाजा खोलते ही प्रकाश के चेहरे पर खुशी छलकने लगी। उसके सामने उसका छोटा भाई विकास व छोटी बहन गुड़िया खड़ी थी। प्रणाम दादा! प्रणाम भाभी! दोनों भाई बहन प्रकाश और सुधा का अभिनंदन करते हुए बोले।”खुश रहो?”प्रकाश और सुधा एक साथ बोले। नन्हा सौरभ अपनी बुआ और चाचा को देखकर चहक उठा।
विकास और गुड़िया ने प्रकाश और सुधा का कमरा अलग करके सावधानी बरतते हुए सुधा और प्रकाश की देखभाल करने लगे। सौरभ अपने चाचा व बुआ के साथ दूसरे कमरे में खेलता रहता था। गुड़िया दिन रात अपनी भाभी का और विकास अपने दादा की देखभाल करने लगे। कुछ दिनों में ही प्रकाश और सुधा खुद को स्वस्थ महसूस करने लगे।चौदह दिन बीत चुके थे। प्रकाश और सुधा को जांच कराने के लिए अस्पताल जाना था। गुड़िया! तुम और विकास घर पर ही रहो..
तुम्हारे दादा के साथ मैं अस्पताल जा रही हूं?” सुधा गुड़िया और विकास की ओर देखते हुए बोली। भाभी! गुड़िया रहेगी सौरभ के पास.. मैं आपके और दादा के साथ अस्पताल चलूंगा?”विकास सुधा को समझाते हुए बोला।”ठीक है विकास चलों तुम हमारे साथ?”प्रकाश मुस्कुराते हुए बोला। सुधा गुमसुम खड़ी विकास की ओर देख रही थी। उसे अपने आप से घृणा हो रही थी। जब उसने अपनी बहन और जीजा की बातों में आकर लक्ष्मण जैसे देवर व दुलारी ननद को छोड़कर अलग रहने के लिए प्रकाश को बाध्य किया था।”क्या हुआ भाभी! क्या सोच रही हो सब ठीक है..आपकी और दादा की रिपोर्ट निगेटिव ही आएगी?”विकास सुधा को दिलासा देते हुए बोला। सुधा की आंखों में आसूं छलकने लगे।
चौबीस घंटे बीत चुके थे। प्रकाश उत्सुकता से मोबाइल में कोरोना रिपोर्ट के आने का इंतजार कर रहा था। तभी मोबाइल में मैसेज की आवाज आई। रिपोर्ट देखते ही प्रकाश खुशी से झूम उठा..उसकी व सुधा की रिपोर्ट निगेटिव थी।वे महामारी के कोढ़ से मुक्त हो चुके थे। गम और चिंता के बादल छट चुके थे। सभी लोगों के चेहरे पर खुशियां छलक रही थी। ” विकास!गुड़िया! तुम लोगों ने सही समय पर आकर अपने दादा भाभी के जीवन को संकट से उबारा है..
मुझे खुद पर गर्व है कि मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूं..इस संकट की घड़ी में भी तुम लोगों ने अपने बड़े भाई का संदेश मिलते ही कुछ घंटों में पहुंच गए?” कहते हुए प्रकाश भावुक हो गया।”कैसी बात करते हो दादा..आप तो हमारे अपने है..अपनों के सुख-दुख के साथी अपने नहीं होंगे तो और कौन होगा?”विकास हैरान होते हुए बोला। भाभी!कल हम लोग घर जाएंगे बाबू घर पर अकेले है..
हम लोग चाची से कुछ दिन उन्हें देखने के लिए कहकर आए थे?” गुड़िया सुधा का हाथ पकड़ते हुए बोली। नही गुड़िया! तुम और विकास नहीं जाओगे मैं भी तुम लोगों के साथ चलूंगी और वही रहूंगी?”सुधा गुड़िया को गले लगाते हुए बोली।”और मैं कहां रहूंगा?”प्रकाश चुटकी लेते हुए बोला।”आप यहा का सारा सामान ले चलने का इंतजाम करने के बाद आ जाइयेगा?”सुधा प्रकाश की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोली। प्रकाश की खुशी का ठिकाना नहीं था। पांच साल से वह जिस कशमकश से गुजर रहा था..उसका अंत हो चुका था..उसकी पत्नी सुधा जो अलगाववाद की राह पर चल रही थी.. उसे अपनों की कीमत का एहसास हो चुका था।
#स्वार्थ
माता प्रसाद दुबे
मौलिक स्वरचित लखनऊ,