अपने घर के बच्चों में भेद कैसा… रश्मि प्रकाश 

कमला जी के दो बेटे हैं और दोनों एक ही सोसायटी में अपने अपने फ़्लैट में रहते हैं… सब का लगभग हर दिन का आना जाना लगा हीरहता है पर उनकी बहुएँ जरा कम ही एक दूसरे के घर जाती है… कमला जी भी दोनों बेटों के घर बारी बारी और ज़रूरत के हिसाब सेरहती है.. दोनों बेटों के बच्चे दस साल से सब छोटे है तो वो अक्सर एक दूसरे के घर आते जाते रहते हैं… साथ में खेलते उधम मचाते परआपस में मस्त रहते ।

वो हमेशा कहा करती ,“ अपने तो अपने होते हैं…. थोड़े मनमुटाव से रिश्तों में दरार नहीं आने देना चाहिए…. सुख हो या दुख, गम हो याख़ुशी अपनों का साथ हो तो सब सँभल जाता है ।”

बेटा बहू सुनते समझते पर इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते थे…

इधर बड़े बेटे के घर रह कर कुछ दिनों से कमला जी छोटे बेटे के घर आई हुई थी…

बड़े बेटे के दोनों बच्चे छोटे बेटे के बच्चों के साथ खेलने आने लगे…

“ बेटा आप लोग खेलने के बाद कमरे को साफ कर दिया करो..।” छोटी बहू रति ने चारों बच्चों से कहा 

पर बच्चे खेलते और फिर कमरे को ज्यों का त्यों छोड़ चल देते

रति चुपचाप कमरा सहेजती और अपने बच्चों को बोलती,“ जब तुम ताई जी के घर जाते हो… दीदी भैया के साथ खेलते हो तो क्या ऐसेही बिखरा कमरा छोड़ कर आते हो..?”

“ ना मम्मा हम सब सामान समेट कर बास्केट में रख देते हैं… नहीं तो ताई जी बहुत डाँटतीं है ।” कुश ने कहा 



“ तो फिर आपसब यहाँ क्यों बिखेर के रखते हो…?” रति ने पूछा 

“ आप ताई जी की तरह थोड़ी ना हमें डाँटती हो…. आप तो ख़ुद ही कर देती हो……।” कुश के मुँह से ये सुन कर रति सोच में पड़ गई 

अगले दिन जब बच्चे खेलने आए तो रति ने कहा,“ देखो बच्चों खेलना है तो कमरे को फिर साफ कर के जाना होगा… मैं बार बार साफ़सफ़ाई नहीं करती रहूँगी…. और गंदा छोड़ कर गए तो खेलने नहीं दूँगी ।”

 उस दिन तो बच्चे खेल कर सब समेट कर चले गये ।

अगले दो तीन दिन तक जब बच्चे खेलने नहीं आए तो कुश ने कहा,“ मम्मा हम दोनों भैया दीदी के घर खेलने जाए… वे लोग नहीं आ रहेऔर हमारा मन नहीं लग रहा।”

 कुछ सोच कर रति ने हाँ कर दिया …

कुछ ही देर में रति के बच्चे उतरा हुआ मुँह लेकर अपने घर आ गए।

“ क्या हुआ…ऐसे मुँह क्यों लटका रखा है….?” कमला जी ने बच्चों से पूछा 

“ दादी ताई जी ने हमें कहा तुम्हारी मम्मी मेरे बच्चों से घर साफ करवाती है तो ये दोनों वहाँ नहीं जाएँगे  ना तुम उनके साथ खेलोगे..।” कुश मुँह लटका कर बोला 



“ रति बहू..!” ग़ुस्से में कमला जी ने बहू को आवाज़ दिया 

रति जल्दी से भाग कर आई और बोली,“ क्या हुआ मम्मी जी ?”

“ तुम नेहू और नेह से घर साफ करवाती हो…. वो तुम्हारे जेठ के बच्चे है तुम्हें ये सब शोभा देता है क्या वो तुम्हारे घर काम करे..?” कमला जी ग़ुस्से में बोली 

“ मैं क्यों घर साफ करवाऊँगी मम्मी जी… मैं तो बस खेलने के बाद खिलौने समेट कर कमरा साफ़ करने बोली थी… पता नहीं भाभी कोबच्चों ने क्या कहा और वो क्या समझ बैठी…. वैसे कुश और कूहू जब भी उपर खेलने जाते हैं तो वो सब समेट कर आते हैं फिर नेहू औरनेह क्यों नहीं कर सकते… मैं ने तो कभी नहीं कहा भाभी मेरे बच्चों से घर साफ करवाती है …. और आप ही बताइए ना क्या ये दोनों जबउपर खेलने जाते भाभी का घर गंदा ही छोड़ कर आते हैं?” रति ने पूछा 

“ नहीं बहू ये बात तो सच है तनु बहू थोड़ी कड़क स्वभाव की है… ये दोनों उससे डरते भी है और उसके अपने बच्चे माँ की मार से बचने केलिये समेट कर रख देते हैं…. पर तुम्हें कभी बच्चों को डाँटते हुए भी नहीं देखी तभी मुझे लगा तनु ऐसा क्यों बोल रही है..।” कमला जी नेकहा 

“ अच्छा मैं बच्चों को बुलाती हूँ… तनु मना करेगी तो उसको समझा दूँगी…. बच्चों के बीच ऐसा व्यवहार उसको शोभा नहीं देता…. दोनोंही हमारे घर के बच्चे है…जब एक के घर जाकर कमरा समेट सकते है तो दूसरे के घर क्यों नहीं….और क़ायदे से बच्चों में बचपन से हीसामान सहेजना सीखाना चाहिए… तुम्हें भी कह रही हूँ कुश और कुहू को थोड़ा अपना बिखरा कमरा समेट कर रखना सिखाओ… जबतुम ख़ुद ही करती रहोगी तो वो क्यों करना चाहेंगे..।” कमला जी रति से बोली 



“ हाँ मम्मी जी आप सही कह रही है… भाभी ने अपने बच्चों को सीखाया पर जब मैंने कहा तो कहती है मैं घर साफ करवाती बताइएइसमें मैं कहाँ गलत हो गई..?” रति दुःखी होती बोली 

“ तुम गलत नहीं हो बहू.. तनु ने गलत मतलब निकाल लिया…. तुम चिन्ता मत करो मैं बात करती हूँ..।” कमला जी रति को समझाते हुएबोली 

कमला जी ने तनु को फ़ोन कर बच्चों को भेजने कहा।

जब नेहू और नेह कुश के घर आए तो कमला जी ने उनसे पूछा,“ बेटा आपकी चाची आपसे कब घर साफ करवाती है जो आपने मम्मी सेकह दिया…?”

“ वो दादी उस दिन हम थोड़ा लेट हो गए तब तब ट्यूशन टीचर आ गई थी…. मम्मा ने पूछा देरी क्यों हुई तो हमने कहा सब सामान समेटरहे थे… बस इतना ही…।” दस साल की नेहू ने कहा 

“ बेटा कुश और कुहू आपके घर जाकर सामान फैला हुआ छोड़ कर आते हैं… नहीं ना … सब मिलकर खेलते हो समेट देते हो… बय यहाँभी तो वही करना है…आपकी चाची आपको डाँटती है क्या?” कमला जी ने पूछा 

“ नहीं दादी वो तो कुछ नहीं कहती..।” नेहू और नेह ने समवेत स्वर में कहा 

“ तो बेटा आज से आप चारों अच्छी तरह मिल कर खेलने के बाद दोनों जगह सामान समेट कर जाया करो…. ताकि आपको भी पता होकौन से खिलौने कहाँ रखे हुए ताकि जब खेलने आओ तो फटाफट मिल जाए…. समझे मेरे बच्चों !” कमला जी बच्चों को गले लगातेसमझाते हुए बोली 

“ हाँ दादी…. अब हम अच्छे से खेलेंगे और फिर अपने अपने कमरे को साफ साफ रखेंगे ।” चारों बच्चों ने एक साथ कहा और फिरखेलने में लग गए 



कमला जी ने तनु को भी समझाते हुए कहा,“ बहू बच्चों की बात पर तुम अपनी देवरानी पर इल्ज़ाम लगाई सो अलग …छोटे बच्चों केबीच दूरियाँ क्यों ला रही थी….उन्हें साथ खेलने में ख़ुशी मिलती हैं उससे तुम्हें तकलीफ़ क्यों होती .. थोड़ा अपने कठोर स्वभाव को नरमकरो… नहीं तो बच्चों पर इसका बुरा असर होगा ….।”

तनु कुछ दिनों तक ठीक रहती फिर अपने स्वभावानुसार व्यवहार करने लगती फिर बच्चों को देख सुधरने की कोशिश करती….

दो विपरीत स्वभाव की बहुओं के साथ ऐसी समस्या आम है… इसलिए किसी एक को सेतु को काम करना पड़ता है ताकि भावी पीढ़ी मेंदूरियाँ वक़्त से पहले ना आ पाए  वो ही तो होते है जो अपनों के बीच अपने पन का भाव समाहित करने का प्रयास करते रहते हैं बस हमही उस ओर ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझते हैं ….

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# अपने_तो _अपने _होते _हैं

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