हर रोज उनको देखती हूँ और देखती ही रहती हूं
मैं बात कर रही हूं एक बजुर्ग जोड़े की। उनकी उम्र मेरे अंदाज से तो 85 से 90 के करीब तो होगी।
हर रोज सुबह मैंअपने घर से थोड़ी दूरी पर सुबह गुरुद्वारा साहब दर्शन के लिए जाती हूँ।ताकि थोड़ा चलना भी हो जाये और मन को सकून भी मिले।
इतिफाक से उस बजुर्ग जोड़े के आने का भी वो ही समय होता है जो मेरा होता है।
आप सोच रहे होंगे कि ऐसा भी क्या खास है उन दोनों में.
और में ये सोचती रहती हूं कि अगर ईश्वर ने उनको इतनी लंबी उम्र बक्शी है तो एक दूसरे का साथ भी तो दिया है
जो पति है वो आंखों से बिल्कुल भी देख नही पाता और पत्नी की टांगों और घुटनो में बहुत ज्यादा तकलीफ है।बहुत मुश्किल से चलती है।लेकिन दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर आते हैं।पत्नी पति को रास्ता बताती है और उसको कहीं भी ठोकर नही लगने देती । पति उसको चलने में अपनी बाजू का सहारा देता है।
और इस तरह दोनों हर रोज सच्चे पातशाह के दर्शन करके जाते हैं।
जब बाहर आती हूँ तो देखती हूँ कि पत्नी कैसे आज का मुख़्वाक पढ़ कर पति को सुनाती है और वो कैसे अपना कान उसके पास ले के सुनता है।
और जिस दिन मुझे वो दोनों ना दिखें तो यही सोचती रहती हूं कि वाहेगुरु जी दोनों ठीक ही हों
क्योंकि जीवनसाथी में से एक पहले चला जाये तो दूसरे को कितनी मुश्किल झेलनी पड़ती है और
वो दोनों कितने खुशकिस्मत हैं कि इस उम्र में भी एक दूजे का सहारा बने हुए हैं।
सत्यघटना पर आधारित
मौलिक एवम स्वरचित
रीटा मक्कड़