गहरी नींद  – गीतू महाजन

गहरी अंधेरी रात में शशांक अपनी बालकनी में खड़ा दूर शून्य में देख रहा था।आज भी उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी।अपने आलीशान घर में बने विशाल कमरे में लगे हुए भव्य पलंग पर लेट कर भी पिछले कई रातों से वो सो नहीं पाया था।

आज भी वो कितनी देर से सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन नींद जैसे उसके साथ आंख मिचोली खेल रही थी..पास ही उसकी पत्नी सुमेधा सो रही थी।फिर थक कर वो अपनी बालकनी में आकर खड़ा हो गया था।

शंशाक शहर का एक सफल बिज़नेसमैन था जिसने कि अपने व्यापार में दिन रात मेहनत कर अच्छी तरक्की कर ली थी और आज उसका नाम कामयाब आदमियों में गिना जाता था।दौलत और शोहरत दोनों ही उसके कदम चूम रही थी।ऐसा लगता जैसे जिस बिज़नेस में भी वो हाथ डालता वो सोना उगलने लगता था ।

शंशाक इस शहर में बरसों पहले अपने गांव से आया था गांव में उसके दो बड़े भाई और माता-पता थे।शशांक अपने दोनों भाइयों से छोटा था और पढ़ने लिखने में बहुत तेज़ था।शशांक के पिता की अच्छी खासी ज़मीनें थी और अपने खेतों पर ही उन्होंने कई लोगों को काम पर लगाया हुआ था।पैसों की किसी किस्म की कोई दिक्कत नहीं थी..घर में अपनी गाय, भैंस होने से दूध, दही और घी की भी अच्छी भरमार थी।

शंशाक के दोनों बड़े भाई घर की खेती संभालने में ही लग गए थे और उनकी मेहनत रंग लाई थी और उन्होंने और भी कई नई ज़मीनें खरीद ली थी।शशांक उस समय अभी शहर में रहकर कॉलेज में ही पढ़ रहा था।समय रहते दोनों भाइयों की शादी हो गई थी।

उसकी पढ़ाई खत्म होने पर उसके पिता चाहते थे कि वह भी अपने दोनों भाइयों के साथ मिलकर अपने काम को और बढ़ाएं पर शशांक की और ही मर्ज़ी थी।खेती-बाड़ी के काम में उसकी बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं थी।वह शहर में रहकर अपना नया व्यापार खोलना चाहता था।




शशांक के पिता इस बात के बिलकुल खिलाफ थे।उनका यह मानना था कि अपने घर का इतना बड़ा कारोबार छोड़कर शहर जाने कि उसे क्या ज़रूरत थी पर शंशाक अपनी ज़िद पर अड़ा हुआ था।भाइयों ने भी उसे बहुत समझाने की कोशिश की पर उस समय वो किसी की सुनना नहीं  चाहता था।

शशांक की मां ने भी उसे समझाते हुए कहा था,”बेटा वहां पराए शहर में तू किसके भरोसे रहेगा”?

“मां, मैं यहां गांव में रहकर अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं करना चाहता..शहर में तरक्की के बहुत सारे अवसर हैं.. मैं उन अवसरों को नहीं छोड़ना चाहता”।

“बेटा, तरक्की तो यहां भी रहकर भी हो सकती है पर मैं तुझे एक बात ज़रुर कहना चाहती हूं कि चाहे शहर में रहकर तू जितने मर्ज़ी तरक्की कर ले पर अपने लोगों का साथ अलग ही होता है और अपने तो अपने होते हैं”।

“मां, मैं अपनों का साथ देखूं या अपने जीवन की तरक्की” शशांक उखड़े हुए स्वर में बोला।

उसके इन शब्दों से घर वाले समझ गए थे कि उसे समझाने का कोई फायदा नहीं है इसलिए उन्होंने उसे आगे और कुछ नहीं कहा और शंशाक अपने घर को छोड़कर शहर की ओर निकल पड़ा।

यहां आकर शंशाक ने दिन-रात एक किया और अपने नए व्यापार को अपनी मेहनत से बुलंदियों पर पहुंचाया।हां यह बात सच है कि उस व्यापार को शुरू करने की जमा पूंजी उसके पिता ने ही उसे दी थी।पहले पहले तो शशांक बीच-बीच में अपने गांव चला जाता था लेकिन धीरे-धीरे फिर उसका जाना कम होता गया।




शशांक की पत्नी सुमेधा भी शहर की ही थी और वो एक समझदार महिला थी और उसने अपने ससुराल वालों से अच्छे संबंध रखे हुए थे।हालांकि वह शंशाक के साथ इतने बरसों में सिर्फ एक बार ही गांव गई थी लेकिन वह उनके साथ फोन पर बातचीत करती रहती थी।इतने सालों में शंशाक के माता-पिता भी एक बार ही उसके घर आए थे और तब भी शशांक अपनी व्यस्तता के चलते उन्हें ज़्यादा समय नहीं दे पाया था।

आजकल शशांक एक नई परेशानी से जूझ रहा था। पिछले कई रातों से वह सो नहीं पाया था।कितने ही डॉक्टरों को वह अपनी इस परेशानी के चलते दिखा चुका था।दवाइयां भी असर नहीं कर पा रही थी..कल ही उसे एक डॉक्टर ने कहा था कि उसे माहौल बदलने की ज़रूरत है और उसे थोड़ा समय अपनों के बीच में बिताना चाहिए ताकि उसके मन पर जो बिज़नेस के चलते दबाव चल रहा है उससे थोड़ी सी राहत मिलेगी और वह सुकून की नींद सो पाएगा।

“आप यहां क्या कर रहे हैं”,सुमेधा की आवाज़ से शशांक एकदम चौंक पड़ा।

 “वो बस नींद नहीं आ रही थी तो इसलिए बालकनी में आकर खड़ा हो गया”,शशांक बोला।

“अगर आप माने तो मैं एक बात कहूं”।

“हां बोलो”।

“क्यों ना हम थोड़े दिनों के लिए गांव चले जाएं”।

“मैं गांव कैसे जा सकता हूं..यहां बिज़नेस को कौन देखेगा”।

“बिज़नेस देखने के लिए आपके और भी कर्मचारी हैं.. लेकिन अगर आपकी सेहत ही ठीक नहीं रहेगी तो ऐसे बिज़नेस का क्या लाभ और आपने शायद डॉक्टर की बात को ध्यान से नहीं सुना कि उन्होंने आपको माहौल बदलने के लिए कहा है”।

“मगर मैं गांव..इतने सालों बाद”।

“हां तो क्या है..इसमें हिचकिचाहट कैसी।अपनों के बीच जाने में कैसी शर्म और वह अपने ही तो हैं और मैं एक बात कहूं अपने तो अपने ही होते हैं चाहे आप कितने सालों बाद ही क्यों ना जाओ वो खुली बांहों से आपका स्वागत करेंगे इतना मुझे विश्वास है”,सुमेधा ने कहा।

शशांक ने कुछ पल सोचा और सुमेधा से बोला,” हां चलो ठीक है हम परसों सुबह गांव के लिए निकल जाएंगे”। 

सुमेधा उसकी बात सुनकर मुस्कुराई और उसके एक दिन बाद दोनों बच्चों को लेकर अपनी कार से गांव की तरफ चल पड़े।जैसे-जैसे गांव नज़दीक आ रहा था शशांक के दिल की धड़कन भी बढ़ रही थी क्योंकि इतने सालों बाद वह गांव में कुछ दिनों के लिए रहने जा रहा था।क्या पता वहां का माहौल कैसा हो और वो वहां रह भी पाएगा या नहीं यही चिंता उसे खाए जा रही थी और आगे ही वह नींद ना आने की बीमारी से जूझ रहा था।

 जैसे-जैसे गांव नज़दीक आ गया गांव की खुली हवा ने दिल खोलकर शशांक का स्वागत किया।एक ठंडी हवा का झोंका उसके मन को जैसे तृप्त कर गया हो।घर पहुंचते ही उसने देखा कि दोनों भाभियां और मां तो उसके स्वागत के लिए ही खड़ी थी।यह सब सुमेधा का ही असर था..उसने फोन पर ही उन्हें अपने आने की सूचना दे दी थी। 

सबने शशांक और उसके परिवार का खुले दिल से स्वागत किया।शशांक को एक पल के लिए भी नहीं लगा जैसे वह वहां इतने सालों बाद आया हो।उसने पूरा घर घूम घूम कर देखा।आज उसे उस गांव के घर में एक एक चीज़ अपनी सी लग रही थी।वो दीवारें जैसे उसके बचपन की कहानियां उसको सुना रही हों।




सब ने मिलकर दोपहर का खाना खाया और देर शाम तक बातें करते रहे।शाम को शशांक अपने भाइयों के साथ अपनी ज़मीनों का एक चक्कर भी लगा आया।शशांक देखकर हैरान रह गया कि गांव ने कितनी तरक्की कर ली थी और उसके भाइयों का कारोबार भी अब बुलंदियों पर था और उनके नीचे सैकड़ों लोग काम कर रहे थे।

 शशांक को देखकर गांव वाले भी बहुत खुश हुए।वहां एक एक आदमी ने उससे उसका हाल पूछा।शशांक को लगा कि वहां शहर में इतने लोगों के बीच में होते हुए भी वह अकेला सा था लेकिन यहां गांव में इन लोगों का अपनापन देखकर उसका मन भर उठा।

रात को भाभियों ने उसकी पसंद का ही सारा खाना बनाया था।इतने सालों बाद भी भाभियों को उसकी पसंद अभी तक याद थी।मां ने उसे अपने हाथों से खाना खिलाया उस समय शशांक की आंखें भर आई।मां ने आगे बढ़कर उसका माथा चूम लिया।रात को बातें करते करते वो मां की गोद में अपना सिर रख कर लेट गया और मां उसके बालों में हाथ फेरने लगी।

शशांक को पता ही नहीं चला कि वह अपनी मां की गोद में ही कब गहरी नींद सो गया था।सुबह जब उसकी आंख खुली तो उसने पाया कि उसका सर अब भी मां की गोद में ही था और मां बिस्तर पर अधलेटी सी थी।मां का प्यार देखकर उस की आंखें भर आई।उसे लगा जैसे आज वह बरसों बार इतनी गहरी नींद में सोया हो जैसे।उसके उठते ही मां भी उठ गई और उसके लिए चाय बनाने के लिए चली गई।

 शशांक बाहर आया तो बाहर की खुली हवा ने उसको अपनी बाहों में जैसे समेट लिया।आज उसे सच में महसूस हुआ कि चाहे उसने धन दौलत बहुत कमा ली हो और वह शोहरत की बुलंदियों पर हो लेकिन अपनों के साथ की कीमत दुनिया की कोई भी दौलत नहीं चुका सकती और यही सोचते-सोचते वह रसोई में ही मां के पास चाय पीने के लिए चला गया।

गीतू महाजन।

#स्वरचित 

#अपने तो अपने होते हैं

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