तारीख़ थी 13 मार्च 2017 मुम्बई में रहने वाला नवविवाहित जोड़ा कीर्ति व यश बहुत उत्साहित था, आज पहली बार यश के माता-पिता व कीर्ति के सास ससुर अपने बेटे बहू की नयी गृहस्थी को देखने आने वाले थे।
कीर्ति उनके स्वागत में कोई कमी नहीं रखना चाहती थी और उसने नौकरी पेशा होने के बाद भी सारे घर को बहुत सुन्दर तरीके से सजाया था, मुम्बई में आमतौर पर फ़्लैट छोटे होते हैं पर कीर्ति की रचनात्मकता ने मानो घर का कोना-कोना सजीव कर दिया था, नियत तिथि पर उसके सास ससुर मुम्बई आ गये।
मूल रूप से राजस्थान के अलवर शहर में रहने वाले कीर्ति के सास ससुर अपने बड़े विशाल घर में रहने के आदी थे तो उन्हें वह छोटा दो कमरों का फ्लैट कुछ खास रास नहीं आया और वे मन मानकर रहने लगे।
बात बात पर नुक्ताचीनी व फ़्लैट की साज सजावट में कमियां निकालना कीर्ति को आहत कर रहा था पर वह चुप रहती थी, उसके सास ससुर मुम्बई के खुले वातावरण व भागदौड़ वाले जीवन से सामन्जस्य नहीं बैठा पाए और कीर्ति उन्हें खुश करने के चक्कर में अपनी नौकरी व गृहस्थी की दोहरी जिम्मेदारी में पिसने लगी थी।
” मैं स्वार्थी नहीं हूँ यश पर मम्मी पापा मेरी हर बात में कमी निकालते हैं मुझे लगता हैं वो किसी के साथ तालमेल नहीं बैठा सकते हैं, उन्हें हमारे छोटे फ्लैट में बहुत परेशानी होती हैं ” कीर्ति ने अपने मन की बात यश से कही।
” कीर्ति में अपने माता-पिता को अच्छी तरह से जानता हूँ वो पुराने विचारों के जरूर हैं पर दकियानूसी नहीं हैं, जब तक वो यहाँ हैं तुम विनम्रता के साथ उनकी बात मानो और अपनी सही बात भी उन्हें शान्तिपूर्वक समझाने की कोशिश करो फिर देखना अपनों के साथ रिश्तो के नये रंग तुम्हें नजर आयेंगे ” यश ने कीर्ति को समझाया।
कीर्ति ने यश के कहे अनुसार काम किया पर अपने सास ससुर को संतुष्ट नहीं कर पायी और मन ही मन उनके जल्दी लौटने की प्रार्थना करने लग गयी ।
आखिरकार तीन महीने बाद उसके सास ससुर अलवर वापिस लौटे और कीर्ति ने चैन की सांस ली।
” मुम्बई के घरों में चार जनों का रहना मुश्किल हैं अब से हम मुम्बई नहीं आयेंगे पर तुम दोनों अलवर आते जाते रहना ” कीर्ति की सास जाते हुए बोली।
कीर्ति की तो जैसे मनमांगी इच्छा पूरी हो गयी उसने उपरी तौर पर अपने सास ससुर को मुम्बई वापिस आने के लिए कहा।
तीन साल बीत गए और कीर्ति व यश अलवर आते-जाते रहते थे, तभी एक और समान तारीख आयी जिसने कीर्ति का नजरिया अपनो के प्रति बदल दिया।
वो तारीख थी 13 मार्च 2020 जब दुनिया सच में पलट गयी थी, जैसे वक्त जहां था वही रूक गया था, कोरोना महामारी भारत में अपने पांव पसार रही थी और माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने समस्त भारत में लाॅकडाउन घोषित कर दिया था,बस,रेल,हवाईजहाज,व सड़क के सभी यातायात माध्यम बंद हो गये और जो जहां था वही रूक गया।
कीर्ति और यश जो दोनों उस समय होली का त्यौहार मनाने के लिए अलवर जिले में गये थे और उनकी वापसी वाली टिकिट 14 मार्च की थी।
” लाॅकडाउन की वजह से हमें अब यही रूकना पड़ेगा और कम्पनी ने भी वर्क फ्राम होम की सुविधा बना दी हैं ” यश ने कहा।
” मैं यहा रहकर काम कैसे कर पाऊंगी, और अभी तो नौकरानी भी नहीं रख सकते हैं, मुम्बई में रहते तो हम दोनों अकेले कैसे भी रह सकते थे पर यहां ससुराल में मम्मी-पापा को हर काम योजनाबद्ध तरीके से और सटीक चाहिए, वे खानपान व साफ-सफाई को लेकर लापरवाही नहीं बर्दाश्त करते हैं?” कीर्ति भूतपूर्व अनुभवो के कारण चिंतित होकर बोली ।
” कीर्ति !! तुम बेकार ही चिंता कर रही हो, मानता हूँ मम्मी-पापा थोड़े पुराने विचारों के हैं पर रुढिवादी नहीं हैं वो हमारा सहयोग अवश्य करेंगे ” यश सहजता से बोला।
कीर्ति उस समय तीन महीने की गर्भवती थी और मुम्बई से उसकी डाॅक्टर ने उसे घर से बाहर निकलने की भी सलाह नहीं दी थी ।
कीर्ति मन मानकर वर्क फ्राम होम करने लगी थी पर ससुराल वालों को लेकर उसके मन का संशय दूर नहीं हुआ था उपर से उसकी तबियत उपर-नीचे रहती थी।
कीर्ति की आशंका को गलत साबित करते हुए उसकी सास ने उसका एक बेटी की तरह ध्यान रखा, उसे वे कोई काम में हाथ नहीं लगाने देती थी सुबह के नाश्ते में फल,मेवा, दूध व अंकुरित नाश्ता जो कीर्ति की सेहत के लिए अच्छा था वह स्वयं उसके लिए लेकर आती थी, बाहर की कोई वस्तु नहीं मंगवाकर वह स्वयं बड़े दुलार से कीर्ति को मनचाहे पकवान बनाकर खिलाती थी, कीर्ति जब कम्प्यूटर के सामने बैठे-बैठे थक जाती थी तो उसके सर में प्यार भरी तेल मालिश करती थी, शाम को नियमित रूप से कीर्ति के साथ छत पर सैर करने जाती थी।
कीर्ति के छोटे ननद व देवर अपनी भाभी का बहुत ध्यान रखते थे उसकी दवाई से लेकर उसके मनोरंजन तक की जिम्मेदारी दोनों ने उठा रखी थी।
कीर्ति अपने ससुराल वालों के बदले हुए व्यवहार से अभिभूत थी और तेजी से दिन व महीने निकल रहे थे, समय आने पर कीर्ति ने एक सुन्दर व स्वस्थ बेटे को जन्म दिया।
वर्क फ्राम होम अभी भी चल रहा था और कीर्ति की मेटरनिटी लीव भी बाकी थी, सबके प्यार व स्नेह को देखते हुए कीर्ति व यश ने अलवर में ही रूकने का निर्णय लिया।
कीर्ति की मेटरनिटी लीव खत्म हो गयी और उसका नन्हा बेटा विशु छह महीने का हो गया था, विशु अपने दादा, दादी, बुआ व चाचा की आखों का तारा था ,कीर्ति निश्चिंत होकर कम्प्यूटर पर बैठकर दफ्तर का काम करती थी।
” यश!! मेरी सोच कितनी गलत थी मैं संयुक्त परिवार को मुसीबत मानती थी पर अब लगता हैं उससे बड़ा कोई वरदान नहीं होता हैं, पिछले एक साल का यह कठिन समय सबके साथ व सहयोग से कितना अच्छा निकल गया, अगर इस समय हम मुम्बई में अकेले होते तो कितनी कठिनाई होती थी ” कीर्ति ने कहा।
” कीर्ति!! अगर हम मुम्बई में अकेले होते तो तुम्हें ना चाहते हुए भी विशु के पालन-पोषण की खातिर अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती थी,यहा मम्मी पापा ने कितना सहारा दिया हैं, और विशु भी अनुभवी हाथों में पल रहा हैं, मैंने निर्णय लिया हैं की जब तक कम्पनी वर्क फ्राम होम की सुविधा देगी हम दोनों अलवर ही रहेंगे ” यश ने बोला।
” पर कभी ना कभी तो मुम्बई जाना पड़ेगा तब विशु का क्या होगा मुझे भी तो काम पर जाना पड़ेगा और विशु भी सब लोगों से इतना घुलमिल गया हैं की मुझे उसे डे -केयर में छोड़ना अच्छा नहीं लगेगा ?” कीर्ति ने संशय जताया।
” विशु अकेला नहीं रहेगा मैं और तुम्हारे पापा स्वयं तुम्हारे साथ मुम्बई चलेंगे और विशु की देखभाल करेंगे तुम निश्चिन्त होकर काम पर जाना ” कीर्ति की सासू माँ जो विशु को लेकर आयी थी वो बोली।
” ये मैं क्या सुन रहा हूँ,आप वही मम्मी हो जो मेरे लाख बुलाने पर भी मुम्बई नहीं आती थी और अब स्वयं चलने का कह रही हो?” यश आश्चर्यचकित था।
” यश !! पहले की बात और थी तुम और कीर्ति स्वतंत्र थे और तुम्हें मेरी खास आवश्यकता नहीं थी, मैं हमेशा चाहती थी की कीर्ति और तुम बिना किसी सहारे के अपनी नयी गृहस्थी शुरू करों और अच्छे बुरे अनुभव लो शुरूआती अनुभव जीवन में हमेशा काम आते हैं, आज बात बच्चे की हैं इसलिए मैंने मेरा निर्णय बदल दिया “
कीर्ति की सासू माँ बोली।
” मम्मी !! पापा के व्यवसाय का क्या होगा?” यश ने प्रश्न किया।
” मैं अपना व्यवसाय चार पाँच महीनों के लिए तुम्हारे छोटे भाई के भरोसे छोड़ सकता हूँ, इससे वह भी कुछ सीखेगा बाद में कीर्ति के मम्मी-पापा कुछ महीनों के लिए तुम्हारे साथ रहेंगे और विशु की देखभाल करेंगे, मैंने इस विषय में उनसे बात कर ली हैं ” यश के पापा बोले।
कीर्ति की मनचाही मुराद पूरी हो गयी, उसके ससुर जी ने उसके माता-पिता का भी सम्मान रखा यह सोचकर कीर्ति खुशी से सरोबार थी।
संयुक्त परिवार को बोझ मानने वाली कीर्ति आज अपनी सोच बदल चुकी थी, उसने सभी रिश्तों को आज एक नये नजरिये से देखा और अपनी तरफ से रिश्तो को दृढ़ता के साथ निभाने का संकल्प लिया।
नन्हा विशु अपनी दादी माँ की गोद में काला चश्मा पहनकर बैठा था वह भी बहुत खुश था और ताली बजाकर जैसे वो अपने दादा-दादी के निर्णय पर सहमति जता रहा था।
कीर्ति के लिए वर्क फ्राम होम एक वरदान और रिश्तों को देखने का नया नजरिया बनकर आया था।
कीर्ति ने कैलेण्डर की और देखा आज तारीख थी 13 मार्च 2021 और कीर्ति इस समान तारीख में रिश्तों का सही मूल्यांकन करने लग गयी थी, अपने तो अपने होते हैं कीर्ति ने सोचा।
क्या यह सच नहीं होता की जो बच्चे अपने दादा-दादी, नाना-नानी की छत्रछाया में पलते हैं वो ज्यादा समझदार व परिपक्व होते हैं फिर उन्हें जानबूझ कर क्यों इस स्नेह से वंचित रखा जाए, कभी-कभी हालात या मजबूरी वश ऐसा करना पड़े तो अलग बात हैं ?
#अपने_तो_अपने_होते_हैं ।
आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में
पायल माहेश्वरी
यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं
धन्यवाद।