प्रियतमा  – किरण केशरे

आज सुहाग पड़वा थी, नई नवेली सिमरन आज खूब सजधज कर तैयार हुई थी अभी कुछ महीने ही तो हुए थे शादी को,,रोज जींस टॉप ,टी शर्ट सूट, पहनने वाली सिमी ! साड़ी में बला की खूबसूरत लग रही थी,,,,वैसे उसका ससुराल खुले विचारों वाला था तो कोई रोक टोक किसी बात में नही थी ! 

नील भी उसे अपलक देखता ही रह गया था , जब वह तैयार होकर सामने आई ! 

दोनों बड़ी ननंद शिखा के यहाँ मिलने जा रहे थे। 

दोनों का स्वागत शिखा दीदी ने बड़े ही प्यार और अपनेपन से किया था,, सिमी को देखकर शिखा बहुत खुश थी,, उसकी सासुजी भी वहाँ तब तक आ ही गई थी  ।

सिमी ने जैसे ही उनके और शिखा दी के पैर छुए,, शिखा हँसते  हुए बोल पड़ी खुश रहो,, आज तो बड़ी ही सुंदर लग रही हो ! 

सिमी लजा कर बोल पड़ी वो…दीदी आज सुहाग पड़वा थी सो मैने ये भारी सी साड़ी पहन ली,,,, 

अरे ये तो बहुत अच्छी बात है,,हमारे घर में तुम्हें कोई बंधन नही होगा । ऑफिस में भी तुम कम्फर्टेबल कपड़े ही पहनों, लेकिन ऐसे अवसरों पर साड़ी में बहुत सुंदर लगोगी,,शिखा ने लाड़ से सिमी को देखते हुए कहा , और देखो तो ! नील की नजर भी तुम से हट ही नही रही है,,शिखा दी हँसी तो सिमी का सुंदर चेहरा लाल हो गया था। 

शिखा सिमी से कह रही थी,,,,साड़ी कोई बंधन नही, कभी कभी अपना सलोना रूप ऐसे बदलती रहोगी तो सदा अपने पति की प्रियतमा बनी रहोगी  ।। 

 

किरण केशरे

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