“वेदना और स्वार्थ ” – कविता भड़ाना

स्वार्थ… स्वार्थ आखिर है क्या? अपने सुख के लिए या कोई इच्छा पूरी करने के लिए किसी ऐसे इंसान के भी तलवे चाट लेना, जो हो सकता है के हमे बिलकुल पसंद ना हो….पर अपने स्वार्थ के लिए हम अपने जीवन में उसे स्थान देते ही है।

कभी कभी हम बरसों तक एक ऐसे इंसान के साथ रिश्ते में होते है जिसे हम अपना सब कुछ मान बैठते है और उसके बिना जीवन की कल्पना तक नहीं करते पर अचानक से वो इंसान आपसे कह दे की सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए ही वो तुम्हारे साथ है वरना हम उसके जीवन में कोई महत्व नहीं रखते। 

स्वार्थ की परिभाषा को शब्दों में बयां करना जरा मुश्किल है, स्वार्थ अच्छा या बुरा नही होता, जहां तक मुझे लगता है रिश्तों की नीव ही स्वार्थ पर टिकी हुई है।

माता पिता बच्चो की परवरिश करते हैं कि बच्चे बड़े होंगे तो बुढ़ापे में हमारा सहारा बनेंगे, बेटे बहु का मोह भी इसीलिए होता है की जीवन संध्या में हमारी सेवा करेंगे और पति पत्नी का रिश्ता भी स्वार्थ ही तो है। 

जब हमारे मन के मुताबिक कोई कार्य नहीं किया जाता या हमारे विरोध करने पर भी सामने वाला वही कार्य कर जाए तो ठप्पा लग जाता है की ये तो स्वार्थी है पर हकीकत यही है की ये दुनिया ही स्वार्थ पर टिकी है।

मैं भी तो बहुत स्वार्थी हो गई थी उस समय, जब मेरे पिता  अंत समय हॉस्पिटल में वेंटीलेटर पर अपनी अंतिम सांसे ले रहे थे और में आईसीयू के बाहर खड़े होकर रो रही थी, सब ने बोला जाओ मिल आओ पर मेरा हृदय भयंकर वेदना से फटा जा रहा था मुझे पता था ये उनका अंतिम समय है पर कैसे देख पाती उन्हे तड़पते हुए, आती जाती सांसों के साथ,

हाथ पैर कांप रहे थे मस्तिष्क सुन्न पड़ चुका था और एक बेटी के दिल ने साफ़ इंकार कर दिया की कैसे देख पाएगी।

मेरे छोटे भाई बारी बारी होकर आए पर उनके चेहरे और आंसुओ ने जैसे सब बयान कर दिया और ये स्वार्थी बेटी जार जार रोती हुई गहरे अंधकार में चली गई।

सच्ची कहानी

#स्वार्थ

कविता भड़ाना

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