पराए रिश्तों पर हक – पूनम अरोड़ा

शैक्षिक प्रशिक्षण से सेवा निवृत हो चुके अनिल जी ने  कुछ आमदनी प्राप्त  करने के लिए और कुछ अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए अपने घर के एक पोर्शन को किराए पर उठाने का फैंसला किया ।

जल्दी  ही उन्हें  एक किराएदार मिल भी गया ।

एक युवा दम्पति  और उनकी ढाई साल की बच्ची ।

अनिल जी का बेटा मुंबई  में  अपने परिवार के साथ और बेटी अपने ससुराल में  थी।

ये दोनों  अकेले ही रहते थे और स्वभाव भी बहुत  विनम्र और आत्मीयता  पूर्ण  था।

बहुत जल्दी  ही किराएदार रोहित और उसकी पत्नी मोना से उनके घर जैसे संबंध  हो गए।

उनकी बेटी रिमि तो उन्हें  अपनी  पोती की तरह प्यारी हो गई थी। सारा दिन वे उनके पास ही रहती ।  रोहित और  मोना दोनों  ही  वर्किंग  थे इसलिए जब रिमि को डे केयर भेजने की बात चलने लगी तो अनिल जी और उनकी पत्नी  ने यह कहकर उन्हें  मना कर दिया कि हम तो सारा दिन घर में  अकेले रहते हैं  हम इसकी देखभाल  कर लेंगे  और हमारा मन भी लग जाएगा। ।रोहित मोना के लिए तो जैसे सैलरी के साथ  बोनस भी मिल गया हो।

अंधा क्या  माँगें दो आँखें 

ये तो बढ़िया  ही हो गया उन लोगों  के लिए “हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होय ।”

पैसे भी बचेगें और केयर भी घर की तरह होगी।

अब वे तसल्ली  से रिमि को उनके पास छोड़ के निकल जाते और शाम को भी कभी-कभी  दोस्तों  के साथ घूमकर  या रात को डिनर कर के आते। अनिल जी और सीमा जी भी और रिमि भी उनके साथ ऐसे हिल मिल गए थे कि वो अपने मम्मी  पापा को मिस करके कभी परेशान  नहीं  करती थी।



रिमि को खिलाने पिलाने का उसकी  जरूरतों  ,फरमाइशों का तो कोई पैसे नहीं  लेते थे वो बल्कि  किराए के रूपये  भी कम के कम ही लेते  उनसे वो भी संकोच से।

सिर्फ यही नहीं  खाली समय में  दोनों  पति पत्नी  उसे  उसे पेंटिंग  ,कभी स्टोरी और कभी मूलभूत गणित के अंकों और अंग्रेजी  हिंदी  के वर्णाक्षरों को सिखाते पढाते रहते।

सीमा जी उसके लिए कभी मैगी ,कभी पोहा ,कभी सैंडविच बना बना के खिलातीं।

रिमि का बर्थ डे आ रहा था ।उसके लिए दोनों  ने बाजार जाकर दो बहुत  ही खूबसूरत  और

बहुत ही कीमती ड्रैस खरीदी ,चॉकलेट का बडा वाला पैक और   रिमोट वाला प्लेन लिया।

जन्मदिन वाले दिन  सीमा जी ने अपने हाथों  से चॉकलेट केक बनाया । रोहित और मोना के फ्रैंड्स आए हुए थे पार्टी  में ।सबको केक बहुत  ही पसंद आया बेहद ही तारीफ की सबने।

सीमा ने पार्टी के समय भी और उसके बाद भी मोना की पूरी हेल्प  की ,प्रबंधन में  पूरा सहयोग किया ।

अब तो उन लोगों  को रिमि से लगाव भी इतना हो गया था और उस पर अपना हक भी समझने लगे थे कि अगर रोहित या मोना उसे डाँटते तो वे तुरंत बीच में  आकर उसे लाड़ लाड़ से  पुचकार के वहाँ  से ले जाते बिना यह ध्यान दिए कि यह बात उनके मम्मी  पापा को नागवार लग रही  है।

जहाँ  तक उनके देखभाल की बात थी तो  ठीक लेकिन जब वे रिमि पर  अपना हक जताते उस पर तो वे कसमसा के रह जाते।कुछ कह तो पाते नहीं  थे क्यों कि उनका स्वार्थ  सिद्ध हो रहा था लेकिन उन्हें  ये पसंद भी नहीं  आ रहा था। रिमि भी कभी-कभी  तो रात को भी उनके पास सोने की जिद करती,उनकी छुट्टी वाले दिन भी उनके पास न रहकर  वहीं  रहना पसंद करती ।इस बात से भी उनके मन में  विक्षोभ पैदा हो रहा था । इसी कारणों  से वे अब उनसे निजात पाने का सोच ही रहे थे कि तभी रोहित के ऑफिस की तरफ से उसे फ्लैट आवंटित   किया तो  उसे जैसे वहाँ से निकल जाने का स्वर्णिम अवसर   मिल गया और यही सूचना अनिल और सीमा के लिए  आकस्मिक   “वज्राघात जैसी असहनीय ” हो गई।

उनके आने का दिन भी आ गया ।भरे मन ,रुंधे  गले और नम आँखो से विदा करते हुए बार बार वे रोहित को  उसे वीकेन्ड में  मिलवा कर जाने का आश्वासन  ले रहे थे लेकिन उनके  आश्वस्त  करने के बावजूद भी आशंकित थे ।  जितना वे उसके मोह, उसके अलगाव के कारण  दुखी थे  उतना ही  जीवन में  उसके कारण आ गई रिक्ति से डिप्रेस्ड।



बस किसी न किसी तरह पाँच दिन सब्र करके शनिवार सुबह से उनकी बाट जोहने लगते ।शुरू शुरू में  तो रोहित रिमि की जिद की वजह से उसे उनको मिलवाने ले आता था लेकिन धीरे धीरे यह सिलसिला  कम होते होते लगभग समाप्तप्राय ही हो गया । उन्हें  उनके घर का पूरा  पता भी मालूम नहीं  था न ही रोहित और मोना ने कभी उन्हें  ज्यादा आग्रह  से घर आने को कहा।बस इतना पता था कि वे शहर के बाहर की तरफ बनी  आवासीय  सोसाइटी में  रहते हैं ।सोसाइटी का नाम पता था बस।मोबाइल  पर फोन करते तो रोहित अक्सर कहता कि वो घर से बाहर है जाकर रिमि से बात करा देगा लेकिन वो कराता नहीं ।वो मन में  शायद उसका रूख समझ कर भी नहीं  समझना चाह रहे थे  ,अपने मन को एक भ्रम में  रखा हुआ था कि भूल गया होगा बात कराना।

आजकल जब अपने स्वयं बेटे बहुओं  पर कोई आधिपत्य  नहीं रह पाता  तो उन पर कैसे हक

जता सकते थे लेकिन   रिमि के प्रति अतिसंवेदनशीलता   ने उनके जीवन को खालीपन से भर दिया था।

2 फरवरी   को रिमि का जन्म दिन था ।एक सप्ताह पूर्व से ही दम्पति  उसके जन्मदिन  के निमन्त्रण  की प्रतीक्षा कर रहे थे।उन्हें  याद आया कि पिछली बार तो रोहित और मोना ने उन्हें  ही  यह कहकर   आगे किया था कि पहला हक दादा दादी का है और रिमि का केक कटवा के “पहली बाइट” भी उन्होंने  ही उसको खिलाई ।

इंतजार करते करते 2फरवरी  भी आ गया ।कोई  फोन, कोई  आमंत्रण  नहीं  आया ।बार बार वे लोग फोन  चैक करते कि कहीं   मिस्ड  तो नहीं  हो गया लेकिन  जब कोई  उम्मीद  नहीं  रही  तो सोचा क्या पता इस बार सेलेब्रेट ही न कर रहें  हों इसलिए  फोन नहीं  आया । उन्होंने  सोचा तो क्या हुआ सेलेब्रेट  नहीं  कर रहे तो हम रिमि को वैसे ही विश कर आते है ।

यही सोचकर सीमा ने अपने  पूरे जोश उत्साह से चाॅकलेट केक बनाया और अनिल जी उसके लिए  बाजार से बहुत  से खिलौने, गिफ्ट्स आदि ले के आए।

सोसाइटी के नाम के आधार पर वहाँ  पहुँच  गए और फिर गार्ड  से  नाम बताकर उनका फ्लैट नं पता करके चले गए क्यों कि बच्ची का बर्थ डे था इसलिए  गार्ड ने भी ज्यादा तहकीकात  नहीं  की न रोहित को ही सूचना दी



जब वे वहाँ  उनके फ्लैट पर पहुँचे  तो दरवाजा खुला ही था ।

अंदर से बहुत  से लोगों  की हँसने बोलने की  खनखनाहट, रंग बिरंगी रोशनियों  की जगमगाहट  ,छलकते  जामों  के गिलासों की टकराहट  ,  तेज म्यूजिक और डांस की

थरथराहट  सब सुनाई दे रही थी ।

चकित, स्तंभित, विस्मित से  दोनों एक पल को तो  “किंकर्तव्यविमूढ़” से खड़े  रह गए ।

अच्छा हुआ किसी ने देखा नहीं  उन्हें ।

यह सोचकर कि कोई हमें  यहाँ  देख न ले,एक पल भी बिना गँवाए  वे वहाँ  से उल्टे पैर वापिस आ गए ।

दोनों  एक दूसरे के दर्द  को महसूस  कर रहे थे एक सा दर्द  था दोनों  के मन में इसलिए  एक दूसरे की आँखो में  देख पाने की हिम्मत  भी नहीं  कर पा रहे थे कि उनके आँसुओं  की नमी से  दूसरा पिघल न जाएँ  कहीं ।

आज शिक्षक  को  भी किसी ने “बदलते रिश्तों” और “दोहरे मापदंडों”  का सबक पढ़ा दिया था।

रिश्ते काँच सरीखे होते हैं

टूट  के  बिखर  जाते हैं

समेटने की जहमत कौन करे

लोग नया काँच ही ले आते हैं

राह में  बैठे गरीब बच्चों  को उन्होंने  वो केक और सारे गिफ्ट्स बाँट दिए ।उस समय उन बच्चों  की आँखो  में  खुशी की चमक से    उनका अंतर्मन  तृप्त   हो गया कि उनके  प्यार से खरीदी चीजों  का उपभोग व्यर्थ  नहीं  गया। किसी के जीवन में  चाहे क्षणिक  ही सही इस वजह से  कुछ खुशी के पल तो आ सके ।

स्वरचित——- पूनम अरोड़ा

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