सीढ़ी का नियम – आभा अदीब राज़दान

आज पोते ने जब बहू को पलट कर बेतुका सा जवाब दिया तो पूर्णिमा जी को बहुत बुरा लगा । रीमा तो बेटे को घुड़क कर बाहर चली गयी लेकिन पोता सौरभ, लज्जित होने के बजाय अब भी अपने भोंडे क्रोध का प्रदर्शन ही कर रहा था ।

” देखिए दादी जी माँ ने मुझे बिना बात के ही डांट लगा दी । मुझे उनकी डांट अच्छी नहीं अच्छी लगती हैं सो मैने भी पलट कर जवाब दे दिया । कब तक सुनूँ अब मैं भी बड़ा हो गया हूँ ।”

” शाबाश बेटा, तुम तो परिवार का नाम अवश्य ही रौशन करोगे । बिल्कुल सही तो कह रहे हो अब तुम बड़े क्यों बहुत बड़े हो गये हो । और बच्चे बड़े हो जाते हैं तब माँ पिता तो छोटे हो जाते हैं न ।” कह कर पूर्णिमा जी ताली बजाने लगी थीं ।

सौरभ दादी का थोड़ा लिहाज़ करता है सो कुछ लज्जित भी हुआ । फिर बोला,

” दादी आप ही बताइए मां तो बिना बात के ही मेरे पीछे लगती हैं डांटती रहती हैं सो मुझे गुस्सा आ जाता है ।” सौरभ ने कहा ।

” गुस्सा आ गया, बेटे को माँ पर गुस्सा आ गया । अब तुम अपनी माँ पर गुस्सा करोगे । जो मेरा सुनो तो तुमसे कुछ कहूँ ….” दादी बोलीं ।

” हाँ हाँ दादी जी कहिए न, प्लीज ।” अब सौरभ ने सामान्य होते हुए कहा था ।



” सीढी से हम ऊपर भी चढ़ते हैं और नीचे भी उतरते हैं । इसी तरह नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे ही इस समाज की भी व्यवस्था है और यह उचित भी है और यही नीति भी है ।” पूर्णिमा जी ने कहा ।

” दादी आपकी बात मुझे समझ ही नहीं आ रही है । यह ऊपर नीचे सीढी चढने का क्या अर्थ हुआ ।” सौरभ ने कहा ।

” समझ ही तो नहीं है तुम में । नीचे से ऊपर की सीढी में आदर करना माने छोटों को अपने से ऊपर अर्थात बड़ों का आदर करना है और ऊपर से नीचे माने बड़े अपने से छोटों को आशीर्वाद देना है । यही नीति है अब तुम बताओ तुम्हे अपनी माँ पर क्रोध करने का अधिकार किसने दे दिया है ।” पूर्णिमा जी ने कहा ।

” दादी आप तो गंभीर हो गयी हैं, मैने ऐसा क्या कह दिया है ।” सौरभ बोला ।

” यह जो अभी तुमने अपनी माँ को ऊंचे स्वर में उल्टा जवाब दिया है न यह तुमने मुझे विष पिलाया है । मेरे लिए तो विष है और यह बात भली भाँति समझ लो तुम्हारे लिए भी यह विष ही होना चाहिए ।”

दादी ने गंभीर स्वर में कहा ।

” हमममममम “

” सौरभ तुमको अपने माता पिता अपने बड़े बुजुर्गों से तेज स्वर में बात करने का अधिकार नहीं है हाँ कल तुम्हारे आगे जो तुमसे छोटे होंगें उनको तुम समझाना, उनसे तेज स्वर में बात करना, वह सही होगा । जीवन में जब भी कोई इस सीढ़ी की व्यवस्था का दुरुपयोग करता है वह जीवन में न तो कभी सफल होता है और नहीं सुखी ही रहता है । आज मैं हूँ कल नहीं रहूँगी लेकिन बेटा मेरी यह बात सदैव याद रखना । जीवन में इन सुंदर नियमों का पालन अवश्य करना । अब जाओ पहले जाकर अपनी मां के चरण स्पर्श करके क्षमा माँगो ।” दादी ने कहा उनकी आँखों में आँसू और चेहरे पर अद्भुत तेज था । सौरभ ने पहले अपनी दादी का चरण स्पर्श किया फिर वह माँ के कमरे की ओर चल पड़ा ।

आभा अदीब राज़दान

लखनऊ

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