‘रो रही है, तो मैं क्या करूँ? उसकी माँ है ना उसे सम्हालने के लिए।’ ‘माँ ! वह भूखी है, चाची की तबियत ठीक नहीं है।’
‘ठीक नहीं है तो? मैंने ठेका नहीं लिया है सबका।’ सुनंदा उग्र स्वभाव की महिला थी, और मन में दांव – पेंच रखती थी। दुष्ट प्रकृति की थी, और घर में उसके कारण कोहराम मचा रहता था। उसे अपने पति और बच्चे के अलावा किसी से कोई मतलब नहीं था।
राजेश बाबू दयालु प्रकृति के थे, पत्नी के व्यवहार से खिन्न रहते थे। उन्होंने बहुत कोशीश की उसे समझाने की, मगर वह टस से मस नहीं होती। वे जब भी समझाने की कोशिश करते वह घर सिर पर उठा लेती, घर का माहौल ऐसा हो जाता कि, साँस लेना मुश्किल हो जाता। थक हार कर, उन्होंने समझाना ही छोड़ दिया। परिवार दो भागों में बंट गया, और साथ में राजेश बाबू का दिल भी। वे जरुरत पूर्ति बोलते और अपने कमरे में चले जाते।चिंटू की भोली बातों पर, उन्हें प्यारआ रहा था, उन्होंने सोचा कि सुनंदा को समझाएं, मगर पूर्व के अनुभव याद आ गए, वे कुछ कह नहीं पाए, उदास से कमरे में चले गए।
सुनंदा बोली- ‘चिंटू तुझे किसी से मतलब नहीं है, चुपचाप खाना खा और पढ़ाई कर।’
अगर सुनंदा के पास त्रिया हट थी, तो चिन्टू के पास बाल हट थी। वह जिद पर अड़ गया, कि उसे खाना नहीं खाना है। वह बोला -‘जब तक तिन्नी को खाना नहीं खिलाओगी, मैं खाना नहीं खाऊंगा।’
सुनंदा के सम्मान को धक्का लगा, उसने कहा – ‘नहीं खाना है तो मत खा, मैं भी देखती हूँ, कब तक भूखा रहता है।’ उसने उसे कमरे में बंद कर दिया।
नन्हा बालक रोता रहा, चिल्लाता रहा। मगर सुनंदा का गुस्सा काबू से बाहर था, उसे दया नहीं आई। कुछ देर बाद कमरे से आवाज़ आनी बंद हो गई। राजेश बाबू भी कमरे से बाहर निकल कर घूमने के लिए निकल गए। वह अकेली थी, गुस्से का भूत जो उसके दिमाग पर चढ़ा था, उतर गया। उसने दरवाजा खोलकर देखा, चिंटू निढाल सा बिस्तर पर पड़ा था। सुनंदा ने पास जाकर देखा, आँसू जो उसके कपोल पर ढुलके थे, सूख कर स्याह हो गए थे। उसके पास उसकी नोटबुक और पेन्सिल रखी थी। उसने उसकीऔर तिन्नी की तस्वीर बनाई थी, तस्वीर बाल सुलभ थी। उसने उस पर लिखा था। “तिन्नी तू भूखी है, तो मैंने भी खाना नहीं खाया।”
सुनंदा कठोर होने के साथ एक माँ भी थी, उसका ममत्त्व जागा, उसने चिंटू को सीने से लगा लिया और कहॉ- ‘बेटा खाना खाले।’
‘नहीं मुझे नहीं खाना।”
‘जा तिन्नी को बुला ला, वह भी तेरे साथ खाएंगी।’
‘सच माँ !’
‘हाँ बेटा! जा उसे बुला ला।’ चिंटू प्रसन्नता से दौड़ता हुआ गया, उसने आवाज दी – ‘तिन्नी…..…. तिन्नी….!’ आषा ने कहा- ‘क्या बात है चिंटू, यहाँ कैसे?’ चिन्टू ने प्रसन्नता से कहा – ‘चाची मैं तिन्नी को लेने आया हूँ, माँ ने बुलाया है खाना खाने के लिए।’
आशा को आश्चर्य हुआ, वह बोली – ‘बेटा वह सो गई है।’
‘कोई बात नहीं चाची, आप आराम करें, मैं उठा देता हूँ।आपकी तबियत कैसी है?’
‘ठीक है बेटा’
चिंटू ने तिन्नी के सिर पर हाथ फेरा, तिन्नी उठ गई। ‘कौन चिंटू भैया ?’ उसका चेहरा प्रसन्नता से खिल गया।
‘चल तुझे माँ ने बुलाया है, साथ में खाना खाएंगे।’ तिन्नी की
आँखें आश्चर्य से फैल गई….’सच भैया?’
‘हाँ, मैं तुझे बुलाने आया हूँ।’ चिंटू १० साल का था, और तिन्नी ६ साल की। अकेले-अकेले रहना दोनों की मजबूरी थी। वह डरती थी, ताई के गुस्से से, पर…भाई का प्यार,… डरते-डरते उसके साथ गई। दोनों ने साथ में खाना खाया। राजेश बाबू घूमकर घर आए तो यह दृष्य देख प्रसन्न हो गए। कुछ कहना चाहते थे,मगर……. चुपचाप कमरे में चले गए, और ईश्वर से प्रार्थना की, कि “हे ईश्वर दोनों परिवार के दिलों के बीच जो दरार पड़ गई है,उसे पाट दे।”
सुनंदा ने तिन्नी को कुछ उल्टा -सीधा कहा भी, मगर उसनेे माँ से कुछ नहीं कहा, वह जानती थी कि अगर माँ से कुछ कहा तो माँ चिंटू के यहाँ जाने नहीं देगी। उसने माँ से यही कहा – ‘माँ ताईजी ने बहुत प्यार से खाना खिलाया, मुझे प्यार भी किया।’ आशाको बहुत खुशी हुई। दो तीन दिन चिंटू और तिन्नी ने साथ में खाना खाया। फिर आशा की तबियत ठीक हो गई और वह अपने घर पर खाना खाने लगी। दीवार के एक तरफ, राजेश बाबू, सुनंदा और चिंटू थे, और दूसरी ओर सुरेश, आशा और तिन्नी। छोटा सा परिवार था, मगर उनके दिलों के बीच दरारें बहुत गहरी थी। सब पूर्ववत चलता रहा।मगर, इन तीन दिनों में कुछ तो बदला था। राजेश बाबू के मन में, फिर से आषा की एक किरण झिलमिलाने लगी थी। वे घूमते-फिरते यही ख्वाब देखने लगे थे, कि सब साथ में मिलजुल कर रह रहे हैं। बार-बार आसमान की ओर देखकर हाथ जोड़ देते, मानो ईश्वर से परिवार की एकता के लिए, प्रार्थना कर रहे हों। चिंटू के मन में हिम्मत आ गई थी, वह कभी-कभी तिन्नी से मिलने के लिएचला जाता । सुरेश और आशा को भी लगने लगा था कि उनके बाद तिन्नी का क्या होगा। चिंटू उसका भाई है, उसे प्यार भी बहुत करता है। मन में जो कड़ुआहट थी, उसका कुछ स्थान मधुरता ने ले लिया था। तिन्नी भी भाई का प्यार पाकर प्रफुल्लित रहती। सुनंदा के मन की कठोरता धीरे-धीरे पिघलने लगी थी। यह उसके अकेलेपन से घबरा गई थी, पति बात नहीं कर रहे थे, और बेटा उसके व्यवहार से विद्रोही होता जा रहा था। उसके विचारों और भावनाओं की ऊष्णता पर आद्रता की फुहार पड़ने लगी थी।
जब परिवर्तन होता है तो, कभी-कभी परिस्थितियां भी सहायक बन जाती है। एक दिन राजेश बाबू घूमने गए थे। सुनंदा का पैर फिसल गया और वह गिर पड़ी, चोट जोर से लगी थी, उससे उठा नहीं जा रहा था।
चिंटू दौड़ता हुआ चाची के यहाँ गया और बोला-‘चाची…चाची…….माँ गिर गई है, उनसे उठा नहीं जा रहा है।’
आशा सारे काम छोड़ कर चिंटू के साथ उसके घर गई, साथ में सुरेश भी आ गया। दोनों ने मिलकर सुनंदा को उठाकर पलंग पर बैठाया, और फिर डॉक्टर के पास ले गए। पैर की हड्डी टूट गई थी। डॉक्टर ने बेड रेस्ट का कह दिया। सुनंदा परेशान थी, कैसे चलेगा? क्या करुंगी?
आशा ने कहा -‘आप चिन्ता न करें, हम सब सम्हाल लेंगे।आप जल्दी अच्छी हो जाएंगी।’ सुनंदा ने चैन की सांस ली।मन की सारी कड़ुआहट घुल गई थी, और आँखों में निर्मल, निश्छल आँसू थे। दो दिन में अस्पताल से घर आई, तो आते ही उसने कहा – ‘सुरेश भाई इस दीवार को, जो दोनों घरों के बीच में है तोड़ दो, अब इसकी जरुरत नहीं है।’
सुरेश ने कहा – ‘ठीक है भाभी तुड़वा दूंगा’ मकानों के बीच की दीवार सुरेश ने तुड़वा दी। मगर, सभी के दिलों के बीच जो दरारें पड़ गई थी, उन्हें तो दो नन्हें सैनानियों के निश्छल प्रेम ने पाटा। चिंटू की बालहट ने दोनों परिवारों को मिला दिया था। आज कई दिनों बाद, राजेश बाबू ने सुनंदा से नजरें मिला कर बातें की। उनकी आँखों में आज अपार शांति नजर आ रही थी।
#परिवार
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक