अपने ही परिवार में ये दीवार कैसी…. रश्मि प्रकाश 

“ बेटा तेरी दादी की तबियत बहुत ख़राब है ना जाने क्यों वो तेरे से मिलने की ज़िद्द किए बैठी है …. हो सके तो तू समय निकाल कर आ जा.. दो साल से मायके के चक्कर भी नहीं लगा पाई है ।” दुखी स्वर में दमयंती अपनी बेटी वाणी से बोल रही थी 

“ हाँ माँ… मैं छुट्टी लेकर जल्दी आने की कोशिश करती हूँ…. वैसे अभी यहाँ मम्मी जी भी आई हुई है उनसे बात कर तुम्हें बताती हूँ…. अभी एक जरूरी काम निपटाने में व्यस्त हूँ ।” लैपटॉप पर नज़रें गड़ाए फोन स्पीकर पर कर वाणी बात कर रही थी 

काम ख़त्म कर मैनेजर से छुट्टी की बात कर घर आ गई ।

चार दिन बाद वो अपने मायके पहुँच गई थी…. इस बार घर कुछ वीरान और अलग सा महसूस हो रहा था….. घर के अंदर जाने के लिए सीढ़ियों को पार करना पड़ता था क्योंकि नीचे बड़ी सी दुकान थी  ।

सीढ़ियों से उपर पहुँची तो देखा हॉल में दादी का बिस्तर लगा हुआ था और घर के बीचों-बीच एक मोटी सी दीवार खींच गई थी…. आँखें फाड़ कर वो मम्मी से सवाल करने ही जा रही थी कि दादी की आवाज़ सुनाई दी,“ आ गई मेरी गुड़िया…. अब मैं शांति से मर सकूँगी ।”

” क्या दादी अभी अभी आई और तुम ये सब बोल रही हो…. तुम तो मेरी शेरनी दादी हो जिसकी दहाड़ से सब डर जाते देखना बीमारी भी डर कर भाग जाएगी ।”वाणी दादी के गले लग बोली 

“ अच्छा दादी ये हमारे घर में दीवार क्यों है….मुझे ताई ताऊजी और सारे भैया भाभी भी नहीं दिखाई दे रहे …. इन दो सालों में क्या हो गया तुम इतनी बीमार कैसे हो गई…… मेरी शादी के वक़्त तो तुम कितना नाच रही थी ।” वाणी आश्चर्य से दीवार पर हाथ फेरते हुए पूछी 

“ माँ ये कनु भी आई है क्या ससुराल से…. अब तो शादी के बाद सबसे बहुत कम बात हो रही है…. लगता है सब मेरी तरह ही व्यस्त हो गए हैं….।” वाणी कह रही थी तभी उसे लगा कनु की आवाज़ आ रही है 



“माँ ये तो कनु की आवाज़ है ….. बताओ तो ये दीवार कब डलवा ली और इधर बस तुम लोग ही हो…. ताऊजी का परिवार …..।” अचानक वाणी को याद आया जब उसकी शादी की बात चल रही थी तब ही घर में कुछ मनमुटाव चलने लगा था पर इसकी नौबत आ सकती वो कभी सोच ही नहीं सकती थी क्योंकि दादी हर बार ये कहा करती थी

तुम दोनों भाइयों के बीच जो भी मतभेद हो मेरे जीते जी अलग होने की बात नहीं करोगे….. पिताजी है नहीं जो सब सँभाल लेंगे इसलिए बड़े तू ही मालिक है और घर के बीच दीवार मेरे जीते जी तो खींचने ना दूँगी …. पर दादी के रहते दीवार खींच ही गई मतलब बात बहुत बड़ी हो गई होगी और किसी ने भी मुझे बताना ज़रूरी नहीं समझा ।

वाणी सोचते हुए दादी से बोली ,“ दादी वो तो हमारा ही परिवार थे ना फिर ये सब तुम्हारे रहते कैसे हो गया…. तुम तो हमेशा सबको मिल कर रहना सिखाती रही फिर ये सब….।” वाणी की आवाज़ भर्रा गई 

“ वाणी बेटा अभी आई है इन बातों में ना उलझ चल सफर में थक गई होगी…. खाना खा कर आराम कर।” माँ की आवाज़ सुन वाणी माँ को गौर से देखने लगी…. माँ भी बीमार सी लग रही है…. दो भाई उसके जो अभी पढ़ाई ही कर रहे थे वो भी चुप चुप से लगे जो पहले पूरे परिवार में छोटे होने के कारण सबका दुलार पाते थे आज कहीं अकेले से लग रहे थे ।

वाणी इतनी बच्ची नहीं थी कि घर की विपदा ना समझ सकें पर उसके ताऊजी और पापा दोनो अपनी माँ की बात कभी टालते नहीं थे फिर कैसे घर में दीवार खड़ी करवा दिए और दादी जो हमेशा बड़े बेटे का गुणगान किया करती थी आज इस तरफ है…..

खैर खाना खा कर वाणी माँ के साथ थोड़ी देर कमरे में सोने चली गई उसका मन तो बार बार ये जानने को उत्सुक था आख़िर ऐसा हुआ क्या?

वो जानती थी माँ कभी कुछ नहीं बताएँगी….. जो हमेशा घर में छोटी बहू के सब काम को लेकर चली जो ताईजी को बड़ी बहन मानती रही वो कभी बुराई करने को मुँह ना खोलेंगी…. जो हमें सदा परिवार की एकता का पाठ पढ़ाती रही वो कैसे कह सकेगी ..क्या हुआ क्यों हुआ…. वो उठ कर दादी के पास जा कर लेट गई….. दादी बस यूँ ही शून्य की ओर ताक रही थी वाणी को आया देख बोली,“ नींद नहीं आ रही…।” 

“ तुम भी तो नहीं सोई दादी…. बताओ ना ऐसा क्या हो गया जो हमारे हँसते खेलते परिवार के बीच य दीवार खींच गई…..।” वाणी ने पूछा 




“ क्या कहूँ बिटिया….. मैं तो माँ ही हूँ ना दोनों की… अपने बच्चों का भला ही सोचती….. तेरे ताऊजी के चार बेटे जो तेरे भाइयों से बड़े है हमारा बिज़नेस सँभाल रहे थे…. मुझे तो भनक भी नहीं लगी की वो चारों बेटे मेरे बेटे बहू को कान भर रहे थे…. जानती है पहले उन्हें लगता था तुम दो ही भाई बहन हो ….तू ब्याह कर चली जाएगी तो तेरे पापा के एक ही बेटा रहेगा पर जब तेरा छोटा भाई आया उन्हें वो चुभने लगा था…. ये सब उनके अंदर कब से पनप रहा नहीं

मैं जानती पर तेरी बड़ी भाभी जब से आई उसके घर वाले जाने क्या क्या तेरे ताऊजी ताईजी को पट्टी पढ़ाने लगे …. नफरत की बीज वो बो ही चुके थे बस पनपना बाकी था ….तेरे ताऊजी के सात बच्चे है ना दो बेटी को ब्याह के वक़्त खुले हाथों खर्च किया तेरे पापा ने एक हिसाब ना पूछा जबकि दुकान तो दोनों भाई के बराबर के मेहनत से चलता हाँ ये ज़रूर था कि उसके चार बेटे भी हाथ बँटाया करते थे बिज़नेस भी बढ़ रहा था पर जब तेरी शादी की बारी आई तेरे ताऊजी ने तेरे पापा से कहा,“ देख छोटे सोच समझ कर बेटी के ब्याह में खर्च करना….

तेरा हिस्सा ज़्यादा नहीं रहता ना तू उतनी मेहनत करता है….. मैं और मेरे बेटे के मेहनत की कमाई तेरी बेटी की शादी में खर्च नहीं करने दूँगा “……. ये बात सुन तेरे पापा ने कहा,“ भाई साहब हमारी चार चार बेटियाँ हैं ना…. फिर सबको बराबर का हक मिलना चाहिए …. ये मेरी बेटी कर के आप पराया क्यों कर रहे हो….” पता तेरे ताऊजी ने तब क्या कहा,“ अरे ये सब तो बाऊजी कहा करते थे….. पर हक़ीक़त यही है मेरे सात और तेरे तीन बच्चे हैं….. अपने अपने हिसाब से उनके लिए खर्च करना है……

हमारी कमाई का एक चौथाई हिस्सा ही तो तेरी मेहनत का होता है….. फिर मेरे बेटों की मेहनत की कमाई तेरी बेटी की शादी में क्यों खर्च दें…… ” पहली बार तेरे पापा फूट फूट कर रोये पर मुझे कुछ नहीं बताया….. तेरी माँ ने भी कह दिया जब वो लोग नहीं चाहते तो हम झगड़ा करके बेटी का ब्याह नहीं करेंगे जितना कर सकते उतने में करेंगे ।फिर तेरे जाने के बाद जब बाद में मुझे पता चला तो मैं तेरे ताऊजी से बात की ये सब क्यों किया……’

बेटा मेरे ही बेटे ने मेरा मान ना रखा कहता है मेरा परिवार नहीं दिखाई देता तुमको….. इतने सारे लोग है अब चार बेटे हैं उनका परिवार बढ़ेगा फिर खर्च भी बढ़ेगा…….  तुम कहती हो दोनों भाई बराबर बाँट लिया करो ….. छोटे का परिवार छोटा है वो तो बहुत बचा लेगा पर मेरा क्या……. मुझे तो सोचना होगा ना…..  शुरू से हमारे घर में बिज़नेस ही होता रहा है…… दादा दो भाई थे ….. हम दो भाई पर हमारे बच्चे ज़्यादा हो गए उनमें बँटवारा करने में बिज़नेस के कितने हिस्से हो जाएँगे

इसलिए मैं अपना हिस्सा लेकर अलग रहूँगा फिर मेरे बच्चे जो करना चाहे करें पर परिवार के बिज़नेस को अब आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी मुश्किल लग रही।बस बेटा इसपर बहुत कहा सुनी हो गई तेरी ताईजी ने भी ना जाने कितना भला बुरा कहा …… मैं तेरे पापा की तरफ़दारी करने लगी तो दो टूक शब्दों में कह दिया..,“ इतना ही प्यार है छोटे से तो रहो छोटे के साथ… बस देखते देखते तेरे ताऊजी ने दीवार खड़ी करवा दी…….. मैं इस ओर रह गई वो सब उधर चले गए…… जो बच्चे कल तक दादी दादी करते थे आज मेरी आवाज़ भी अनसुना कर देते ।”कहते कहते दादी की आँखों से आँसू बह निकले

दादी से चिपक कर वाणी को बचपन से बहुत शांति मिलती थी वो थी भी दादी की लाड़ली कभी दादी के किसी काम को मना नहीं करती पर आज दादी की ये हालत देखकर उसे पहली बार समझ नहीं आ रहा था दादी की गलती रही या ताऊजी और पापा की जो ये परिवार बिखर गया….  जो दादी पापा को सदा बड़े की बात मानने की सीख देती रही वो ताऊजी को क्यों नहीं सीखा पाई…. क्या ताऊजी दादी से भी बड़े हो गए थे या फिर इस घर की दीवार बस पैसों के लिए खींच दी गई…



सप्ताह भर में वाणी ने अपने ताऊजी के परिवार को दूर से देख रही थी पर बातचीत भी बंद हो गई थी…. जिनके साथ पूरे घर में ऊधम मचाते रहे आज वो सब बेगाने हो गए थे…. जैसे कोई नया पड़ोसी आया हो और वो जान -पहचान करने से परहेज़ करता हो…. हम उम्र बहन कनु जिसके साथ उसने कॉलेज तक की पढ़ाई की सब कुछ शेयर किया इस बार वो भी देख कर चल दी …. इतनी दूरी परिवार में आ गई कि बच्चे तक मुँह फेरने लगे…। 

वाणी को लगा यहाँ रहेगी तो सोच सोच कर पागल हे जाएगी…. वो तो एक सप्ताह में इस हालात को देख नहीं पा रही ये लोग और खास कर दादी जिसकी एक ही ख्वाहिश थी मेरे जीते जी तुम दोनों भाई अलग ना होना वो कैसे ये सब सह रही होगी तभी वो बीमार रहने लगी…. पापा भी इस बार चुप ही दिखे…. बस एक ही बात कहीं…. तू ससुराल में खुश है ना बिट्टो…. देख परिवार में हमेशा मिल जुल कर रहना… दुख तकलीफ़ में वही साथ देंगे…. ये सीख भी दादी से ही मिली पापा को पर वो खुद ये ना कर पाए…..

वाणी मायके से ससुराल आ गई थी अपनी दिनचर्या में व्यस्त रहने लगी थी… पर मायके भूलना आसान तो नहीं था…. फिर बिहार से पूना बार बार आना जाना संभव भी नहीं था….उपर से नौकरी छोड़ कर ….

चार महीने बाद माँ ने बताया दादी गुजर गई….वाणी जा ना सकी दो महीने की गर्भवती जो थी…. बस माँ हर समाचार देने लगी थी …. वाणी कह कर आई थी माँ ये परिवार अब भी मेरा है और मुझे सब जानने का हक है… बस माँ बेटी को फोन कर उसके हाल लेती और अपने सुनाया करती….. “

दादी की मौत पर ताऊजी का परिवार बस दर्शक बन कर रहा….  सबकुछ तेरे पापा ने किया…. बेटा पापा इस बँटवारे को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे बिज़नेस भी ठीक से नहीं चल रहा उपर से दादी की बीमारी मे बहुत खर्च हो चुके हैं…. तेरे भाई की पढ़ाई पता नहीं कैसे पूरी होगी सोच कर दिल बैठ जाता है….” जब ये बात माँ ने कही तो वाणी ने छोटे भाई की पढ़ाई का खर्च अपनी सेलरी से करना शुरू किया….आख़िर वो भी तो उसका ही परिवार है।



समय गुजरने में वक़्त कहाँ लगता है पर अक्सर सीधे इंसान को ज़्यादा हरजाना भुगतना पड़ता है… वाणी के पिता की तबियत ख़राब रहने लगी… बड़ा भाई किसी तरह अपने बिज़नेस में आ गया… छोटे भाई ने घर के हालात देख कुछ और करने की सोची….अब वो पढ़ाई के आख़िरी साल में आ गया…. पहला पैकेज जो बहुत अच्छा तो नहीं था पर उतना बुरा भी नहीं था को स्वीकार कर लिया …. पिता की हालत दिन ब दिन बिगड़ती गई और एक दिन वो दुनिया छोड़ चले गए ।

वाणी का पूरा परिवार टूट सा गया …

उधर ताऊजी की उम्र हो चली थी और वो बीमार रहने लगे…. चारों भाइयों ने बिज़नेस को टुकड़ों में बाँट दिया…. सब उस घर में रहते पर रसोई अलग कर ली… उस घर में दीवार भले ना खींची पर दिलों में दीवार की मोटी परत चढ़ गई थी ।

वाणी के भाई धीरे-धीरे संघर्ष कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार रहे थे…. दुख तकलीफ़ देख कर बड़े हुए…. पापा को भाई के बिछोह में मरते देखा इसलिए ये फ़ैसला कर लिया कि कुछ भी हो जाए कैसी भी परिस्थिति आए हम इस परिवार में इस दिल में दीवार नहीं खींचने देंगे…. संजोग से छोटे भाई की नौकरी उस शहर से दूर हो गई…. बस अब कभी कभी घर जाना होता है… सब मिलते हैं खोई ख़ुशी को आने वाली पीढ़ियों के साथ मिलकर खोजते हैं… परिवार के हर रूप को जीकर वो बड़े हुए ….अलगाव बस तकलीफ़ देता यही समझ पाए शायद इसलिए परिवार को मिला कर रखना जान गए।

आज वाणी का परिवार ताऊजी से बेहतर स्थिति में जी रहा है मन में एक टीस ज़रूर रहती काश एक दिन ऐसा आए और ये परिवार फिर एक हो जाए ये दीवार टूट जाए।

दोस्तों आजकल परिवार में मिल कर रहना… उसे बाँध कर रखना कितना मुश्किल होता जा रहा है पहले लोग एक ही घर में एक छत के नीचे हज़ारों मनमुटाव के बावजूद मिल कर रहना जानते थे पर आज जाने ये क्यों लुप्त होता जा रहा है बहुत कम परिवार मिलते हैं जो हँसी ख़ुशी मिलकर सब सुख दुख सहकर साथ साथ रहते हैं ।

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धन्यवाद 

#परिवार 

रश्मि प्रकाश 

मौलिक रचना 

 

2 thoughts on “अपने ही परिवार में ये दीवार कैसी…. रश्मि प्रकाश ”

  1. बिल्कुल बहुत अच्छी मेरे परिवार की कहानी है

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