रिया स्कूल से वापस आई तो मुझे उसका बैग कुछ ज्यादा ही भारी भरकम सा महसूस हुआ। स्कूल बैग रैक में रखने की बजाय वो उसे लेकर कपड़े बदलने चली गई।
मेरा दिमाग कुछ खतरे का संकेत दे रहा था। आखिर ऐसा क्या है मेरी 15 साल की बेटी के बैग में जो वो छिपाने की कोशिश कर रही है? रिया के बाथरूम में जाते ही मैंने उसका बैग खोला| उसमें एक बड़ा सा पैकेट गिफ्ट पेपर में लिपटा दिखाई पड़ा।
“ये स्कूल से ही आ रही है या कहीं और से?” मन आशंकाओं से घिर गया। रोजाना ख़बरों में कम उम्र की बच्चियों के भटकते कदम के बारे में पढ़ने से मन उस तरफ ही भाग रहा था।
“किसने दिया होगा ये उपहार इसे? आज तो इसका जन्मदिन भी नहीं!”
उसके बाथरूम से बाहर आते ही मैंने सख्ती से पूछा “क्या है ये तुम्हारे बैग में?”
“मम्मा गिफ्ट है, मतलब ड्रेस है!” उसने नजरें चुराते हुए कहा।
“किसने दिया तुम्हें? और आ कहाँ से रही हो?” मैं आपे से बाहर हुई जा रही थी।
“आप क्यों जासूसी करती रहती हैं मम्मा? सारा सरप्राइज बिगड़ गया|”
मेरा हाथ उठने ही वाला था कि वो आगे बोली “आपका मदर डे गिफ्ट है, मैं अपनी पसंद से आपके लिए लॉन्ग गाउन लाई हूँ, आप शाम को यही पहनना!”
मैं हक्की बक्की सी अपनी सोच पर शर्मिंदा खड़ी थी। बेटी ने साबित कर दिया था भटकाव उसके कदमों में नहीं, कुछ पल के लिए ही सही मेरे विचारों में था।
आजकल की तेज़ भागती ज़िन्दगी में बच्चे भी समय से पहले ही परिपक्व हो रहे हैं। कम उम्र के लड़के लड़कियों की दोस्ती और प्रेम संबंध मानो आम बात हो गई है। कम उम्र में ही ऐसे रिश्तों में पड़कर बच्चे अक्सर गलत कदम उठा लेते हैं। रोजाना अखबार में मिर्च मसाला लगाकर छपती ये खबरें अभिभावकों की रातों की नींद उड़ा देती हैं। डर इस कदर मन पर हावी हो जाता है कि हम हर बच्चे को शक की निगाह से देखने लग जाते हैं। ऐसे में विवेक से काम लेना बेहद जरूरी है, हर बच्चा भटका हुआ नहीं है। अपने बच्चों को हर समय शक की नजर से ना देखें, ऐसा करने से उनका कोमल मन कुंठित हो सकता है। अपने बच्चों पर और खुद के दिए संस्कारों पर भरोसा रखें, हर बच्चा गलत नहीं है। अगर फिर भी आपको कोई संदिग्ध गतिविधि दिखाई दे रही है तो प्रेम और स्नेह के साथ बच्चे को उसकी गलती बताएँ। मारने पीटने से वो और भी ज्यादा ज़िद्दी बन सकते हैं। सभी बच्चों को ईश्वर सद्बुद्धि प्रदान करे, ऐसी कामना के साथ मैं विदा लेती हूँ।
आपकी दोस्त
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