मां तुमने मेरे लिए क्या किया है – पुष्पा ठाकुर 

जब देखो बगल वाले घर में रहने वाली रीता आंटी के घर से यही शोर शराबा सुनाई पड़ता था कि मां तुमने हमारे लिए कुछ नहीं किया…

       रीता आंटी कम पढ़ी लिखी या कहो कि न के बराबर पढ़ी लिखी एक साधारण सी महिला हैं , जिनके पति चौहान जी शिक्षक थे।लगभग बारह वर्ष पहले उनकी लीवर खराब होने से मृत्यु हो गई और रीता आंटी की जीवन नैया यकायक पलट गई।

बेसुध पड़ी रीता आंटी को बच्चों का होश भी तब आया ,जब किसी दिन रिश्तेदारों की कानाफूसी कानों पर पड़ी।अपना दुख तब महसूस ही नहीं होता ,जब औलाद भूखी हो।

     रीता जी ने खुद को संभाला और उन्हें अनुकंपा में अपने ही पति के स्कूल में चपरासी की जगह मिल गई क्योंकि उनकी शिक्षा दीक्षा आठवी तक ही थी फिर भी उन्हें रत्तीभर भी संकोच न था,अपने बच्चों के लिए एक मां से बड़ी योद्धा भला और कौन हो सकती है।

       चौहान जी अपने पीछे एक बेटा और एक बेटी छोड़ गए थे ,जो अभी स्कूल में पढ़ते थे।शिक्षक पिता के प्रतिष्ठित पेशे से बनाई छवि धीरे धीरे हल्की सी हो चली थी । अब पहले ही बात न थी।

      रीता आंटी को बमुश्किल अकेले ही घर ,नौकरी और बच्चे संभालने पड़े। उन्होंने कभी इस बात का मलाल न किया कि वो चपरासी के पद पर हैं ,बल्कि हर कोशिश की ताकि उनके बच्चों को कोई कमी महसूस न हो ,न ही पिता की और न ही कोई सुविधा की।

        धीरे धीरे जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आ चुकी थी। उनके दोनों बच्चे अंजू और आनंद कालेज पढ़ने लगे थे लेकिन दोनों ही बच्चों को रीता जी अपनी नजरों के सामने से हटने नहीं देती थीं।

   अक्सर इसी बात पर उनका अपनी मां से विवाद कायम रहता।आनंद लड़का था इसलिए दोस्तों के साथ अक्सर सैर सपाटे को निकल जाता ,लड़का है कहकर वो अक्सर उसपर उतनी बंदिशें भी न लगातीं जितनी अंजू पर ….

       अंजू भी बाहर की दुनिया देखना , घूमना फिरना चाहती ,वो मिलनसार स्वभाव की थी इसलिए लोगों के बीच घिरे रहना उसे पसंद आता , रीता जी तब भी उसे अपनी मर्यादा याद दिलाती रहतीं।लड़कों से दोस्ती के नाम पर रीता जी कट्टर हो उठतीं और बस यहीं दोनों मां और बेटी एक दूसरे की दुश्मन सी लगने लगतीं ।




       अंजू अपनी मां की पाबंदियों से तंग रहती और बजाय अपने कैरियर पर ध्यान देने के , मां को ही अपनी असफलता का दोष देती।

     “बेटा , मैं नहीं चाहती कि जो मैंने भुगता है ,वो तुम भी भुगतो,आज यदि मैं पढ़ी लिखी होती तो स्कूल में झाड़ू न लगा रही होती, मां बाप ने लड़की हो कहकर पढ़ाई छुड़ा दी । तुम्हारे पिताजी ने बहुत पढ़ाना चाहा पर मैं ही तैयार न हुई।आज जब ज़िंदगी की जंग अकेले लड़ना पड़ा तब समझ आया कि पढ़ाई बहुत जरुरी है,खासकर लड़कियों के लिए….

      तुम आज नहीं समझोगी पर जब तक समझोगी न , बहुत देर हो चुकी होगी।”

रीता आंटी लगातार अंजू को समझा रही थीं।

“मम्मी ,आपकी गलतियों की सजा हम भुगत रहे हैं न, कितना बुरा लगता है हमें ये बताते हुए कि हमारी मां चपरासी है,आपकी सोच भी उतनी ही है ,आज का जमाना फास्ट हो गया है ,आप नहीं समझेंगी।”

    अंजू की बातें रीता आंटी का कलेजा छलनी कर देतीं ।

     

     वक्त बीतता गया और आनंद ,अंजू दोनों की ही शादी अच्छे घरों में हो गई।अंजू ने शादी के बाद मां की सुध ही लेनी छोड़ दी ।लगभग तीन से चार साल हुए कि अंजू ने के बराबर ही मायके आती ,आती भी तो पति के ही साथ लौट जाती।

   

       पिछले कुछ दिनों से रीता आंटी बहुत बीमार हैं,

रह रह कर अंजू की याद कर रहीं हैं लेकिन अंजू शायद ही समझे।

      रीता आंटी का दुख मैं बखूबी समझ रही थी , मैं अंजू की बचपन की सहेली सुधा ……अपने माता-पिता को बचपन में ही खो दिया था।मेरी समझाइश का अंजू पर कोई फ़र्क न था।जो तब न समझी ,वो अब क्या मेरी समझेगी?

         अरे नहीं नहीं….

ये मेरी गलतफहमी थी।




अंजू तो सुबह की पहली किरण के साथ ही रीता आंटी का हाथ थामे मार्निंग वाक पर घूमती दिखी।

आंखों को यकीन न हुआ, कितनी सुखद अनुभूति थी , मैं बता नहीं सकती ,अपने कामों से फुर्सत होते ही मैं अपनी सहेली से मिलने जा पहुंची।

     

     वहां का नजारा देख मैं हैरत में पड़ गई।

अंजू रीता आंटी की भरपूर सेवा करती मिली। रीता आंटी भी यकायक स्वस्थ सी होती नजर आईं,शायद बेटी की विरह वेदना ही उनके दुःख का कारण थी।

    मैंने पूछा ही लिया – ” मम्मी की फिक्र खींच लाई न? अचानक ये बदलाव कैसे?”

   अंजू भावुक हो गई और मुझसे लिपट कर बोली –

“कितनी अजीब बात है न सुधा….हम हर पल मां बाप की नजरों में पलते हैं ,उनके हर संघर्ष के साक्षी होते हैं , उन्होंने हमारे लिए क्या किया ,ये हम भी तो देख रहे होते हैं ,उनकी हमारे लिए रोक-टोक के पीछे भी एक परवाह छिपी होती है, बेटियों को कोई छल न जाए ,कोई यूज एंड थ्रो न कर जाए ,इसका डर एक मां से बेहतर कौन समझ सकता है……..जमाना कितना भी फास्ट  क्यों न हो जाए…..

            मां बाप शायद ही कभी अपने बच्चों को भूखा सोने देते हैं,चाहे कितनी भी जटिलता हो जीवन में,अपने बच्चों की खुशी के लिए सबका सामना कर जाते हैं……………

        और औलाद ये सब तब बेहतर समझ पाती है जब वो खुद ही मां बाप बन जाती है।




काश !कि मैंने मां को तब समझा होता ,आज पराए घर जाकर ,परायों से सामंजस्य बनाकर , कितना कुछ सहकर अपनी गृहस्थी को समझा है ,तब लगता है कि जितना आज अपने ससुराल में चकरघिन्नी बने हुए हैं,इसका दस प्रतिशत भी अपने मायके में किया होता तो  मां की कितनी मदद होती ………

जाने कितने पल थे जो बेवजह दुख में बीत गए।

    कितनी शिकायतें थीं मुझे मां से……..

नादान थी मैं……..और अब समझीं हूं “

कहते हुए अंगुली से इशारा किया –

मेरी नजरें उसकी अंगुली का पीछा करतीं ,जा टिकीं , जहां पलंग पर मासूमियत से गहरी नींद में एक और नन्हीं सी अंजू सो रही थी।

      अंजू की समझदारी भरी बातें ,मुझे अब पूरी तरह समझ आ चुकी थीं।

रीता आंटी मुझे देख मुस्कुरा रही थीं।

“चलो जिंदगी में जो बीत गया ,उसका ग़म न करो ,जो है उसकी कद्र समझ गए ,यही जिंदगी का सबसे बड़ा सार है……..कह रहीं थीं।

‘कभी खुशी तो कभी ग़म ……आएगा…

हर मुश्किल होगी आसान ,

जिस दिन इंसान ,अपनों की अहमियत समझ जाएगा…..’

     आशा है मेरी सहेली की कभी खुशी ,कभी ग़म से भरी कहानी आपको पसंद आए तो कमेंट्स कर अवश्य बताएं।

     आपके बहुमूल्य समय के लिए हृदय तल से आभार व्यक्त करती हूं

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

स्वरचित 

पुष्पा ठाकुर 

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