“जिंदगी और कुछ भी नहीं कभी खुशी कभी गम की कहानी है”  – सुधा जैन 

अपने आसपास नजर डालती हूं तो हर जीवन एक कहानी है। जिसमें कभी खुशी है और कभी गम है। मेरी यह कहानी मेरी जिंदगी के एकदम करीब मेरे हमसफर की कहानी है ।

मेरे हमसफर का जीवन हमेशा कभी खुशी और कभी गम के साए में घिरा रहा। चार भाई-बहनों का परिवार ….पापा शिक्षक …मम्मी गृहिणी बहुत ही प्यार से बचपन बीता ।उस समय शिक्षक का वेतन बहुत ही कम और 4 बच्चे…. खाने पीने का अभाव तो नहीं था, पर बहुत ज्यादा सुविधाएं भी नहीं थी। बचपन बीत रहा था ।जब वे दसवीं कक्षा में थे तभी उनकी मम्मी की तबीयत गड़बड़ हो गई… उनकी पसलियों में पानी भर गया …बहुत इलाज करवाया पूरा घर… बच्चे… सभी उनकी सेवा में लग गए… दो दो महीने अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता था। एक साल तो मम्मी पूरे बिस्तर पर रहे… सोना… उठना… बैठना.. खाना-पीना सभी कुछ बिस्तर पर ….

उस समय मेरे पतिदेव ने उनकी बहुत सेवा की। उनका सभी काम किया …अभी भी सभी मुझे कहते हैं कि दिलीप ने अपनी मम्मी की बहुत सेवा की… किसी बात से कोई परहेज नहीं किया… और उनकी सेवा से ही आज खुशी भरे दिन बीत रहे हैं….।

 जब उन्होंने 11 वीं पास कर ली तब घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने एक प्राइवेट स्कूल में सर्विस कर ली ,ताकि घर में कुछ आर्थिक मदद कर सके। टाइपिंग भी सीख ली और परीक्षा पास करके शिक्षा विभाग में क्लर्क की नौकरी लगी। बहुत परिश्रम किया और जब पहली सैलरी ₹300 मिले, तब उन्होंने वे रुपए मेरे सासूजी के हाथ में रखे…. 2 मई की पूरी रात मेरे सासूजी उन नोटों को मुट्ठी में लेकर बैठे रहे ….सुबह रुपए इन्हें वापस देते हुए बोले” इसके रेखा (मेरे छोटे ननंद) के कपड़े बनवा देना, वह कालेज जाती है उसके पास अच्छे कपड़े नहीं है “और यह कहते हुए उन्होंने अपनी आंखें सदैव के लिए मूंद ली… 

मम्मी जब बीमार थी तब कमला बाई ने हमारे घर पर काम करना शुरू किया था, और मेरी मम्मी जी ने उन्हें कहा कि मेरे बच्चे छोटे-छोटे हैं ,इन को संभालना… बाई ने भी अपनी जुबान की कीमत रखी और सारी रात बच्चों को लेकर बैठी रही….  सब भाई बहन पापा मम्मी के जाने से टूट गए… जीवन चलने का नाम है चलता रहा…  सब मेहनत करते रहे। आर्थिक अभाव भी उठाते रहे, और कमल बाई भी  सब का साथ देती रही। इसी बीच इनकी बड़ी बहन की शादी की।   पापा, इन्होंने, सभी दौड़ धूप की ओर शादी हुई ।मम्मी के ना होने से  छोटी वाली बहन की शादी भी जल्दी कर दी। मेरे पतिदेव सुबह-सुबह घर का सारा काम करते… पानी भरते… बर्तन मांजते …




 फ़िर ऑफिस जाते… शाम को कुछ बच्चे ट्यूशन पढ़ने आते ,और इस तरह से समय गुजर रहा था। 23 वर्ष की उम्र में इनके विवाह की बात मुझसे चल रही थी, तब मैंने मेरे पिताजी से कहा कि ” बाबूजी बहुत ही  सिंपल लड़के हैं …शर्ट भी इन नहीं करते… बाल बहुत छोटे हैं.. चप्पल पहनते हैं… क्योंकि उस समय  मैं मायापुरी पत्रिका पढ़ती थी, और अपने लिए किसी फिल्मी हीरो की कल्पना करती थी। मेरे बाबूजी ने कहा” बिटिया सादगी भरा परिवार है, कुछ समय पहले ही उन्होंने अपनी मम्मी को खोया है, और रहन-सहन का क्या है? कुछ समय बाद सब ठीक हो जाएगा” इस तरह से हम दोनों  का संबंध तय हुआ और दुल्हन बनकर इनके आंगन में आ गई… 

छोटा सा घर… तीन कमरों का… बीच में अलमारी से पार्टीशन किया… कच्ची  टॉयलेट… सीलन वाला घर और इस तरह से हमने हमारी नई गृहस्थी की शुरुआत की… मेरे ससुर जी बहुत सुलझे हुए.. जीवन को समझने वाले …समय बीतता रहा और हम जीवन संघर्ष के साथ साथ आगे बढ़ रहे थे । हमारे दो बच्चे जीवन संसार को सुखमय बना रहे थे। मैं भी शासकीय स्कूल में शिक्षिका थी। मेरे आने के बाद घर के आर्थिक स्थितियां थोड़ी बेहतर होने लगी। हमने गैस, कुकर खरीदा। मेरे बच्चों को कमला बाई ने बहुत प्यार भरी परवरिश दी। उनके ऋण से उऋण होना कभी भी संभव नहीं है। हमारी शादी को 15 साल हो चुके थे। फिर हमने कॉलोनी में प्लाट लिया… मकान बनाया और शिफ्ट हो गए… एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति के लिए मकान सबसे बड़ा सपना होता है, और जब वह सपना पूरा हुआ तब हमें बड़ी खुशी हुई…. मेरे घर के पास ही मेरी छोटी बहन ने भी अपना घर बनाया। हम सब आपस में प्यार से रहते हुए अपना समय व्यतीत कर रहे हैं। एक दिन मोटर से पानी भरते हुए मुझे करंट लगा और मैं चिपक गया उस वक्त मेरे भांजे अनुराग ने तुरंत मोटर बंद की और इस तरह से मेरी जान जाते-जाते बच गई। जब स्वाइन फ्लू का दौर आया तब मैं उसकी चपेट में आ गया और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। उस समय प्रभु कृपा ..मम्मी के आशीर्वाद से इन्हें नया जीवन मिला…  बच्चों की शिक्षा भी चल रही थी.. बेटे ने इंजीनियरिंग कर ली… एमबीए हो गया …बिटिया एमसीए हो गई। इनके विवाह की चिंता सताने लगी …तब बिटिया के लिए सुयोग्य वर देखकर उसकी शादी कर दी।




 बेटे ने विवाह के बारे में अपनी पसंदगी बताई तो उसे भी स्वीकार किया और खुशी-खुशी विवाह किया। कोरोना संकट के समय मुझे कोरोना हो गया… दोनों ने एक दूसरे का ख्याल रखते हुए कोरोना से जंग जीत ली…. फिर अभी 6 महीने पहले इनका स्वास्थ्य फिर खराब हुआ… बहुत दुबले हो गये था… अभी 20 जून को घबराहट और बेचैनी के चलते अस्पताल में भर्ती हुए, और बेहोश हो गए… 48 घंटे बाद होश आया.. 21 जून को मेरा  जन्मदिन रहता है। मैं प्रभु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करती रही और इनके जीवन की कामना करती रही। 22 जून को जब इन्होंने आंखें खोली और कहा कि “तुम्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं और मुझे दुख है कि मैं तुम्हें कुछ उपहार नहीं दे सका” ,

तब मैंने मुस्कुराते हुए कहा कि “आपकी हंसी की मेरा सबसे बड़ा नजराना है “इस तरह से उस कठिन संकट के दौर से हम गुजरे…  बेटे शुभम के पास हम इलाज के लिए 2 महीने बेंगलुरु गए और वहां पर व्यवस्थित इलाज हुआ, बेटे और बहू के प्यार केयर और अपनेपन ने बहुत खुशी दी और स्वास्थ्य ठीक करवा कर हम अपने घर आए। प्रभु कृपा से दामाद भी बहुत अच्छे मिले हैं। आज अपना खुद का घर है.. गाड़ी है.. बच्चे सेटल है …हम हवाई यात्राएं करते हैं…। इनके छोटे भाई… उनके बच्चे.. बड़ी बहन… छोटी बहन भांजे सभी का प्यार मिलता है… मेरे भाई भाभी भतीजे भतीजी बहनें  सभी सुख दुख में सदैव तैयार होते हैं।

अभी हम दोनों पति-पत्नी जब भी बैठकर आपस में बातें करते हैं तो पल प्रतिपल प्रभु को धन्यवाद देते हैं ,और बात करते हैं कि जीवन कभी खुशी है… कभी गम है… हर पल जीवन की नश्वरता को महसूस करते हैं… और इस बात को मानते हैं कि हर पल खुशी से…  आनंद से जिए… सभी से प्यार और सहयोग से जिए… जीवन का कोई भरोसा नहीं है ।

हर जीवन एक कहानी है… बस परिस्थितियां कोई भी आए ..हर वक्त चलते रहना है …रुकना नहीं है… सहजता.. सरलता.. सादगी… प्यार …अपनापन …यही जीवन है।

 जिंदगी और कुछ भी नहीं “कभी खुशी और कभी गम” की कहानी है।

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

सुधा जैन 

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