समझौता – अभिलाषा कक्कड़

दौर आते जाते रहते हैं लेकिन यादें मीठी कड़वी छोड़ जाते हैं । जी हाँ मैं बात कर रही हूँ दौर दशक 80 और 90 के बीच का जब बहुत कुछ आज के समय से अलग था । बच्चों की शिक्षा से लेकर शादी ब्याह तक के फ़ैसले माता-पिता ही लेते थे , औ

र बच्चों का उनके आगे सवाल उठाने का मतलब था दीवार के आगे सिर मारना। ख़ैर मैंने भी जैसे 23 बरस की उम्र तक जाते अपनी शिक्षा पुरी की तो पिता ने ज़ोर शोर से लड़का देखना शुरू कर दिया ।

 एक दो ने मुझे पसन्द किया तो वहाँ पापा की नाक पर ना बात जमी । और कइयों को मैं भी पसन्द ना आई । लेकिन ये देखने दिखाने का काम एकाध बार मन्दिर कभी किसी रेस्तराँ और कभी हमारे ख़ुद के घर भी हुआ ।

लेकिन अचानक से एक दिन अमेरिका में रहने वाले पापा जी के चचेरे भाई का फ़ोन आया कि एक लड़का इंडिया में लड़की देखने आ रहा है और मैंने राज़ी के बारे में यानि की मेरी बात की है ।

जैसे ही वो लोग आपको सम्पर्क करें आप तुरंत उनसे मिले । पापा तो बहुत उत्साहित हुए एक तो विदेश का लड़का और उपर से बीच में पड़ने वाला भी विश्वास का बन्दा.. ख़ैर दो चार दिन के बाद पापा को फ़ोन आया कि आप लड़की को लेकर हमारे घर यानि कि दूसरे शहर जो कि हमारे यहाँ से सात घंटे का रास्ता था आ जाओ ।

 सुनकर मेरे तो पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई । मैंने माँ से कहा कि मैं लड़के वाले के घर नहीं जाऊँगी । अगर उन्हें देखना है तो यहाँ आये। मेरा आत्मसम्मान मुझे इस बात की बिल्कुल इजाज़त नहीं दे रहा था और अगर मैं जाती हूँ तो मेरे लिए अपने वजूद की गरिमा से एक बहुत बड़ा समझौता था । माँ ने कहा ज़्यादा दिमाग़ चलाने की ज़रूरत नहीं पता नहीं वो तुझे पसन्द भी करते हैं या नहीं और कहीं बाहर होटल में इन्तज़ाम करवाया तो बैठे बिठाए तेरे पापा हज़ारों के नीचे आ जायेंगे ।



 थोड़ी देर ही तो बैठना है वहाँ, मैं मन मसोस कर रह गई । एक पल भी मेरे मन में उस अमेरिका वाले लड़के के लिए रोमांच पैदा नहीं हुआ । ख़ैर सुबह की गाड़ी पकड़ दोपहर के तीन बजे तक हम उनके शहर रोहतक पहुँच गये , और थोड़ी देर में उनके घर भी ।

मैं बहुत ही असह्यता से भरी थी, आँखें नीचे गड़ाये सबके सामने बैठी थी । सामने दो एक जैसे ही दिखने वाले दो भाई बैठे थे ।

बस एक बार पलक उठाकर देखा पर यह नहीं जानती थी जिसे दिखाने आई हूँ वो कौन है । ख़ैर थोड़ी देर में उसकी भाभी मुझे दूसरे कमरे में ले गई । हम दोनों बैठी बातें कर रही थी तभी उसने अपने देवर की पीठ दिखाई दी जो कि वहाँ से गुजर रहा था । 

उसने आवाज़ देकर बुलाया कि अगर तुमने राज़ी से बात करनी तो यहाँ बैठ जाओ मैं बाहर चली जाती हूँ । उसने हाथ हिलाकर मना कर दिया और मैं अपमान से जैसे ज़मीन में ही गड़ गई । एक तो पहले से ही में ख़ुद से लड़ रही थी उपर से उसका ऐसा खुश्क रवैया बस भगवान से प्रार्थना कर रही थी हे ईश्वर यहाँ से जल्दी निकाल ।

ख़ैर रात तक हम घर पहुँचे मैंने सारे रास्ते पापा से बात नहीं की , मेरे अन्दर बहुत ग़ुस्सा था । घर पहुँचे तो माँ के सवालों की झड़ी, मुझसे पुछने लगी कैसा लगा लड़का ? मैंने बताया मैंने तो उसे देखा ही नहीं ठीक तरह से और मुझसे दुबारा उसकी बात भी मत करना । 

ख़ैर दस दिन भी नहीं बीते होंगे और उनके यहाँ से फ़ोन आ गया कि कल आकर शगुन कर जाओ और उसके एक सप्ताह के बाद शादी क्योंकि उसकी वापसी की तारीख़ बहुत नज़दीक है ।

सुनकर मैं धक रह गई कि उस खड़ूस ने हाँ कर दी और तैयारी शुरू हो गई बिना मेरी मर्ज़ी जाने । ख़ैर आनन फ़ानन में सब हो गया और मुझे इनकी शक्ल ही भूल गई । जब दुल्हन बन गले में माला डालने लगी तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा जो मुझे पसन्द आये थे वो वहीं थे और मैं सोच रही थी कि ये शादीशुदा बड़ा बेटा है । 

और सामने इनका भाई अपनी पत्नी के साथ खड़ा था । ख़ैर मेरे इस समझौते का अन्त बहुत सुखद रहा मेरे पति सच में ही एक नेक दिल और अच्छे विचारों वाले इन्सान निकले । मैंने भगवान का लाख शुक्र किया और पिछले तीस बरसो से हम अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश है ।

मैंने अपने पति से पूछा था कि आपने मुझसे बात क्यूँ नहीं कि जब मैं आपके घर आई तो बोले बात क्या करनी थी जब पहली नज़र में ही तू भा गई थी ❤️

स्वरचित रचना 

अभिलाषा कक्कड़

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