बेटियों के माता- पिता की समाज में स्थिति क्या है?
हमारा समाज बेटों को ही वंश क्यों मानता है?
जीवन भर बेटियों को नाजो से पालने वाले माता-पिता बेटियों कि पैदाइश पर बुझ क्यों जाते हैं?
इन सारे सवालों के जवाब हर वे माँ बाप चाहते हैं जिनकी केवल बेटियां हैं।
मेरी भी दो बेटियां हैं, मैं आपको इन सवालों का जबाब देने का प्रयास करुँगी और कविता भी जो मैने बेटियों पर लिखी है आगे पढ़े:-
बेटियों के माता- पिता की समाज में स्थिति:-
” हम दो हमारे दो” के नारे को हमारे समाज ने भरसक अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न किया है, पर केवल बेटियां रखने वाले माँ बाप भी यही सोच रखते है? या फिर समाज की आकांक्षाएं उनके इस सोच पर हावी हो जाती हैं? और फिर वह वंश की चाह में बेटियों की पलटन तैयार करने पर मजबुर हो जाते है़्ं और अपनी आथिर्क स्थिति बिगड़ने का दोष समाज पे मढ़ते हैं।
समाज है दोषी, क्योंकि वह बेटियों के जन्म पर बधाईयां नही संतावनाएं देता है, ये संतावनाएं ऐसे माता पिता को नाकारात्मक और हीन भावनाओं से ग्रसित करती हैं।
हालांकि समाज का इस मामले में केवल नाकारात्मक पहलु ही नहीं है मैंने एसे परिवार देखे है जहां केवल दो बेटियां हैं और वह खुश हैं, मैंने एसे भी परिवार देखे हैं जो सिर्फ बेटियों वाले परिवारों में इसलिए शादियां करते हैं क्योंकि उन्होने बेटियों पे ही संतोष किया , हमारे समाज का ये भी एक पहलू है, इस पहलू से आप भी जूडे।
हमारे समाज बेटों को ही वंश क्यों मानता है?
हमारे इस सवाल से कई सवाल जूडे हैं। हमारे समाज के कुरितियां तथा भयावह परिस्थितियां हमें डराते हैं और इतना डराते हैं कि बेटियों के जन्म पर नाकारात्मक भावनाएं ही जन्म ले सकती है। और अगर माता पिता शिक्षित है दो बेटियों के बाद बच्चे नही चाहते तो परिवार का दबाव कि वंश को कौन आगे बढ़ाएगा? नाम कौन चलाएगा? मैं पूछती हूं कितनी जायदाद है हमारे पास कि उसे भोगने को वारिस चाहिए ही चाहिए।
हमे चाहिए कि हम अपनी बेटियों को सशक्त बनाए ताकि समाज कि सोच बदले। बेटियों से पहले खुद के लिए प्रापटी बनाए अपने भविष्य को अपने बच्चों पर न लादें। बेटा हो या बेटी समान परवरिश करें हालांकि बेटों को सिखाएं कि वह महिलाओं को सम्मान दे अगर हर बेटे को यह बात सिखाई जाए तो आगली पीढियों में समाज बेटियों को लेकर ईतना भयभीत न हो।
रही बात कि बेटों से ही नाम चलता है अरे वंश मे अगर एक कूपूत्र जन्म ले तो पीढीयों तक नाम डुबोता है, जरूरी नहीं नाम चलाने के लिए बेटे ही हो अगर आप सक्षम हैं कि अपने क्षेत्र मे स्कूल बनवाते हैं, अस्पताल बनवाते हैं, समाज सेवा करते हैं पीढीयों तक आपके नाम याद रखे जाएंगे।
प्राकृति ने दो जातियां बनाई हैं मर्द और औरत ना उनकी तुलना करें ना एक को दुसरे पर हावी करने की कोशिश,क्योकि दोनों के अपने अलग महत्व है। औरत को औरत ही रहने दें वो उसी रूप में कुछ भी कर सकती है।
और अब बेटियों पर लिखी मेरी यह कविता:-
क्या हुआ
बेटी हुई,
लक्ष्मी है लक्ष्मी
बेटों से कम ना आंकना
फिर भी
बेटा चाहिए
अगली बार सोचना
सुनने पड़े ताने कई
मिल रहे संतावना
निराश ना होना बाबा कभी
हौसला न छोड़ना
क्या हुआ
बेटी हूं मैं
हूं तेरी ही अंश ना
गोद में लिए मुझे
एकटक तेरा निहारना
चुमना-समेटना
सीने से लपेटना
ये भाव तेरे हैं मगर
समाज से तु डर रहा
पालना-पोसना
दहेज की विडम्बना
या लरज रहा है देखकर
मुझमें आसिफा-निर्भया
लक्ष्मी बाई, पद्मिनी
दुर्गावती, तपस्विनी
हैं कई विरांगना
मैरी, उषा और फोगाट
तु देख मुझमें कल्पना
मै बेटी हूँ तो क्या हुआ
हूँ तो तेरी अंश ना।
ले थाम मेरी उंगलियां
चलना मुझको तु सिखा
ना सुन कोई आलोचना
परम्परा समाज की
मर्यादा लोक लाज की
लिए करूं मै सबका सामना
वो गिद्ध निगाहें फोड़ दूं
है काम जिनका नोचना-खसोटना
मै चण्डी भी मै काली भी
ये भूल उनकी है बडी
लक्ष्मी से ही मुझको जोड़ना
मैं कुल नही तो क्या हुआ
बनूं मै ही कुलागंना।
क्या हुआ
बेटी हूँ मैं
हूँ तो तेरी अंश ना।
_ सुल्ताना खातून