—-समझौता! समझौता जैसे उसकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गया था। पग पग पर समझौता, बचपन में भाई बहनों के बीच ऊंच नीच होता वह समझौता कर लेती , सखियों संग कुछ हुआ वह समझौता कर लेती धीरे-धीरे उम्र आई विवाह करनें की ; वह दहेज के सख्त खिलाफ़ थी । विवाह तय करनें के दौरान दहेज की मांग की गई तो वह आग बबूला हो गई, मगर माँ ने धीरे से समझाया बेटी यह समाज का चलन हो गया है। इसके बिना किसी लड़की का विवाह हो ही नही सकता । वह समझौता कर ली । उसका विवाह हो गया वह ससुराल आ गई यहाँ भी परिवार में संतुलन बनाने के लिए उसे ही समझौता करना पड़ता। उसकी एक देवरानी थी , जो उससे काफी ज्यादा पढी लिखी थी । वह मायके से भी धनवान पिता की बेटी थी । प्रतिवर्ष उसके मायके से 10 क्विंटल चांवल तथा कम से कम 2 क्विंटल गेंहू आते थे तथा समय-समय पर देवरानी के लिए साथ ही साथ घर के सभी सदस्यों के लिए कपड़े, पकवान आदि आते रह्ते थे।
इन सब लेन देन के कारण छोटी बहू सबकी लाडली हो गई थी। उसके कदम ज़मीं पर पड़ने नहीं देते थे । वहीं बड़ी बहू जो सामान्य आमदनी वाले घर से आई थी और अपने स्वभाव तथा परिस्थितियों से समझौता करते हुए वह बारहवीं कक्षा की पढ़ाई के बाद विवाह करने को राज़ी हो गई थी। उसके पास डिग्रियां नहीं थी मगर संस्कार की धनी थी । खुबसूरती में भी छोटी बहू से कम नहीं थी मगर धन संपत्ति की बाढ ने उसका महत्व गिरा दिया । सासू माँ, जिसकी 2 वर्ष तक नि: स्वार्थ भाव से सेवा करती आ रही थी आज धन दौलत के चलते रोज रोज ताने देने लगी थी। आज तो उन्होंने हद ही कर दी ; छोटी बहू के मायके से उसके लिए तिज का उपहार आया तो सब के सब मालामाल हो गए सभी अपने अपने कपड़े अलट पलट कर देखते हुए फूला नहीं समा रहे थे ।
सासू माँ को फिर ताने देने का मौका मिल गया। खाजा मुंह के भरभर तोड़ते हुए कहने लगी – ” इसको कहते हैं समधन के घर का तिजा। ” एक तुम्हारे घर से आता है सूखी सूखी फिकी मठरी। इतना सुनते ही बड़ी बहू के सहन शक्ति का बांध टूट गया । उसने मन में कहा ” समझौता अब नहीं “फ़िर वह बिफरते हुए बोली पड़ी-सम्मान करना सीखिए माँ जी ! व्यवहार में भावनाएं जुड़ी होती है , और जिसका भावनाओं से मन नहीं भरता उसका पेट पकवान की ढेर से कभी नहीं भरेगा। ।दोनों के बीच घमासान होंने लगा जबान लड़ाना सीख रही हो तुम! जबान न खोलूं तो कब तक सहते रहूँ। आपकी पूंजी पति घर की बहू ने आज तक एक कप चाय बनाकर दी है ? कल को अगर मैं अलग गृहस्थी बसा लूंगी तो आपके डायनिंग टेबल पर बैठे हुये भोजन करनें का रुतबा निभ जाएगा? पूंजी और खूबसूरती और डिग्रीयों से गृहस्थी नहीं चलती है माँ जी ! सेवा , सम्मान और समर्पण से गृहस्थी चलती है ।
इतना सुनते ही सासू माँ के होश ठिकाने आ गए । पिछले 2 वर्ष के तमाम दिनचर्या उसकी आँखों में तैर गये सचमुच छोटी बहू तो सिर्फ मेकअप करके सज संवर के घर में घूमती रहती है । इसके भरोषे तो एक गिलास पानी मिलना नसीब नहीं होगा । सासू माँ जैसे बुरा स्वप्न से जाग उठी। नहीं बहू नही , ऐसा मत बोलो तुम चली गई तो मेरा और तुम्हारे ससुर जी का कौन खयाल रखेगा बड़ी बहू तो संस्कारों की धनी थी इतना सब कुछ तो उसे अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु कहना पड़ा था । फिर दोनों में सुलह हो गई। बड़ी बहू को ताने देने के बजाय सम्मान मिलने लगा।
#समझौता
।।इति।।
–गोमती सिंह , छत्तीसगढ़
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित