अमानत – डा. मधु आंधीवाल

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दामिनी की दोनों छोटी बहनें पारुल और जया उसके कंधे पर सिर रख कर सुबक रही थीं । एक मां ही तो सहारा थी तीनों की आज उसकी भी विदाई हो गयी । दामिनी की आंखों के आंसू तो जैसे अन्दर बर्फ़ की तरह जम गये थे । कैसे अपनी मां की इन अमानतों को ढांढस बंधाये । पिछली बीती उन दर्दीली यादों को वह भुला नहीं पाती । अच्छा भरा पूरा परिवार था मां बताती थी कि जब पापा से विवाह हुआ और वह बिदा होकर ससुराल के दरवाजे पर उतरी तो दादी तो उनकी बलैया लेते ना थक रही थी । मां सुन्दर ही इतनी थी उस पर पढ़ी लिखी बहू जो घर आगयी थी । पापा भी बहुत अच्छी सरकारी पोस्ट पर थे । 

          घर में मां के आने से बहुत खुशहाली आगयी दादाजी का व्यापार भी चमकने लगा । बुआ की शादी होगयी इधार दामिनी का जन्म हो गया । पूरे घर में एक खिलौना आगया । अब दोनों चाचाओं की शादी की बात चलने लगी । मां भी दादी से लगातार कहती अम्मा जी जल्दी दो बहुयें और ले आईये मेरी दो बहनें आ जायेगी बस आप बैठ कर हुक्म देना हमको । दादी बहुत खुश होती । दोनों चाचाओं को अच्छे रिश्ते आ रहे थे क्योंकि दोनों दादाजी के साथ व्यापार संभालते थे ।

         दोनों की शादी हो गयी पर ना तो वह मां की तरह सुन्दर थी ना मां की तरह पढ़ी लिखी पर मां को कोई अन्तर नहीं था क्योंकि वह तो बिलकुल छोटी बहन की तरह रखती थी । उसी समय पारुल का जन्म हुआ सब कहने लगे अरे अबकी बार तो लड़का होता पर दादी बहुत खुश थी कहती मेरी दामिनी के साथ  खेलने वाली आगयी । कुछ दिन बाद बड़ी चाची के दो जुड़वां लड़के हुये और छोटी चाची के भी बेटा हुआ पर दामिनी और पारूल दादी की लाड़ली थी मां और पापा की तो आंखों का तारा । दोनों चाची के तीनों बेटे भी बड़े हो रहे थे दामिनी और पारुल तीनों को बहुत प्यार करती थी । मां पापा तीसरा बच्चा नहीं चाहते थे पर दादी की जिद के आगे रिस्क ली और जया जन्म हुआ । बस घर में अशान्ति शुरू होगयी । दोनों चाचियों का व्यवहार बदलने लगा । दादा जी बीमार रहने लगे सारा व्यापार चाचाओं के हाथ में चल गया । चाचियों ने बंटवारा करने की जिद पकड़ ली । दामिनी अब 15 साल की होगयी । दादाजी का स्वर्ग वास होगया ।अब दादी इतना कुछ कह नही पाती 



थी । मां पापा उन्हें समझाते जब बंटवारे का नं आया तब उन्होने कहा कि बड़े भाई तो सर्विस पर हैं व्यापार में काहे का बंटवारा । पापा ने कहा मुझे कुछ मत दो पर मां का तो हक है। चाचियों ने कहा अम्मा का क्या हक है दो समय का खाना खायेगी और क्या चाहिये इन्हें । पापा बहुत दुखी हुये दादी और हम सब लोगों को लेकर अलग हो गये । अच्छी सर्विस थी सब सही चल रहा था । तीनों बहने पढ़ने में होशियार थी । एक दिन पापा आफिस में काम कर रहे थे अचानक उनको बहुत घबड़ाहट हुई और बेहोश होगये तुरन्त अस्पताल ले गये पता लगा कि उन्हे साइलेन्ट हार्ट अटैक आया और चले गये सबको छोड़ कर । दादी वह सदमा सहन नहीं कर पाई और एक महीने पीछे वह भी विदा होगयी । दामिनी पार्ट टाइम जाब करती और अपनी पढाई भी । पारूल भी छोटे बच्चों के ट्यूशन लेती व अपनी शिक्षा भी पूरा करती । मां तो बिलकुल चुप होगयी थी । दामिनी कहती मां हम तुम्हारी बेटी नहीं बेटा हैं तुम काहे को चिन्ता करती हो बस मेरी सर्विस लग  जाये सब संभल जायेगा ये दोनों मेरी जिम्मेदारी हैं पर मां को पापा और दादीका गम धीरे धीरे अन्दर से खोखला कर रहा था । दामिनी की बैंक में सर्विस लग गयी । पारूल का भी सर्विस का रिजल्ट आने वाला था । जया बस अभी इन्टर में थी ।आज जैसे ही पारूल रिजल्ट आया और वह खुश होती अन्दर आई मां को बताने मां नीचे जमीन पर गिरी हुई थी । उसने दामिनी को फोन किया पड़ोस में रहने वाली काकी को बुलाया जब तक तो मां प्रस्थान कर चुकी थी अनन्त यात्रा पर ।

       दामिनी को दोनों बहनों को अमानत के रूप में छोड़ कर । दामिनी ने दोनों को कस कर चिपटा लिया और बोली तूम मेरे दो हाथ हो जो कभी शरीर से जुदा नहीं होगें । बस वायदा करो हम एक थे ,एक हैं और एक रहेगे ।

स्वरचित

डा. मधु आंधीवाल

अलीगढ़

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